धर्मनाथ पांडे संस्कृत का अध्यापक है। सुबह वह घाट पर बैठ कर तीर्थयात्रियों के काम करता है और दोपहर में संस्कृत पढ़ाता है। वह धर्म रक्षा परिषद का अध्यक्ष भी है। धर्मनाथ अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने वाला इंसान है।
ग्लोबलाइज़ेशन का असर बनारस और अस्सी पर भी नजर आता है। कई विदेशी चेहरे यहां नजर आते हैं जो अस्सी में रहने का ठिकाना ढूंढते हैं, लेकिन मोहल्ला अस्सी में कोई भी विदेशी पेइंग गेस्ट नहीं बन पाता।
धर्मनाथ इसके खिलाफ है। उसका मानना है कि ब्राह्मणों के घर विदेशियों का क्या काम? दूसरे पंडे पैसे कमाने की लालच में विदेशियों को रहने की जगह देना चाहते हैं, लेकिन धर्मनाथ के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाते।
आखिरकार ऐसा समय आता है जब धर्मनाथ को भी अपने सिद्धांतों से समझौता करना पड़ता है। उसकी संस्कृत टीचर की नौकरी छूट जाती है। परिवार पालने के लिए वह एक विदेशी को अपने घर पेइंग गेस्ट रहने की मंजूरी दे देता है।
यही पर रहने वालों में कन्नी गुरु (रवि किशन) भी है जिसका जिंदगी में कोई सिद्धांत नहीं है। नेकराम (फैज़ल रशीद) भी है जिसके खुद के कुछ सिद्धांत है। इन तीनों के सिद्धांतों का टकराव बदलते दौर के अनुसार दिखाया गया है।