Chandigarh Kare Aashiqui Movie Review in Hindi : अभिषेक कपूर उन फिल्म निर्देशकों में से हैं जो कमर्शियल फॉर्मेट में रह कर भी कुछ अलग करने की कोशिश करते हैं। रॉक ऑन और काई पो छे जैसी बेहतरीन फिल्में उन्होंने दी है। उनकी ताजा फिल्म 'चंडीगढ़ करे आशिकी' में भी उन्होंने एक नया ट्विस्ट दिया है। यह मनविंदर मुंजाल उर्फ मनु और मानवी बरार की प्रेम कहानी है, लेकिन ट्विस्ट यह है कि मानवी ट्रांस गर्ल है। जब यह बात मनु को पता चलती है तो वह ठगा सा महसूस करता है। भारत जैसे रूढ़िवादी देश में तो इसको लेकर काफी मजाक बनाया जाता है, लेकिन रफ्तार भले ही धीमी हो इन बातों को स्वीकारा जा रहा है।
फिल्म की कहानी बहुत ही सिम्पल है। लड़का-लड़की मिले। प्यार हुआ। राज खुला और बात अब स्वीकारने की है। इसे और बेहतर लिखा जा सकता था, लेकिन लेखक नया सोच नहीं पाए। एक ट्रांस गर्ल को स्वीकारना वाला मुद्दा बहुत ही आसानी से दिखा दिया गया है जबकि इसे नाटकीय रूप देने का पूरा स्कोप था।
बहरहाल फिल्म को मनोरंजक बनाने पर फिल्ममेकर का ध्यान था और इसमें उन्हें सफलता मिली है। फिल्म के नाम में ही चंडीगढ़ है और पूरी फिल्म में चंडीगढ़ छाया हुआ है। वहां का जो कल्चर और एटीट्यूट है वो फिल्म की हर फ्रेम में नजर आता है। लस्सी, मस्ती, खुली जीप के साथ लाउडनेस के जो रंग फिल्म में नजर आते हैं वो इसे देखने लायक बनाते हैं।
किरदारों पर विशेष मेहनत की गई है और ये सीधे कनेक्ट होते हैं जिससे फिल्म में दर्शकों की रूचि पहली फ्रेम से आखिरी फ्रेम तक बनी रहती है। मनु और मानवी फिटनेस फ्रीक है। मनु जिम में दिन भर वर्कआउट करता रहता है और उसके डोले-शोले उसे गबरू जवान बनाते हैं। 30 का हो गया है और शादी नहीं हुई है। मनु के पिता चाहते हैं कि मनु की जल्दी शादी हो ताकि वे दूसरी शादी कर सके क्योंकि मनु की मां को गुजरे हुए वर्षों हो गए हैं।
इधर मानवी जुम्बा कर-कर अपने जीरो फिगर पर इतराती है। सजना-संवरना उसका शौक है। एक प्रोटीन डाइट लेता रहता है तो दूसरी का भोजन टेबलेट्स हैं। मनु रफ-टफ है, सांड की तरह भड़क जाता है और अंग्रेजी भेजे में नहीं घुसती तो मानवी अंग्रेजी में चटर-पटर करती है और शिष्टाचार उसके खून में है।
इन दोनों किरदारों के अंतर को लेकर बढ़िया दृश्य रचे गए हैं जो मनोरंजन करते हैं। साथ में मनु के पापा, दादा, दो बहनें, दो एक जैसे दिखने वाले दोस्त और मानवी की दोस्त के रूप में भी कई कैरेक्टर्स नजर आते हैं जो लगातार गुदगुदाते रहते हैं। मनु को जब मानवी के अतीत के बारे में पता चलने वाले सीक्वेंस भी हंसाने में कामयाब है। 'गबरू ऑफ ऑल टाइम' वाला जो ट्रैक है वो कहानी में पूरी तरह फिट नहीं बैठता।
अभिषेक कपूर की इस फिल्म में भले ही कहानी में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं है, लेकिन हास्य का बहाव उन्होंने फिल्म में लगातार बनाए रखा है। उन्होंने पंजाबी माहौल बहुत ही अच्छे तरीके से बनाया है, लाउड होते हुए भी यह अखरता नहीं है। साथ ही कलाकारों से बेहतरीन काम लिया है। मनु के हृदय परिवर्तन वाले सीक्वेंस को अच्छे से लिखा जाता तो फिल्म और बेहतर हो जाती। लेकिन अभिषेक की तारीफ इसलिए की जा सकती है कि उन्होंने विषय की कड़वी सच्चाई को संवेदनशीलता और परिपक्वता के साथ पेश किया है। फिल्म का संगीत ठीक है। संवाद बेहतरीन और संपादन चुस्त है।
आयुष्मान जबरदस्त कलाकार हैं और चंडीगढ़ करे आशिकी में यह बात वे एक बार फिर साबित करते हैं। जिस तरह से उन्होंने इस रोल के लिए बॉडी बनाई है वो काबिल-ए-तारीफ है। एकदम मुस्टंडे लगते हैं। साथ ही जो एटीट्यूड उन्होंने पकड़ा है वो कमाल का है। बिलकुल अपने किरदार में घुस गए हैं। वाणी कपूर इस फिल्म का सरप्राइज है। उन्हें कई इमोशनल सीन मिले जिसमें उन्होंने अपनी प्रतिभा दिखाई है। बाकी सभी कलाकारों का भी सपोर्ट उम्दा है।
चंडीगढ़ करे आशिकी मनोरंजन करने के साथ-साथ रूढ़ियों की बेड़ियों को तोड़ती है।
निर्माता : भूषण कुमार, प्रज्ञा कपूर, कृष्ण कुमार, अभिषेक नय्यर