मारीच फिल्म समीक्षा: थ्रिलर के भेस में उबाऊ फिल्म

समय ताम्रकर

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022 (14:13 IST)
Maarrich film review in hindi तुषार कपूर को लीड रोल में लेकर फिल्म बनाने का जोखिम अब फिल्म प्रोड्यूसर नहीं ले सकते हैं इसलिए खुद प्रोड्यूसर बन कर हीरो बनने का शौक पूरा करने वाले रास्ते पर तुषार चल पड़े हैं। ओटीटी कंटेंट के भारत में लोकप्रिय होने के बाद से क्राइम आधारित विषय पर कई फिल्म और वेबसीरिज बन रही हैं। तुषार ने भी अपनी फिल्म 'मारीच' के लिए अपराध विषय चुना है। 
 
एक मर्डर केस है जिसको सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं पुलिस ऑफिसर राजीव दीक्षित (तुषार कपूर)। टीवी शो 'क्राइम पेट्रोल' में 45 मिनट में एक केस को दिखा दिया जाता है, और फिल्म में दो घंटे से ज्यादा वक्त लिया है। वैसे यह केस (कहानी) इतना मजबूत ही नहीं था कि इस पर फिल्म बनाई जाए। फिल्म बना रहे हैं तो कुछ बड़ा या बेहतर चुना जाना चाहिए था। निर्माता के रूप में तुषार ने दूसरी गलती खुद को फिल्म में लेकर की। पुलिस ऑफिसर के रोल में वे कहीं से भी नहीं जमते। 
 
मुंबई में रहने वाली एक मॉडल और उसकी दोस्त की हत्या हो गई है। राजीव इसकी जांच कर रहा है, लेकिन जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहा है मामला पेचीदा होता जा रहा है। राजीव पर सीनियर और मीडिया का दबाव आता है तो वह एक नारियल बेचने वाले को अपराधी बता कर फाइल बंद कर देता है। 
 
बुरा कर्म करता है तो तुरंत बुरा फल मिलने लगता है। अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन कर वह फिर मामला अपने हाथ में लेता है और अपराधी तक जा पहुंचता है। अंत में जब अपराधी के चेहरे से नकाब उतरता है तो दर्शक सोच में पड़ जाते हैं कि यह बंदा किसी भी एंगल से ऐसा नहीं लगता कि दो लड़कियों की हत्या कर दे। बिलकुल अक्षम है ये तो। तो रहा-सहा मजा भी किरकिरा हो जाता है। 
 
फिल्म को ध्रुव लाठेर ने लिखा और निर्देशित किया है और दोनों ही जिम्मेदारी उन्होंने ढंग से नहीं निभाई है। बतौर लेखक ड्रामे को ऐसा नहीं लिख पाए कि दर्शकों को कोई थ्रिल महसूस हो। पूरा टाइम फिल्म देखते समय दर्शक ऊंघते रहते हैं। पाप-पुण्य का ट्रेक जोड़कर सिर्फ कहानी को फैलाया गया है। 
 
बतौर निर्देशक वे कहानी को ढंग से स्क्रीन पर उतार नहीं पाए। शुरुआत में तो कैरेक्टर्स को पहचानने में ही तकलीफ होती है और कन्फ्यूजन होता है। निर्देशक के रूप में जवाबदारी है और खासतौर पर थ्रिलर में तो यह और भी जरूरी हो जाता है कि आप कैरेक्टर्स का परिचय दर्शकों से अच्छे से करवाएं। 
 
सीन की सीक्वेंसिंग भी सवालों के घेरे में है। पुलिस ऑफिसर जिस तरह से मामले की तहकीकात करता है, उसमें भी जरा भी मजा नहीं है। छोटी-छोटी बातें उन्होंने इग्नोर कर दी। जब भी टीवी पर न्यूज दिखाई जाती, नीचे टेक्स्ट के रूप में चलने वाली लाइनें भी नहीं बदल गई।  
 
जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है कि तुषार मिसफिट लगे। बतौर एक्टर भी निराश करते हैं और सिर्फ अपना ही ध्यान रखते हैं कि कब सामने वाला संवाद खत्म करे तो मैं बोलूं। कई बार तो सामने वाले एक्टर ने अपनी बात खत्म भी नहीं की और तुषार ने अपनी शुरू कर दी। 
 
नसीरुद्दीन शाह मंझे हुए कलाकार हैं और इस तरह के रोल तो वे चलते-फिरते निभा देते हैं, उन्हें ज्यादा नजर आना चाहिए। अनिता हसनंदानी रेड्डी और दीपान्निता शर्मा का अभिनय औसत रहा। राहुल देव छोटे और निराशाजनक रोल में हैं। 
 
फिल्म में गाने भी डाल दिए गए हैं जिनके लिए ठीक से सिचुएशन नहीं बनाई गई। सिनेमाटोग्राफी अच्छी है और एडिटिंग में शॉर्पनेस की कमी है क्योंकि फिल्म बहुत लंबी लगती है। 
 
मारीच राक्षस ने कंचन मृग बन श्रीराम और सीता को भ्रमित किया था, फिल्म 'मारीच' एक उबाऊ फिल्म है जिसने थ्रिलर का भेस धरा है। 
 

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