’कर्मा और होली’ में देखने लायक कुछ भी नहीं है। फिल्म का प्लॉट, स्क्रीनप्ले और अभिनय कुछ भी असर नहीं छोड़ता। उस फिल्म के बारे में आप क्या कह सकते हैं जिसका मूड गंभीर हो, लेकिन कई जगह बचकानी हरकतों को देख हँसी आती है।
मीरा (सुष्मिता सेन) और देव (रणदीप हुडा) अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को कुछ वक्त साथ बिताने के लिए बुलाते हैं। जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, सभी मेहमान एक दूसरे की जिंदगी के बारे में जानने लगते हैं और बातों ही बातों में कुछ छिपी हुई बातें निकल पड़ती हैं।
कागज पर यह विचार उम्दा प्रतीत होता है, लेकिन स्क्रीन पर इसे बेढंगे तरीके से दिखाया गया है। फिल्म के जरिये बहुत कुछ कहना चाहा है, लेकिन कुछ भी सामने नहीं आ पाता है। लेखन और निर्देशन (मनीष गुप्ता) दोनों खराब है।
सुचित्रा कृष्णमूर्ति और सुष्मिता सेन को छोड़ सभी का अभिनय खराब है। रणदीप हुडा ने अधूरे मन से काम किया है, नाओम कैम्बेल का अभिनय लाउड है। कुल मिलाकर ‘कर्मा और होली’ फिल्म से दूर रहना ही उचित है।