बैनर : यूटीवी मोशन पिक्चर्स निर्माता : रॉनी स्क्रूवाला निर्देशन एवं संगीत : विशाल भारद्वाज गीत : गुलजार कलाकार : शाहिद कपूर, प्रियंका चोपड़ा, अमोल गुप्ते, तेनजिंग नीमा, चंदन रॉय सान्याल और शिव सुब्रमण्यम * केवल वयस्कों के लिए रेटिंग : 2.5/5
फरहा खान (ओम शांति ओम), अनुराग कश्यप (देव डी) और विजय कृष्णा आचार्य (टशन) के बाद विशाल भारद्वाज ने भी सत्तर और अस्सी के दशक की कहानी को नए प्रस्तुतिकरण के साथ पेश किया है। ‘मकबूल’ और ‘ओंकारा’ जैसी फिल्म बनाने वाले इस निर्देशक ने हमशक्ल भाइयों और अपराध पर बन चुकी कई फिल्मों के आधार पर ‘कमीने’ बनाई है।
गुड्डू (शाहिद कपूर) सीधा-सादा है। हकलाता है। चार्ली (शाहिद कपूर) तुतलाता है। ‘स’ को ‘फ’ बोलता है। वह अमीर बनने के लिए हर रास्ते पर चलने के लिए तैयार है। उसका मानना है कि जीवन में दो रास्ते होते हैं। ‘शॉर्टकट’ और ‘छोटा शॉर्टकट’। दोनों भाई एक-दूसरे से नफरत करते हैं। तीन साल से दोनों ने एक-दूसरे की शक्ल नहीं देखी है।
स्वीटी (प्रियंका चोपड़ा) गुड्डू को चाहती है और उसका भाई भोपे (अमोल गुप्ते) छोटा-मोटा गैंगस्टर है, जो महाराष्ट्र में आए दूसरे प्रदेश के लोगों को खदेड़ना चाहता है। स्वीटी और गुड्डू शादी कर लेते हैं और नाराज भोपे उनके पीछे पड़ जाता है।
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चार्ली अंजाने में दो भ्रष्ट पुलिस ऑफिसर से ड्रग्स लूट लेता है, जिसका मूल्य करोड़ों रुपए है। चार्ली की जगह गुड्डू पकड़ा जाता है। इसके बाद दोनों भाइयों पर लगातार मुसीबतें आती जाती हैं। कैसे वे इनसे निपटते हैं इसे अपने तरीके से विशाल ने स्क्रीन पर पेश किया है।
कहानी में नयापन नहीं है, लेकिन इसका प्रस्तुतिकरण अलग तरह का है। फिल्म को समझने के लिए आपको लगातार चौकन्ना रहना पड़ता है। एक मिनट के लिए भी ध्यान भंग हुआ तो आगे की फिल्म समझने में कठिनाई हो सकती है। यही बात फिल्म के खिलाफ जा सकती है क्योंकि कहानी तो आम आदमी की पसंद की चुनी गई है, लेकिन उसका प्रस्तुतिकरण दर्शकों को बेहद समझदार मानकर किया गया है।
फिल्म का स्क्रीनप्ले बारीकी से लिखा गया है और उसे पेचीदगी के साथ पर्दे पर पेश किया गया है। विशाल पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि उन्होंने फिल्म इस तरह बनाई है कि दर्शक अपने दिमाग का भी उपयोग करें। फिल्म का अंत सामान्य है जबकि विशाल से अनोखे अंत की अपेक्षा थी।
शुरुआत के बीस मिनटों में फिल्म से तालमेल बैठाने में तकलीफ होती है क्योंकि दोनों हीरो द्वारा बोले गए संवादों को गौर से सुनना पड़ता है। फिल्म के किरदारों से परिचित होना पड़ता है। उसके बाद ही आप आनंद उठा सकते हैं।
निर्देशक विशाल ने पूरी फिल्म पर पकड़ बनाए रखी और उनका दबदबा फिल्म के हर विभाग में नजर आता है। फिल्म को उन्होंने वास्तविकता के निकट रखने की पूरी कोशिश की है।
उनका हीरो साफ-सुथरा या स्मार्ट नजर नहीं आता। वो गली का गुंडा है, इसलिए उसके बालों में धूल है। उसकी टी-शर्ट पसीने से लथपथ है। किरदारों की तरह उन्होंने पूरी फिल्म को रफ-टफ लुक दिया है। फिल्म को शूट भी इसी अंदाज में किया गया है। कैमरा लगातार हिलता रहता है और स्क्रीन पर ज्यादातर अंधेरा नजर आता है। क्लोज अप का बहुत ज्यादा उपयोग किया गया है। फिल्म के लोकेशन एकदम वास्तविक लगते हैं।
शाहिद कपूर ने डबल रोल अच्छे से निभाए हैं, लेकिन उनकी जगह कोई दमदार अभिनेता होता तो फिल्म में जान आ जाती। प्रियंका चोपड़ा ने महाराष्ट्रीयन लड़की के रूप में अच्छा अभिनय किया है और शाहिद पर वे हावी रही हैं। अमोल गुप्ते, तेनजिंग नीमा, चंदन रॉय सान्याल और शिव सुब्रमण्यम ने अपने-अपने पात्रों को जिया है।
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फिल्म का संगीत पहले ही लोकप्रिय हो चुका है और ‘ढेन टेनेन’ इस समय का सर्वाधिक हिट गीत है। गुलजार ने कहानी और किरदार के अनुरूप गीत लिखे हैं। विशाल के लिखे संवाद फिल्म का प्लस पाइंट है।
विशाल भारद्वाज नि:संदेह प्रतिभाशाली निर्देशक हैं, लेकिन बजाय पुराने दौर की कहानी को नए अंदाज में पेश करने के उन्हें कुछ नया करना चाहिए।