वर्ष 1959 में प्रदर्शित फिल्म 'पैगाम' में उनके सामने हिन्दी फिल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे लेकिन राजकुमार यहां भी अपनी सशक्त भूमिका के जरिए दर्शकों की वाहवाही लूटने में सफल रहे। इसके बाद 'दिल अपना और प्रीत पराई', 'घराना', 'गोदान', 'दिल एक मंदिर' और 'दूज का चांद' जैसी फिल्मों में मिली कामयाबी के जरिए वे दर्शकों के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऐसी स्थिति में पहुंच गए, जहां वे अपनी भूमिकाएं स्वयं चुन सकते थे।