बहुत कम ऐसा देखने को मिलता है जब कलाकार, स्क्रिप्ट और निर्देशन के स्तर से ऊंचे उठ कर फिल्म को देखने लायक बना देते हैं। अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर ये कमाल फिल्म '102 नॉट आउट' में कर दिखाते है। पुरानी शराब की तरह इन दोनों के अभिनय में उम्र बढ़ने के साथ-साथ और निखार आता जा रहा है।
फिल्म की कहानी साधारण है, लेकिन जो बात उसे अनोखी बनाती है वो हैं इसके किरदार- 102 वर्ष का दत्तात्रय वखारिया (अमिताभ बच्चन) बाप है और उसका 75 वर्षीय बेटा बाबूलाल (ऋषि कपूर), शायद ही पहले ऐसे किरदार हिंदी फिल्म में देखे गए हों। पिता तो कूल है, लेकिन बेटा ओल्ड स्कूल है। बाबूलाल ने बुढ़ापा ओढ़ लिया है और गुमसुम, निराश रहता है। दूसरी ओर दत्तात्रय जिंदगी के हर क्षण का भरपूर मजा लेता है। वह बाबूलाल को सुधारने के लिए एक अनोखा प्लान बनाता है।
कथा, पटकथा और संवाद सौम्या जोशी के हैं। बाबूलाल को सुधारने वाले प्लान में कल्पना का अभाव नजर आता है और सब कुछ बड़ी ही आसानी से हो जाता है। यह कहानी की सबसे बड़ी कमजोरी है, लेकिन कुछ अच्छे सीन और कलाकारों का अभिनय फिल्म को डूबने से लगातार बचाते रहते हैं।
अमिताभ-ऋषि के बीच कुछ सीन इमोशनल करते हैं तो कुछ गुदगुदाते हैं। कुछ सीन बहुत लंबे भी हो गए हैं और ऐसा लगता है कि वो नाटक के लिए लिखे गए हों, फिल्म के लिए नहीं। फिल्म का अंत सहूलियत से लिखा गया है कि नई पीढ़ी पर यह बात ढोल दो कि उन्हें अपने पैरेंट्स से कोई लगाव नहीं है। दूसरी ओर ओल्ड जनरेशन के पिता-पुत्र की बांडिंग को अच्छे से दिखाया गया है।
निर्देशक उमेश शुक्ला ने बेहद सरल तरीके से कहानी को फिल्माया है। उन्होंने कुछ विशेष करने की कोशिश भी नहीं की है। लेखक की तरह उनका काम भी इसलिए आसान हो गया कि दो बेहतरीन कलाकार का साथ उन्हें मिला। अमिताभ और ऋषि के अभिनय में दर्शक इतने सम्मोहित हो जाते हैं कि खामियों की ओर उनका ध्यान जाता नहीं है। वैसे इस बात के लिए उमेश की तारीफ की जा सकती है कि दो वृद्ध अभिनेताओं को लीड रोल देने का जोखिम उन्होंने उठाया है।
दत्तात्रय वखारिया के रूप में अमिताभ बच्चन का अभिनय जबरदस्त है। 102 उम्र के जिंदादिल और 'युवा' वृद्ध के रूप में उन्होंने जान फूंक दी। गुजराती एक्सेंट में उनकी हिंदी सुनते ही बनती है। उन्होंने अपनी संवाद अदायगी में भी खासा बदलाव किया है। बाबूलाल की पत्नी की मृत्यु वाला किस्सा जब वे सुनाते हैं तो उनका अभिनय देखते ही बनता है।
ऋषि कपूर भी अभिनय के मामले में अमिताभ से कम नहीं रहे। उन्हें संवाद कम मिले और उनका किरदार एक 'दबा' हुआ व्यक्ति है, लेकिन एक निराश बूढ़े से हंसमुख 'युवा' में आने वाले परिवर्तन को उन्होंने अपने अभिनय से बखूबी दर्शाया है। इन दो दिग्गज कलाकारों के बीच जिमीत त्रिवेदी अपनी जगह बनाने में सफल रहे हैं।
102 नॉट आउट की अच्छी बात यह है कि खामियों के बावजूद फिल्म अपनी यह बात कहने में कामयाब रही कि उम्र महज एक नंबर है और जिंदगी को बहुत ज्यादा गंभीरता से जीना जरूरी नहीं है।