अपूर्वा फिल्म समीक्षा: डर के आगे जीत है

समय ताम्रकर

शनिवार, 25 नवंबर 2023 (17:34 IST)
मुसीबत में कोई फंस जाता है तो शुरू में घबराता है। किसी तरह से बच निकलने की कोशिश करता है। लेकिन सारे रास्ते बंद हो तो न जाने कहां से हिम्मत आ जाती है और वह तमाम मुश्किलों के बावजूद लड़ने लगता है। अपूर्वा (तारा सुतारिया) के सामने भी ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं जब चार सिरफिरे उसे बस से खींच कर सुनसान जगह पर ले जाते हैं। इरादे नेक नहीं हैं। बर्ताव जानवरों से भी बदतर है। नाजुक सी अपूर्वा और 4 गुंडों के संघर्ष की दास्तान को फिल्म में दिखाया गया है।
यह फिल्म अनुष्का शर्मा की 'एनएच 10' की याद दिलाती है। हालांकि 'अपूर्वा' उस ऊंचाई को तो नहीं छूती, फिर भी दर्शकों को बांधे रखती है। कुछ बातें इस फिल्म के पक्ष में हैं। ओटीटी पर इसे रिलीज किया गया है और इस तरह की टाइमपास मूवीज़ ओटीटी पर पसंद की जाती हैं। फिल्म मात्र डेढ़ घंटे की है। कहानी का अंत क्या होगा, अंदाज लगाना बेहद आसान है, लेकिन छोटी अवधि के कारण यह फिल्म पसंद आती है। 
 
निखिल नागेश भट फिल्म के राइटर और डायरेक्टर हैं। चूंकि फिल्म सीधे ओटीटी पर रिलीज की गई है इसलिए निखिल ने सिंगल ट्रेक पर चलते हुए फिल्म बनाई है। फालतू के दृश्यों से उन्होंने परहेज रखा और फिल्म की शुरुआत से ही सीधे मुद्दे पर आए हैं। बतौर निर्देशक वे दर्शकों को अपूर्वा के किरदार से जोड़ने में सफल रहे हैं। अपूर्वा के लिए कदम-कदम पर मौजूद खतरे और तनाव को दर्शक महसूस करते हैं। 
 
जुगनू (राजपाल यादव), सुख्खा (अभिषेक बनर्जी), बल्ली (सुमित गुलाटी) और छोटा (आदित्य गुप्ता) के किरदार को इस तरह से लिखा गया है कि दर्शक इनसे पहली फ्रेम से ही नफरत करने लगते हैं और चाहते हैं कि इनके चंगुल से किसी तरह से अपूर्वा बच निकले। इन चारों गुंडों की सोच, गुस्सा और हरकतें दर्शकों को गुस्सा दिलाती है। फिल्म की लोकेशन भी खौफनाक माहौल बनाती है। 
 
निर्देशक के तौर पर निखिल नागेश भट्ट प्रभावित करते हैं। उनका फिल्म मेकिंग दर्शकों को जकड़ कर रखता है। ड्रामा रियलिटी के इतने बेहद नजदीक होने के कारण दर्शकों पर प्रभाव छोड़ता है। फिल्म में एक ज्योतिष वाला ट्रैक भी है जो अधूरा सा लगता है। साथ ही अपने धंधे को छोड़ कर इन चारों का अपूर्वा के पीछे लगने वाला कारण  और ठोस होना था। 
 
तारा सुतारिया को अच्छा मौका मिला है। उनका अभिनय पहले के मुकाबले बेहतर तो है, लेकिन अभी भी बहुत गुंजाइश बाकी है। उनकी जगह कोई सशक्त अभिनेत्री होती तो फिल्म ऊंचाइयों को छूती। अभिषेक बनर्जी बेहद खतरनाक नजर आए और अपने प्रति दर्शकों की सर्वाधिक नफरत हासिल करने में कामयाब रहे। राजपाल यादव को निगेटिव रोल में देखना अच्‍छा लगा और उन्हें कुछ अलग करने का अवसर भी मिला। सुमित गुलाटी और आदित्य गुप्ता भी प्रभावित करते हैं।
 
केतन सोढ़ा का बैकग्राउंड म्यूजिक तनाव को और बढ़ाता है। अंशुमन महले की की सिनेमाटोग्राफी शानदार है। शिवकुमार पानिककर की एडिटिंग सुपर शॉर्प है। थ्रिलर देखना पसंद है तो अपूर्वा को समय दिया जा सकता है।     
 
 
 
 

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