The Elephant Whisperers Hindi Review: ऑस्कर पुरस्कार की बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म श्रेणी में विजेता रही 41 मिनट की खूबसूरत फिल्म द एलिफ़ेंट व्हिस्परर्स तमिलनाडु के मुदुमलई नेशनल पार्क, निलगिरी के पहाड़ों के पास एशिया के सबसे पुराने थेप्पकाडु एलिफे़ंट कैम्प (Theppakadu Elephant Camp) में काम करने वाले एक दक्षिण भारतीय युगल और अनाथ हाथी, रघु और नन्हे अम्मू के बेहद अनूठे संबंधों के इर्द-गिर्द बुनी हुई है। कार्तिकी गोंजाल्विस (Kartiki Gonsalves) के निर्देशन में बनी द एलिफ़ेंट व्हिस्परर्स (The Elephant Whisperers) को बेस्ट डॉक्युमेंट्री शॉर्ट फिल्म के ऑस्कर ने चोटी के निर्देशकों में स्थापित कर दिया है।
द एलिफ़ेंट व्हिस्परर्स में सिनेमेटोग्राफी कमाल की है। जंगल, पहाड़ और वन्यप्राणियों को इतनी सुंदरता से दिखाया गया है कि फिल्म देखते हुए आप सम्मोहित हो जाते हैं और पहले सीन से ही फिल्म दर्शकों से कनेक्ट कर लेती है।
धुंध से भरे पहाड़ों की अनमनी सुबह, जंगल में जागती हुई रातें, ऊंघती शामें, धूप सेंकती नदियां और इस खूबसूरत पृष्ठभूमि में हाथियों और इंसानों के बीच पनपता नि:स्वार्थ प्रेम और करूणा... तमिल भाषा में बनी इस फिल्म के विजुअल्स इतने प्रभावी हैं कि कई बार बिना भाषा जाने आप बोम्मन और रघु के संवाद समझ जाते हैं और तुरंत इस अनोखे रिश्ते से कनेक्ट हो जाते हैं।
इसका एक बड़ा कारण है कि कार्तिकी लंबे समय तक डिस्कवरी और एनिमल प्लेनेट चैनल्स में कैमरा क्रू के तौर पर जुड़ी रही हैं। उन्हें जंगल और वहां रहने वाले प्राणियों की गहरी समझ है।
फिल्म की कहानी है नीलगिरी पहाड़ों के पार, मायर नदी के पास थेप्पकडू एलिफेंट कैंप की, जहां बोम्मन और बेली रहते हैं। एक अनाथ हाथी रघु को वन विभाग बोम्मन और बेली की देख-रेख में रखता है। बोम्मन और बेली कट्टूनायकन जनजाति के हैं जो जंगलों में ही रहते आए हैं।
रघु, बोम्मन और अम्मू की शरारतें, अपनापन और निश्छल प्रेम देखते हुए मन शांत हो जाता है। यह दुनिया कितनी सुन्दर हो सकती है इसका अहसास होने लगता है।
बेली के पति को जंगल में बाघ ने मार डाला था और वो अपनी संतान भी खो चुकी है, तभी से बेली और जंगल का रिश्ता थोड़ा मुश्किल हो गया है। अपनों को खो चुके रघु और बेली दोनों ही एक जैसे दुख से जुड़ जाते हैं। फुसफुसा कर और स्पर्श के जरिये एक दूसरे को तसल्ली देते हैं और उनमें बना यह रिश्ता बेहद सुंदर और आंखें नम कर देने वाला है।
इस फिल्म में कार्तिकी ने बिना किसी बोझिलता के इस बात को बेहद प्रभावी तरीके से दिखाया है कि हाथी कितने संवेदनशील, समझदार और नि:स्वार्थ प्रेम रखने प्राणी होते हैं। इस फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी है कि इसमें किसी नैरेटर के बजाए बोम्मन और बेली अपनी कहानी खुद ही कहते हैं और इस वजह से दर्शक स्वयं को उनके साथ और अधिक जुड़ा हुआ महसूस करता है, जिससे एक फिल्म में कोई नकलीपन या अस्वाभाविकता नजर नहीं आती।
हाथी के दो अनाथ बच्चों को पालने वाले आदिवासी युगल के बीच भी विश्वास, प्रेम और अपनेपन का संबध बनता है। विधवा पुनर्विवाह के स्टिग्मा से बाहर आते हुए यह फिल्म जनजाति समुदाय की सामूहिक विधियों और उनके एनीमिस्ट धर्म विश्वासों को बताने के बजाय दिखाने पर विश्वास रखती है। बोम्मन और बेली की जंगल में शादी के दौरान उत्सवपूर्ण माहौल में जब महिलाएं बॉनफायर के आसपास इकट्ठा हो लोक गीत गाती हैं और पुरुष हाथियों को सजाते हैं, तब दर्शकों के चेहरे पर भी मुस्कान सज उठती है।
एक और बड़ा संदेश निकल कर आता है कि जंगलों और उसमें रहने वाले प्राणियों को बचाना है तो हमें भी जंगल में रहने वालों की संवेदनशीलता को अपनाना होगा। सभ्यता और विकास के फेर में इंसान और वन्यजीवों के सहस्तित्व को संजोने पर भी सोचना होगा। इस फिल्म की नींव है "प्रेम और भरोसा" और हमारी पूरी दुनिया ही इस आधार पर अब तक टिकी हुई है।
इस फिल्म को देखते हुए लगा कि इसमें मनुष्य और प्राणियों के बीच विश्वास, प्रेम और शांतिपूर्ण सहस्तित्व पर कोई अद्भुत कविता लिखी जा रही है, ऐसी प्रेम-कविता को, जो भाषाओं से भी परे है.... आप भी जरूर देखिए!!