गोलमाल देख-देख कर आप लोग बोर नहीं हो गए हमसे: अरशद वारसी

रूना आशीष
अरशद वारसी से अगर आप असल जिंदगी में मिलते हैं तो आपको समझ में आ जाता है कि 'गोलमाल' का माधव और 'मुन्नाभाई' का सर्किट के रूप में निर्देशक ने उन्हें ही क्यों चुना है। आप सवाल पूछना भूलकर पहले हंसते हैं और फिर उसी सवाल पर अरशद आपकी टांग खींच सकते हैं या फिर बहुत संजीदा होकर उसका जवाब दे सकते हैं। इसी भोले-भाले, हंसोड़ और लुभाने वाले स्वभाव के धनी अरशद से बात कर रही हैं 'वेबदुनिया' संवादददाता रूना आशीष।
 
आपकी फिल्म 'गोलमाल' एक बार फिर लोगों के सामने है और सफलता हासिल कर रही है। 
हां, समझ में नहीं आता। आप लोग बोर नहीं हो गए हमसे। 
 
आपसे गुजारिश है कि आप थोड़ा ऊंचा बोलें ताकि आवाज रिकॉर्ड करने में आसानी हो। 
अरे, हम यहां इंटरव्यू दे रहे हैं या फिर मैं लड़ाई करने आया हूं। ओके कोशिश करता हूं। तो बताइए क्या सवाल है? (जब हंसी का एक दौर खत्म हुआ तो सवालों की लड़ी भी लगाई गई) 
 
रोहित शेट्टी के निर्देशन को कैसे डिस्क्राइब करना चाहेंगे?
वे बहुत ही सटीक निर्देशक हैं। उन्हें पहले से मालूम होता है कि क्या करना है। कौन क्या करने वाला है, चाहे वो बात रोल से जुड़ी हो या टेक्नीशियंस से। वे बहुत डेडिकेटेड हैं अपने काम को लेकर। वैसे भी उनके साथ ये मेरी 5वीं फिल्म है। 'गोलमाल' की 4 फिल्में और 1 संडे फिल्म हमने की है साथ में। वे अपनी फिल्मों को लेकर बड़ी सफाई के साथ सोचते हैं, तो ऐसे में एक अभिनेता को बड़ी आसानी हो जाती है काम करने में। वर्ना कई बार तो ऐसा होता है कि आपको कहानी कुछ और बताई जाती है और वो बनकर कुछ और आती है तब बड़ा धक्का लगता है। मेरे साथ तो कई बार हो चुका है ये।
 
सुना है ऐसा 'मुन्नाभाई' के सीक्वल में भी हो गया था?
अरे... अब ऐसा कुछ नहीं हुआ... खामोश... बात का बतंगड़ मत बनाओ यार...। वैसे भी मैं कोई रोल करने के बाद उसे भूल जाता हूं। काम करो और आगे बढ़ते चलो, मैं उस किस्म का शख्स हूं। सीक्वल के समय में मैंने काम किया और जब शाम को निर्देशक राजू के साथ बैठकर जब देखा तो सोचा कि मैंने तो बहुत अलग ही कर दिया, ये तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी...। फिर से डीवीडी मंगाई। पुरानी 'मुन्नाभाई' को देखा और फिर शुरू किया। लेकिन इतनी बड़ी बात नहीं है। ये सब हमारे काम का ही हिस्सा है।
 
'गोलमाल अगेन' में भी कुछ ऐसा हुआ क्या?
'गोलमाल अगेन' में ऐसी कोई बात नहीं हुई। हमने पहले दिन शूट किया। हम चारों लड़के ही थे। सब ठीकठाक रहा। फिर अगले दिन रोहित ने वो पूरा शूट यूनिट को बैठाकर दिखाया। तब मालूम पड़ा कि हमारा एनर्जी लेवल जरूरत से ज्यादा ही हो गया था। अब 7 साल के अंतराल के बाद अगर हम शूट कर रहे हैं तो हम सिंक में नहीं थे। सब अलग-अलग जा रहे थे, जो बहुत मुमकिन होता है। लेकिन जब फुटेज हमने देखी तो लगा हमने एक ही दिन में इतना पागलपन कर दिया था।
 
इस फिल्म के लिए लोग कहते हैं कि ये एक ब्रेनलेस कॉमेडी है?
कौन हैं वे लोग। उन्हें मेरे सामने पेश किया जाए। मैं बताऊंगा उन लोगों को कि वे बिलकुल सच कहते हैं। वैसे भी कॉमेडी करना आसान नहीं होता है। मैंने सीरियस फिल्में भी की हैं। उसमें इतनी परेशानी नहीं आती हैं। जॉली में भी परेशानी नहीं होती है। 'गोलमाल' करते-करते मैं शाम तक बुरी तरह से थक चुका होता हूं। वैसे भी कितने कलाकार हैं, जो कॉमेडी कर पाते हैं। कई लोगों के चेहरे भी अजीब लगने लगते हैं। हंसाना बहुत मुश्किल काम है, वर्ना रुलाने के लिए तो एक लाफा (थप्पड़) काफी है। (फिर एक जोरदार ठहाके से कमरा गूंजने लगता है)
 
लेकिन आपको देखकर नहीं लगता कि आप हंसा नहीं सकते?
मैं इस मामले में गांधीजी का भक्त हूं। उन्होंने एक बार कहा है- If I do not have a sense of humor I would have committed suicide long time back। मैं गांधीजी को बहुत मानता हूं। वैसे भी मुझे लगता है कि अगर हंसने की आदत न हो तो जिंदगी बहुत कठिन होती है। मुझे दुख होता है उन लोगों से मिलकर, जो जीवन में बहुत संजीदा होते हैं।

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