Teri Baaton Mein Aisa Uljha Jiya review: रोबोट और इंसान के बीच प्रेम होने का कॉन्सेप्ट हम कुछ फिल्मों में देख चुके हैं। वैसे अब वो दिन ज्यादा दूर नहीं है जब आप रोबोट के रूप में अपना जीवनसाथी चुन सकेंगे जो आपकी हर बात मानेगा और जरूरत होने पर उसे बंद भी किया जा सकता है। इंसानों के बीच वैसे भी प्रेम कम होता जा रहा है, लेकिन क्या इंसान भावनाओं की कमी महसूस नहीं करेगा जो उसे इंसान से मिलती है या वो खुद भी मशीन में तब्दील होता जा रहा है।
शाहिद कपूर और कृति सेनन अभिनीत फिल्म 'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' रोबोट और इंसान के रिश्ते की कहानी है। ट्रेलर में ही बता दिया गया था कि सिफ्रा (कृति सैनन) एक रोबोट है। रोबोटिक्स इंजीनियर आर्यन (शाहिद कपूर) ये बात जाने बिना ही उसे दिल दे बैठता है।
राज खुलता है तो भी वह उससे शादी करना चाहता है क्योंकि उसे अपनी पसंद की कोई लड़की नहीं मिलती। सिफ्रा को बनाने वाली आर्यन की मौसी उर्मिला (डिम्पल कपाड़िया) उसे रोकती है, लेकिन आर्यन नहीं मानता। अब आगे क्या होने वाला इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
निर्देशक जोड़ी अमित जोशी और आराधना शाह ने कहानी को कॉमेडी के ट्रैक पर रख कर फिल्म को आगे बढ़ाया है, लेकिन कहानी को वे विश्वसनीय नहीं बना पाए।
आर्यन जो खुद रोबोटिक्स इंजीनियर है, वह कैसे नहीं पहचान पाया कि सिफ्रा एक रोबोट है। जब यह भेद खुलता है तो वह एक मशीन से शादी करने की जिद क्यों करता है? वह अपने घर वालों को यह बात क्यों नहीं बताता कि सिफ्रा एक रोबोट है? घर वालों की भावनाओं से खेलने के पीछे उसका क्या मकसद है? इन सवालों के सतही जवाब फिल्म में मिलते हैं।
लेखक ने कुछ बातें अपनी सहूलियत के हिसाब से फिल्म में रखी है। सिफ्रा में गड़बड़ियां तभी शुरू होती है जब उसकी शादी होने वाली रहती है ताकि भेद खुल जाए।
फिल्म का आइडिया अच्छा है और कॉमेडी की भरपूर गुंजाइश भी थी, लेकिन उसका पूरा फायदा नहीं उठाया गया है। फिल्म को जरूरत से ज्यादा खींचा गया है। आर्यन के दादा का हॉस्पिटल में भर्ती होने वाला सीक्वेंस की कोई जरूरत नहीं थी। इसी तरह कुछ कॉमेडी सीन जैसे सिफ्रा का पुलिस स्टेशन जा कर शिकायत करना बिलकुल सपाट है।
फिल्म के शुरुआत में फैमिली और कॉमेडी के सीन अपील नहीं करते। इसके बाद फिल्म सही रास्ते पर चलती है, लेकिन बीच-बीच में कच्चे रोड पर भी उतर जाती है। हालांकि कुछ कॉमेडी सीन अच्छे हैं जो हंसाते भी हैं, मनोरंजन भी करते हैं। इमोशनल सीन की कमी महसूस होती है।
फिल्म के अंत का इंतजार रहता है कि आखिर में क्या होगा, लेकिन क्लाइमैक्स दमदार नहीं है। तेरी बातों में उलझा जिया यदि चल निकली तो सेकंड पार्ट भी बनेगा, जिसका इशारा फिल्म के आखिर में दिया गया है।
निर्देशक अमित जोशी और आराधना शाह ने फिल्म के मूड को हल्का-फुल्का रखा है, लेकिन बात को जरूरत से ज्यादा खींचने पर असर कम हो गया है। खासतौर पर सेकंड हाफ में उनके पास दिखाने के लिए ज्यादा नहीं था और यही पर फिल्म घिसटने लगती है।
शाहिद कपूर की एक्टिंग उम्दा है। उनकी कॉमिक टाइमिंग के कारण कुछ सीन देखने लायक बने हैं। कृति सेनन का किरदार कठिन था जो उन्होंने बेहतरीन तरीके से अदा किया। रोबोट के रूप में वे परफेक्ट लगीं। धर्मेन्द्र और डिम्पल कपाड़िया की एक्टिंग औसत रही।
जिस तरह से फिल्म का टाइटल कुछ ज्यादा ही लंबा हो गया है, वही हालत फिल्म की भी है। थोड़ा हंसाती है थोड़ा पकाती है।