गट्टू : फिल्म समीक्षा

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निर्माता : चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी इंडिया
निर्देशक : राजन खोसा
संगीत : संदेश शांडिल्य
कलाकार : मोहम्मद समद, नरेश कुमार, भूरा

बच्चों के पसंदीदा विषय या उन पर आधारित फिल्में अब बॉलीवुड में बनने लगी हैं। मकड़ी, तारे जमीं पर और स्टेनले का डब्बा ने दर्शकों पर अपना खासा असर छोड़ा। अब ‘गट्टू’ आपके अंदर बैठे बच्चे का मनोरंजन करती है।

पतंगबाजी को इन दिनों फिल्मों में खास महत्व मिल रहा है। कुछ हफ्ते पूर्व रिलीज हुई ‘ये खुला आसमान’ में पतंगबाजी को फोकस किया गया था। पतंग (जो कि यूएस में रिलीज हुई है) और कई पो चे में भी ये देखने को मिलती है। गट्टू की कहानी में भी पतंगबाजी का महत्वपूर्ण स्थान है। गट्टू फिल्म यह संदेश देने में कामयाब है कि अपने सपनों को पूरा कीजिए।

इस फिल्म की कहानी हमारे शुरुआती दिनों की याद ताजा करती है। खासकर यदि आप छोटे शहर में बढ़े हुए हों। कड़वे यथार्थ को भी कहानी में शामिल किया गया है और सम्पन्न तथा सुविधा विहीन लोगों के अंतर को अच्छे से बताया गया है। बाल मजदूर की समस्या भी देखने को मिलती है।

‘आखिर में सच्चाई की जीत होती है’ यह उस शहर के स्थानीय स्कूल का मोटो है जहां गट्टू रहता है। गट्टू इतना गरीब है कि स्कूल नहीं जा पाता है। स्क्रैप यार्ड में वह एक व्यक्ति के लिए काम करता है जिसे वह ‘अंकल’ पुकारता है। अंकल ने उसे कुछ वर्षों पहले उसके बीमार पिता से खरीदा था।

बहाने बनाने में गट्टू का कोई जवाब नहीं है। मौका मिलते ही वह बहाना बनाता है और पतंग उड़ाने का शौक पूरा करता है। बच्चे पेंच लड़ाते हैं। वे उस पतंग को काली कहते हैं जिसके सामने कोई पतंग नहीं टिक पाती। कोई नहीं जानता कि उसे कौन उड़ाता है।

गट्टू उस पतंग को काटना चाहता है और उसके लिए उसे शहर की सबसे ऊंची जगह पर जाना होगा। यह ऊंची जगह है स्कूल की छत। गट्टू क्लासरूम में चला जाता है और उसे एक विद्यार्थी ही समझा जाता है। गट्टू काली पतंग को पछाड़ने के लिए पतंगबाजी के सारे नुस्खे अपनाता है, लेकिन उसकी सबसे बड़ी जाती तब होती है जब वह अपने साथियों को सच्चाई बताता है।

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गट्टू फिल्म को अंतराष्ट्रीय स्तर के कई फिल्म समारोहों में सराहा गया है। एक ऐसे बच्चे की कहानी, जो सीमित साधनों के बावजूद ऊंचाइयों तक पहुंचता है, को राजन खोसा ने बहुत अच्छे तरीके से बताया है। बच्चे की मासूमियत अच्छी लगती है।

मोहम्मद समद ने गट्टू के किरदार में जान डाल दी है। स्क्रीन पर उसे देखना बहुत अच्छा लगता है। गट्टू के अंकल के रूप में नरेश कुमार का काम भी सराहनीय है।

गट्टू फिल्म बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी लुभाती है। ऐसी फिल्म बॉक्स ऑफिस के बजाय उन लोगों के लिए बनाई जाती है जो अच्छा सिनेमा देखना चाहते हैं। जरूरी है कि ऐसी फिल्मों को प्रोत्साहित किया जाए।

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