salaar movie review in hindi: सलार फिल्म की हीरोइन आध्या (श्रुति हासन) को एक बंदा, देवा (प्रभास) की कहानी सुनाता है जिसमें इतने किरदार और कठिन नाम होते हैं कि वह कंफ्यूज हो जाती है और दारू की डिमांड करती है, कुछ ऐसी ही हालत 'सलार' देखने आए दर्शकों की होती है। निर्देशक प्रशांत नील ने लंबे-लंबे वाइस ओवर के जरिये कहानी को सुनाया है और बीच-बीच में एक्शन दृश्यों को रखा है। इससे स्पष्ट होता है कि संवादों के जरिये ड्रामे को दिखाने में उनकी ज्यादा दिलचस्पी नहीं है और सिर्फ हार्ड कोर एक्शन के जरिये दर्शकों का मनोरंजन करने में उनका यकीन है।
प्रशांत नील ने 'केजीएफ' के दो चैप्टर बना कर दर्शकों का ध्यान खींचा था। सलार में भी उन्होंने अपनी काल्पनिक दुनिया बनाई है। खानसार नामक एक देश, जो भारत से लगा हुआ है, लेकिन दुनिया के नक्शे पर उसका कोई स्थान नहीं है। दुनिया भर के सारे काले काम यहां होते हैं। काले से याद आया कि प्रशांत को यह रंग बेहद पसंद है, लिहाजा अधिकतर पात्र काले रंग के कपड़े पहने होते हैं और स्क्रीन पर भी यह रंग छाया हुआ है।
केजीएफ से प्रशांत बाहर नहीं आना चाहते हैं और 'सलार' केजीएफ का एक्सटेंशन ही लगती है। स्वैग वाला हीरो जो मां को बहुत चाहता है, शक्तिशाली इतना की सैकड़ों को पल भर में धूल चटा देता है, कोयले की खदान, पॉवर हासिल करने में लगे कुछ शक्तिशाली लोगों के इर्दगिर्द ही कहानी बुनी गई है।
खानसार में रहने वालों की अपनी आर्मी है। किसी के पास अफगानिस्तान के, किसी के पास रशिया के, तो किसी के पास ऑस्ट्रेलिया के लड़ाके हैं जो आधुनिक तकनीक और हथियारों से लैस है। लेकिन वरदा (पृथ्वीराज सुकुमारन) के पास सिर्फ एक बंदा देवा है जो दुनिया भर की सेनाओं पर भारी है।
दोस्ती-दुश्मनी, हीरो-विलेन की इस कहानी में ड्रामा बैकसीट पर है और एक्शन ड्राइविंग सीट पर। तलवार, चाकू, भाले से गर्दनें, हाथ, पैर काटे गए हैं। मुक्कों, पानों, रॉड्स से सिर फोड़े और हाथ-पैर तोड़े गए हैं। फिल्म को रस्टिक लुक दिया गया है, इसलिए बैकग्राउंड में भट्टियां, आग, लोहे को पिघला कर हथियार बनाने, धूल, बड़ी जेसीबी मशीनें, क्रेन्स, लोहे के भंगार रखे गए हैं ताकि दर्शक तपन को फील कर सके। लेकिन ये तपन दर्शक किरदारों के हाव-भावों में फील नहीं कर पाते हैं क्योंकि फिल्म का हीरो एक्सप्रेशन लेस है, वह बोलता बिलकुल ही नहीं है और सिर्फ हाथ-पैर चलाता रहता है।
सलार में दोस्ती का एंगल ही इसको केजीएफ से अलग बनाता है, वरना प्रशांत नील का कहानी कहने का अंदाज और कई किरदार बार-बार केजीएफ की याद दिलाते रहते हैं। केजीएफ में एक्शन के पीछे ड्रामा भी था जो एक्शन दृश्यों को धार देता था, लेकिन सलार में यह बात नदारद है। वरदा जैसे किरदार जिन्हें कभी बहुत शक्तिशाली दिखाया जाता है तो कभी बेहद लाचार, इससे फिल्म कमजोर पड़ती है।
सलार को दो भागों में बनाया गया है। सलार: पार्ट 1- सीज़फायर के अंत में कुछ प्रश्नों को छोड़ा गया है जिनके जवाब दूसरे पार्ट में मिलेंगे।
निर्देशक प्रशांत नील ने यह फिल्म एक्शन लवर्स के लिए बनाई है और उन्हें भरपूर एक्शन देखने को भी मिलता है, लेकिन कहानी में नई बात या ड्रामा पॉवरफुल होता तो इस मूवी को पसंद करने वालों की संख्या ज्यादा होती। प्रशांत ने पहले घंटे में दर्शकों को उलझाया है। कुछ ऐसे घटनाक्रम दिखाए हैं, जिसको लेकर दर्शकों के दिमाग में सवाल पैदा होते हैं और फिर उन्होंने धीरे-धीरे जवाब देना शुरू किए।
सिनेमाटोग्राफर भुवन गौड़ा ने डार्क टोन में फिल्म को शूट किया है। कम लाइट्स रखते हुए उन्होंने ब्लैक कलर की थीम को अपनाया है। एक्शन दृश्य बेहद सफाई के साथ शूट किए हैं और उनकी सिनेमाटोग्राफी लाजवाब है। एक्शन फिल्म का प्लस पाइंट है, जिसमें स्टाइल कम और मारकाट ज्यादा है। दो-तीन एक्शन सीक्वेंस तो 'सलार' के हाइलाइट्स हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक दमदार है।
प्रभास को बहुत कम संवाद मिले और उन्होंने भावहीन चेहरा रखा। वे वो स्पार्क नहीं पैदा कर पाए जो 'केजीएफ' में यश ने पैदा किया था। श्रुति हासन ओवरएक्टिंग का शिकार रही। पृथ्वीराज सुकुमारन और जगपति बाबू की एक्टिंग उम्दा रही।
कुल मिलाकर सलार में हाई ऑक्टेन एक्शन तो है, लेकिन दिल को छू लेने वाला ड्रामा नहीं है।