फिल्म की अंतिम रील में हीरोइन को हीरो अपना असली नाम रिकी बहल बताते हुए कहता है कि वह सुधर गया है, लेकिन उसके बुरे से भले आदमी में परिवर्तित होने की प्रक्रिया इतनी आनंददायी नहीं है। आदित्य चोपड़ा की लिखी कहानी में मनोरंजन की जबरदस्त गुंजाइश थी, लेकिन स्क्रीनप्ले ऐसा लिखा गया कि मनोरंजन तो होता है, लेकिन आधा-अधूरा-सा।
खासतौर पर इंटरवल के बाद बोरियत इसलिए होती है क्योंकि कहानी को लंबा खींचा गया है और परदे पर जो घटनाक्रम घटते हैं वो दिलचस्प नहीं हैं। इंटरवल के पहले फिल्म जो उम्मीद जगाती है वैसा अंत नहीं हो पाता है, इसलिए फिल्म खत्म होने के बाद थोड़ी निराशा होती है।
रिकी बहल (रणवीर सिंह) हुलिया और नाम बदलकर भारत के कई शहरों में लड़कियों को अपने जाल में फंसाता है और उन्हें लाखों रुपये का चूना लगाकर चम्पत हो जाता है। उसकी शिकार बनी तीन लड़कियां मिलकर अपना खोया पैसा वापस पाने के लिए उसे ठगने का प्लान बनाती हैं। इसके लिए वे ईशिका (अनुष्का शर्मा) को चुनती हैं जो बहुत तेज-तर्रार है।
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फिल्म तब तक बहुत हल्की-फुल्की और मनोरंजक है जब तक रिकी लड़कियों को बेवकूफ बनाकर उन्हें ठगता है। हालांकि जिस आसानी से वह लड़कियों और उनके परिवार वालों को बेवकूफ बनाता है उस पर प्रश्न उठाए जा सकते हैं, लेकिन एंटरटेनमेंट वैल्यू होने के कारण इन वाकयों को हजम किया जा सकता है।
मनोरंजन का यह स्तर तब वैसा नहीं रहता जब लड़कियां रिकी को उल्लू बनाने की कोशिश करती हैं। इसका दोष स्क्रीनप्ले को दिया जा सकता है। सीधी चल रही कहानी में रोमांस को डाला गया है जो स्पीड ब्रेकर का काम करता है। रोमांस दिखाए बिना भी काम चल सकता था, लेकिन ज्यादा दर्शकों को खुश करने के चक्कर में मामला गड़बड़ हो गया।
फिल्म के दूसरे हिस्से का भार अनुष्का के कंधों पर डाला गया है। रणवीर का पात्र अचानक शरीफ हो जाता है। चुप्पी साध लेता है। इस बदलाव का असर फिल्म पर होता है क्योंकि अनुष्का के किरदार पर वो मेहनत नहीं की गई है जो रणवीर के लिए की गई है।
रणवीर सिंह का रोल ‘बैंड बाजा बारात’ में उनके द्वारा निभाए गए किरदार का एक्सटेंशन ही है। वे वही हावभाव लिए इस फिल्म में नजर आए हैं। अनुष्का का अभिनय बेहतर है, लेकिन उनके किरदार को जितना स्मार्ट दिखाया गया है, उसे जस्टिफाई करने के लायक सीन नहीं लिखे गए हैं। पंजाबी लड़की का रोल बिंदास तरीके से परिणिती चोपड़ा ने निभाया है और उनके संवाद बोलने का अंदाज मजेदार है।
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निर्देशक मनीष शर्मा का काम बेहतर है, लेकिन इस बार उन्हें ‘बैंड बाजा बारात’ जैसी स्क्रिप्ट नहीं मिली है। इसके बावजूद उन्होंने फिल्म को मनोरंजक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सलीम-सुलेमान का संगीत औसत दर्जे का है। केवल ‘आदत से मजबूर’ ही याद रहता है। बैकग्राउंड म्युजिक बेहतर है।
कुल मिलाकर ‘लेडिस वर्सेस रिकी बहल’ एक हल्की-फुल्की फिल्म है। ज्यादा उम्मीद और दिमाग नहीं लगाया जाए तो पसंद आ सकती है।