करण ने बताया कि साउथ बॉम्बे में पले-बढ़े होने के बावजूद जहां 80 के दशक तक लोगों में हिन्दी फिल्में देखने का शगल नहीं था, वह बचपन से ही वे हिन्दी व श्रीदेवी की फिल्मों खूब देखा करते थे। और इस तरह से सिनेमा के प्रति उनकी दीवानगी में श्रीदेवी की बड़ी भूमिका रही है।
इस मौके पर जब लेखन अनिल धारकर ने करण जौहर से श्रीदेवी की किसी फिल्म को डायरेक्ट करने के काल्पनिक मौके की बात की, तो करण जौहर ने कहा, 'मैंने कभी भी इसकी कल्पना नहीं की। मेरा बचपन उन्हें चाहने, देखने और करीब से महसूस करने में इस कदर समर्पित था कि मैं उन्हें निर्देशित करते वक्त मैं पूरी तरह से अपनी वस्तुनिष्ठता खो बैठता।'
मैं उन्हें शायद इस कदर कुछ ज्यादा करने के लिए दे देता, जो उनके किरदार की आवश्यकता से कहीं अधिक होता और नतीजे के तौर पर शायद इसका फिल्म पर काफी बुरा असर होता। मैं इस बात को लेकर कतई आश्वस्त नहीं रहा कि मैं उनके लिए एक बढ़िया निर्देशित साबित होता क्योंकि मैं उनका बहुत बड़ा फैन रहा हूं।
मुझे लगता है कि निर्देशक को कहीं न कहीं वस्तुनिष्ठ होने की जरूरत होती है। मुझे इस बात की खुशी है कि मुझे कभी भी श्रीदेवी को डायरेक्ट करने का मौका नहीं मिला, वर्ना वो फिल्म यकीनन एक नाकाम फिल्म साबित होती, जिसे वो कतई डिजर्व नहीं करती थीं।