हीरोइन : फिल्म समीक्षा

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बैनर : यूटीवी मोशन पिक्चर्स, भंडारकर एंटरटेनमेंट
निर्माता : रॉनी स्क्रूवाला, मधुर भंडारकर, सिद्धार्थ रॉय कपूर
निर्देशक : मधुर भंडारकर
संगीत : सलीम मर्चेण्ट-सुलेमान मर्चेण्ट
कलाकार : करीना कपूर, अर्जुन रामपाल, रणदीप हुडा, शहाना गोस्वामी, मुग्धा गोडसे
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 2 घंटे 28 मिनट 11 सेकंड
रेटिंग : 2/5

यदि कोई निर्देशक अपने आपको दोहराने लगे तो यह उसके पतन की शुरुआत मानी जा सकती है। मधुर भंडारकर के साथ यही हो रहा है। फैशन को उन्होंने हीरोइन में दोहरा दिया है। सिर्फ पृष्ठभूमि बदली है, लेकिन कहानी वही है। वहां फैशन की पृष्ठभूमि में एक मॉडल जीरो से हीरो बनती है। कामयाबी संभालना उसके लिए मुश्किल होता है। प्यार के मामले में धोखे मिलते हैं और उसका पतन होता है। ‘हीरोइन’ में शुरू से ही दिखाया गया है कि माही अरोरा सफल हीरोइन है और बाकी की कहानी फैशन जैसी ही है।

मधुर की पहचान ऐसे निर्देशक की है जो सच्चाई को पेश करते हैं, लेकिन ‘हीरोइन’ में नकलीपन इतना हावी है कि हैरानी होती है। मधुर खुद फिल्म इंडस्ट्री से हैं, अच्छे-बुरे पहलू से परिचित हैं, फिर भी उनकी फिल्म वास्तविकता से दूर नजर आती है, खासतौर पर फिल्म के पहले हिस्से में। ज्यादा दूर नहीं जाए तो हाल ही के वर्षों में रिलीज हुई ‘द डर्टी पिक्चर’ और ‘लक बाय चांस’ में फिल्म इंडस्ट्री को करीब से जानने का अवसर मिलता है।

फिल्म में माही अरोरा नामक एक हीरोइन की पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को दिखाया गया है। प्रोफेशनल लाइफ वाले हिस्से को थोड़ा बेहतर कहा जा सकता है कि किस तरह एक हीरोइन अपने करियर को बचाने के लिए क्या-क्या समझौते करती है।

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फिल्म को पाने के लिए क्या-क्या तिकड़म लगाई जाती है। किस तरह से फिल्म रिलीज होने के ठीक पहले स्केण्डल बनाए जाते हैं। मीडिया को हथियार बनाया जाता है। पीआर एजें‍सी किस तरह से हीरोइन को एक ब्रांड बना देती है। फिल्मों से मिली कामयाबी को शादी में जाकर या मॉल का उद्‍घाटन कर भुनाया जाता है।

माही पर्सनल लाइफ वाले हिस्से में कहानी बुरी तरह मार खाती है। सुपरस्टार आर्यन, जो कि शादीशुदा है, को माही बेहद चाहती है। दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट चुकी है, लेकिन आर्यन किसी तरह की जवाबदारी नहीं चाहता है। माही के साथ वह कई बार दुर्व्यवहार करता है, झूठ बोलता है, लेकिन माही पता नहीं क्यों उसके ‍पीछे पड़ी रहती है? दूसरी ओर वह अंगद नामक क्रिकेट खिलाड़ी के प्यार को अस्वीकार कर देती है जो उससे शादी करना चाहता है।

माही अपनी जिंदगी में ढेर सारी गलतियां करती हैं और सजा भुगतती है। पूरी फिल्म में बाल्टी भर आंसू बहाती है, लेकिन एक बार भी दर्शकों का दिल उसके लिए पसीजता नहीं है। माही का किरदार इतना सतही लिखा गया है कि दर्शक उससे जुड़ नहीं पाते।

हेलन और करीना कपूर के बीच कुछ अच्छे दृश्य हैं। हेलन बीते जमाने की अभिनेत्री हैं और करीना को वे समझाती हैं कि शोहरत कुछ देती है तो बहुत कुछ छिन लेती है। ग्लैमर की चमक में यह दिखाई नहीं देता और जब समझ आता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। लेकिन अब इस सच्चाई से वर्तमान के स्टार अच्छी तरह परिचित हो चुके हैं और वे सभी अपने करियर और सफलता को अच्छी तरह संभाल रहे हैं।

हेलन की मौत वाला दृश्य भी उल्लेखनीय है। करीना अंतिम दर्शन के लिए उनके घर जाती है। यह देख मीडिया हेलन की मौत भूल जाता है और करीना से करियर संबंधी सवाल पूछता है। अजीब बात यह है कि करियर के शुरुआत में यह मीडिया अच्छा लगता है, लेकिन सफलता के बाद आप मीडिया से बचते फिरते हैं।

चंद दृश्यों को छोड़ दिया जाए तो फिल्म में बोरियत और उदासी हावी है। कई प्रसंग दोहराए गए हैं जिससे फिल्म बहुत लंबी हो गई है। फिल्म में मनोरंजन का अभाव है और आधे से ज्यादा समय तक माही आंसू बहाती रहती है। सुंदर करीना को इतनी देर तक रोते देखना भला किसे अच्छा लगेगा?

मधुर भंडारकर ने अपनी आदत के अनुसार एक-दो गे कैरेक्टर डाल दिए हैं जो बिलकुल नहीं चौंकाते। जरूरी नहीं है ‍कि हबार फैशन डिजाइनर गे ही हो। लेस्बियन वाले प्रसंग की भी फिल्म में कोई जरूरत नहीं थी।

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फिल्म देखने की एकमात्र वजह करीना कपूर हो सकती हैं। जब-जब उन्हें ग्लैमरस दिखाया गया स्क्रीन दमक उठता है। वे बेहद खूबसूरत नजर आईं। माही के दर्द और मूड को उन्होंने प्रभावी तरीके से पेश किया। यदि स्क्रिप्ट का साथ भी उन्हें मिलता तो वे और कमाल कर सकती थीं। छोटे-से रोल में शहाना गोस्वामी, रणदीप शौरी और दिव्या दत्ता प्रभाव छोड़ते हैं। अर्जुन रामपाल का चेहरा भावहीन रहा और उनसे बेहतर रणदीप हुडा रहे।

कुल मिलाकर इस हीरोइन में इतना दम नहीं है कि उसके लिए टिकट लिया जाए।

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