हिंदी मीडियम में दिखाया गया था कि किस तरह अंग्रेजी मीडियम और महंगे स्कूलों में एडमिशन पाने के लिए पैरेंट्स जतन करते हैं। अंग्रेजी मीडियम में छात्रों के विदेश में पढ़ने के मोह को दर्शाया गया है।
यह बात निर्देशक होमी अडजानिया ने कॉमेडी के साथ दिखाई है जो दर्शकों को हंसाती भी है और बताती है कि भले ही विदेश में अंग्रेजी बोली जाती हो, लेकिन हमारा देश महान है। इसके साथ और भी बातों को फिल्म में समेटा गया है।
उदयपुर में रहने वाले चंपक बंसल (इरफान) की घसीटेराम नाम से मिठाई की दुकान है जो कि उनके दादा के नाम पर है। घसीटेराम नाम से उदयपुर में कई दुकानें हैं और सभी रिश्तेदार इस नाम को लेकर अदालत में लड़ाई लड़ रहे हैं। अदालत में वे झगड़ते हैं और शाम को दारू साथ पीते हैं।
चंपक की तारिका (राधिका मदान) नामक बेटी है जिसकी मां बचपन में ही गुजर गई थी। तारिका की स्कूल की पढ़ाई अब खत्म होने वाली है और वह आगे की पढ़ाई के लिए लंदन जाना चाहती है। तारिका अच्छे नंबर हासिल कर इंग्लैंड जाने की पात्रता हासिल कर लेती है, लेकिन चंपक की एक गलती इस मेहनत पर पानी फेर देती है।
चंपक डोनेशन सीट के जरिये तारिका का एडमिशन लंदन के एक कॉलेज में करवाने का फैसला लेता है, लेकिन जब उसे पता चलता है कि इसमें एक करोड़ रुपये लगेंगे तो उसके होश उड़ जाते हैं।
तमाम मुश्किलों के बावजूद वह अपनी बेटी को लेकर इंग्लैंड जाता है और वहां पर कई मुश्किलों में फंसता है। क्या वह बेटी का एडमिशन करा पाता है? कहां से उसके पास इतना पैसा आता है? किन मुश्किल हालातों में वह घिर जाता है? इन प्रश्नों के जवाब फिल्म के खत्म होने पर मिलते हैं।
कहानी में कुछ खामियां हैं। जैसे चंपक के कारण तारिका को इंग्लैंड जाने का मौका गंवाना पड़ता है, यह कारण थोड़ा अजीब है और लेखक कुछ और सोच सकते थे। चंपक का इंग्लैंड पहुंचना और वहां पुलिस से उलझना। फिर नाम बदलकर इंग्लैंड जाना। यह सब कॉमेडी के लिए किया गया है, लेकिन इससे कहानी की विश्वसनीयता कम होती है।
लंदन में इंस्पेक्टर नैना कोहली (करीना कपूर खान) का फिल्म के अंत में अचानक चंपक की मदद करने वाली बात भी जल्दबाजी में दिखाई गई है। लंदन पहुंच कर चंपक अपनी बेटी के एडमिशन के लिए ज्यादा कुछ करते हुए भी दिखाया नहीं गया है और दर्शक समझ नहीं पाते कि आखिरकार चंपक वहां कर क्या रहा है। बबलू (रणवीर शौरी) वाला ट्रेक भी ठीक से लिखा नहीं गया है।
फिल्म के ये माइनस पाइंट्स कुछ हद तक प्लस पाइंट्स के नीचे छिप जाते हैं। फिल्म में ऐसे कई सीन हैं जो खूब हंसाते हैं। वन लाइनर शानदार हैं। चंपक और गोपी (दीपक डोब्रियाल) की जुगलबंदी शानदार हैं। इन्होंने कई कमजोर लिखे सीन को अपनी एक्टिंग के बूते पर दमदार बनाया है।
पिता और पुत्री के रिश्ते को भी फिल्म में अच्छे तरीके से दिखाया गया है और ऐसे कई सीन हैं जो आपको इमोशनल करते हैं। 18 वर्ष की उम्र में 'स्वतंत्रता' की जिद करती संतान और पिता का उसके लिए फिक्रमंद होना इस बातों को बिना संवादों के बखूबी फिल्म में दिखाया गया है।
बेटी की छोटी ड्रेस को पिता अपनी जेब में रख लेता है और बेटी जेब से वो ड्रेस निकाल लेती है, ऐसे फिल्म में कई सीन हैं जहां पर संवादों का उपयोग नहीं किया गया है।
बेहतरीन दृश्यों का फिल्म में बहाव बना रहता है जो कि लगातार मनोरंजन करते रहते हैं इसलिए कहानी की कमजोरियों पर आपका ध्यान कम जाता है। निर्देशक होमी की तारीफ करना होगी कि उन्होंने इन कमियों को छिपा लिया है।
फिल्म का सबसे बड़ा प्लस पाइंट है इसके लीड एक्टर्स की एक्टिंग। एक्टर्स कमाल के हो तो वे अपने अभिनय के दम पर फिल्म का स्तर ऊंचा उठा लेते हैं। इरफान खान ने यही किया है। बीमारी के कारण वे लंबे समय बाद स्क्रीन पर नजर आए हैं। यह दर्शकों का दुर्भाग्य है कि वे इरफान की कुछ फिल्मों से वंचित रह गए।
अंग्रेजी मीडियम में उनकी एक्टिंग लाजवाब है। उनके इमोशनल और कॉमेडी सीन तो देखते ही बनते हैं। छोटे-छोटे दृश्यों में वे अपना प्रभाव छोड़ते हैं। दीपक डोब्रियाल ने उनका साथ बेहतरीन तरीके से निभाया है और कुछ सीन तो वे इरफान की नाक के नीचे से चुरा ले गए हैं। कॉमिक सीन में उनकी टाइमिंग गजब है।
राधिका मदान की एक्टिंग भी बढ़िया है, हालांकि कुछ जगह वे ओवरएक्टिंग भी कर गईं। करीना कपूर खान और डिम्पल कपाड़िया का निर्देशक ठीक से उपयोग नहीं कर पाए। करीना का रोल छोटा है, लेकिन जब-जब वे स्क्रीन पर आती हैं छा जाती हैं। उनका रोल बेहतर लिखा जाना था। पंकज त्रिपाठी छोटे से रोल में खूब हंसाते हैं। रणवीर शौरी खास प्रभाव नहीं छोड़ते।
फिल्म के गीत हिट भले ही न हो, लेकिन कहानी को आगे बढ़ाते हैं। बैकग्राउंड म्युजिक भी फिल्म की थीम के अनुरूप है। कुल मिलाकर अंग्रेजी मीडियम कमियों के बावजूद अपना काम कर जाती है।