1993 में प्रदर्शित फिल्म 'जुरासिक पार्क' को देख दर्शकों की आंखें फटी रह गई थीं। इस फिल्म में डायनासोर्स को ऐसा दिखाया था मानो सचमुच में देख रहे हों। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर भी धन की बरसात कर दी थी। इसके बाद जुरासिक पार्क एक लोकप्रिय फ्रैंचाइज हो गई। 'द लॉस्ट वर्ल्ड: जुरासिक पार्क' (1997) और जुरासिक पार्क 3 (2001) में रिलीज हुईं।
2015 में जुरासिक वर्ल्ड से इस सीरिज को रीबूट किया गया और अब इसका सीक्वल 'जुरासिक वर्ल्ड: फॉलन किंगडम' रिलीज हुआ है, जिसे हिंदी में डब कर 'जुरासिक वर्ल्ड: दहशत में सल्तनत' नाम से रिलीज किया गया है। डायनासोर्स की सल्तनत दहशत में इसलिए है क्योंकि इस्ला नुबलर आइलैंड जहां पर डायनासोर्स को रखा गया है वहां पर एक ज्वालामुखी फट पड़ा है।
डायनासोर्स को बचाने से सरकार अपना पल्ला झाड़ लेती है इससे डायनासोर्स के विनाश का खतरा है। यह प्रजाति विलुप्त हो सकती है। डायनासोर्स को बचाने के लिए ओवेन और क्लेयर अपने दो और साथियों के साथ मिशन पर निकलते हैं। वहां पहुंचने पर उन्हें पता चलता है कि डायनासोर्स को बेचने के लिए बचाया जा रहा है।
ऐसे में ओवेन और क्लेयर को न केवल डायनासोर्स की जान बचाना है बल्कि उनकी तस्करी को भी रोकना है। इस दोहरे मिशन में उन्हें लगातार कई अड़चनों का सामना करना पड़ता है।
फिल्म की कहानी ठीक-ठाक है। जब तक डायनासोर्स को बचाने का मिशन चलता है, तब तक पटरी पर रहती है, लेकिन जानवरों की नीलामी वाली बात ठीक तरह से दर्शाई नहीं गई है। क्यों इन खतरनाक जानवरों को लोग खरीदना चाहते हैं? उनका क्या मकसद है? इनके जवाब संतुष्ट नहीं करते।
इसके बावजूद यदि फिल्म बांध कर रखती है तो अपने भरपूर एक्शन के कारण। लगातार स्क्रीन पर ऐसा कुछ चलता रहता है जिससे उत्सुकता बनी रहती है। तरह-तरह के डायनासोर्स, धधकता ज्वालामुखी, खाक कर देने वाला लावा, डायनासोर्स की नई प्रजाति, डायनासोर्स की नीलामी, षड्यंत्र, छोटी बच्ची की मासूमियत जैसे कई प्रसंग आपको फिल्म से जोड़ कर रखते हैं।
ज्वालामुखी के फटने के बाद भागते जानवर और इंसान के दृश्य आपको रोमांचित कर देते हैं। फिल्म का क्लाइमैक्स लंबा है, लेकिन बढ़िया है। अंत खुला हुआ है ताकि जुरासिक वर्ल्ड की ट्रॉयोलॉजी तीसरे भाग के जरिये पूरी हो।
सबसे अहम बात यह कि इस फिल्म में आप जिस तरह के दृश्यों की उम्मीद लेकर जाते हैं वो भरपूर देखने को मिलते हैं इस वजह से खामियों की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं जाता।
फिल्म के निर्देशक जे.ए. बायोना ने कहानी की कमियों को अपने उम्दा प्रस्तुतिकरण से कवर किया है। यह फिल्म उन्होंने अपनी टारगेट ऑडियंस को ध्यान में रख कर बनाई है। उन्होंने कुछ नए प्रयोग भी किए हैं, दर्शकों को चौंकाया और डराया भी है।
पूरी फिल्म क्रिस प्रैट और ब्राइस डलास हॉवर्ड के कंधों पर टिकी हुई है और उन्होंने अपनी दमदार शख्सियत और अभिनय से फिल्म को विश्वसनीय बनाया है। कुछ नए एक्टर्स को भी जोड़ा गया है, लेकिन इससे फिल्म को विशेष फायदा नहीं हुआ है।
फिल्म के सीजीआई और स्पेशल इफेक्ट्स लाजवाब हैं। एकदम वास्तविक लगते हैं, कहीं भी नकलीपन नजर नहीं आता। इसके लिए तकनीशियन बधाई के पात्र हैं।
जुरासिक वर्ल्ड: फॉलन किंगडम में भले ही नवीनता न हो, लेकिन यह फिल्म भरपूर रोमांच और मजा देती है।