सेल्फी फिल्म समीक्षा: सुपरस्टार और कॉमनमैन का महाबोर घमासान

समय ताम्रकर

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2023 (15:24 IST)
Selfiee movie review सेल्फी को लेकर इतना जुनून है कि आए दिन सेलिब्रिटीज़ के साथ धक्का-मुक्की और झूमाझटकी हो जाती है। सेल्फी लेने के पहले फैंस विनम्र रहते हैं, लेकिन सेल्फी का मौका नहीं मिलता तो उनके तेवर बदल जाते हैं। सेल्फी नहीं मिली तो चोट सीधे ईगो पर लगती है। फिल्म 'सेल्फी' में आरटीओ में काम करने वाला ओमप्रकाश अग्रवाल (इमरान हाशमी) केवल एक सेल्फी के बदले में सुपरस्टार विजय (अक्षय कुमार) को ड्राइविंग लाइसेंस देने को तैयार हो जाता है, लेकिन बात सेल्फी तक पहुंचे उसके पहले ऐसी गलतफहमी हो जाती है कि यह सुपरस्टार बनाम उसके जबरा फैन के आमने-सामने होने की कहानी बन जाती है। 
 
हिंदी फिल्म वाले लगातार रीमेक बना रहे हैं और सेल्फी मलयालम फिल्म 'ड्राइविंग लाइसेंस' का हिंदी रीमेक है। ड्राइविंग लाइसेंस नाम कहानी को ज्यादा सूट करता है क्योंकि लड़ाई सेल्फी को लेकर नहीं बल्कि लाइसेंस को लेकर है। बहरहाल, रीमेक बनाने में हिंदी फिल्म वाले गड़बड़ कर देते हैं। पिछले सप्ताह रिलीज हुई 'शहज़ादा' भी इसी बात का शिकार थी और यही बीमारी सेल्फी में भी है। रीमेक, मूल फिल्म के स्तर का नहीं है। 
 
आरटीओ ऑफिसर ओमप्रकाश की अपनी पत्नी और आठ साल के बेटे के साथ भोपाल में रहता है। ओमप्रकाश और उसका बेटा सुपरस्टार विजय के दीवाने हैं। विजय शूटिंग के लिए भोपाल आता है तो ओमप्रकाश की सेल्फी लेने की तमन्ना जाग उठती है। विजय का ड्राइविंग लाइसेंस खो चुका है। जहां रिकॉर्ड रखे थे वहां आग लग गई थी। उसे ड्राइविंग लाइसेंस की सख्त जरूरत है। बात ओमप्रकाश तक पहुंचती है तो वह पांच मिनट के लिए विजय को आरटीओ ऑफिस बुलवाता है। विजय पहुंच जाता है, लेकिन वहां पर मीडिया को देख भड़क जाता है। मीडिया को बात पता चल जाती है कि विजय के पास लाइसेंस नहीं है और वह बिना लाइसेंस के गाड़ी अब तक चला रहा है। विजय को लगता है कि मीडिया को ओमप्रकाश ने बुलाया है। वह सारा गुस्सा ओमप्रकाश पर उतारता है। 
 
ओमप्रकाश भी भड़क जाता है और कहता है कि अब उसे आम आदमी की तरह ड्राइविंग लाइसेंस लेने के लिए लाइन में लगना होगा, परीक्षा देनी होगी, तभी लाइसेंस बनेगा। विजय यह चैलेंज कबूल लेता है। 


 
फिल्म की कहानी अलग जरूर है, लेकिन बात का जिस तरह से बतंगड़ बनाया गया है वो अपील नहीं करता। जरा सी बात थी जो सुलझाई जा सकती थी। विजय को ओमप्रकाश पर भड़कने के पहले पूछना था कि क्या उसने मीडिया को बुलाया है। यदि वह हां बोलता तो उसे भड़कने का हक था। बिना पूछे बात को तमाशा बना कर खूब खींचा गया जिससे दर्शक फिल्म से जुड़ नहीं पाते। 
 
लेखक ने यह बात रखने की कोशिश की है कि विजय ने ओमप्रकाश के बेटे के सामने उसकी बेइज्जती की है और ओमप्रकाश अपने बेटे का हीरो है इसलिए वो विजय से पंगा लेता है, लेकिन यह बात फिल्म में उभर कर नहीं आती क्योंकि इसे उभारने के लिए सीन नहीं रखे गए हैं। जिससे यह ट्रैक अपना प्रभाव खो देता है। 
 
कहानी और स्क्रीनप्ले इस तरह लिखा गया है कि कई सवाल खड़े हो जाते हैं। पहली बात तो ये कि ओमप्रकाश बिना परीक्षा लिए विजय को लाइसेंस कैसे दे रहा था? ओमप्रकाश इतनी बड़ी हैसियत नहीं रखता है कि वह सुपरस्टार विजय से टकरा सके। ओमप्रकाश अपने सीनियर्स की भी नहीं सुनता, क्यों? 
 
स्क्रीनप्ले राइटर ऋषभ शर्मा ने दर्शकों के मनोरंजन के लिए जो सीन लिखे हैं वो निहायत ही बकवास हैं। ड्राइविंग लाइसेंस के लिए विजय की ओमप्रकाश जिस तरह से परीक्षा लेता है, लगता है केबीसी शो हो रहा है। इस परीक्षा का सीधा प्रसारण होता है। पूरे देश की जनता कामधाम छोड़ कर इसे देखती है। माहौल ऐसा बनाया गया है जैसे भारत-पाकिस्तान का क्रिकेट मैच हो। कहने का मतलब ये कि फिल्म में जो माहौल बनाया गया है वो बेहद नकली है और बनावटी है। जरा भी विश्वास नहीं होता। 
 
कॉमेडी के नाम पर अभिमन्यु सिंह के जो दृश्य हैं वो बेहद बचकाने हैं। हंसी नहीं आती बल्कि खीज पैदा होती है। मीडिया को खूब दिखाया गया है, लेकिन कोई पत्रकार कभी दमदार सवाल नहीं करता। कुछ एंकर्स से जोकरनुमा हरकतें करवाई गई हैं जिससे बात की गंभीरता ही खत्म हो जाती है। फिल्म में ऐसे कई दृश्य हैं जो बेहद सतही हैं और निर्देशक तथा लेखक की समझ पर सवाल पैदा करते हैं। 
 
निर्माता के रूप में कई बड़े नाम हैं, लेकिन प्रोडक्शन को देख लगता है कि पैसा बचाया गया है। फिल्म को न ढंग से शूट किया गया है और न ही कलाकारों का मेकअप ठीक से किया गया है। अधिकांश कलाकारों की विग घटिया किस्म की है। 
 
सेल्फी का निर्देशन राज मेहता ने किया है जिन्होंने 'गुड न्यूज' जैसी उम्दा फिल्म अक्षय कुमार को लेकर बनाई थी। शायद इसी कारण अक्षय ने सेल्फी के लिए हां कह दिया हो। बतौर निर्देशक राज मेहता बुरी तरह निराश करते हैं। रीमेक बनाने में वे दिशा भटक गए। न ओरिजनल फिल्म जैसी बना पाए और न अपनी तरफ से कुछ नया दे पाए। कई सीन हड़बड़ी में किए गए हैं और राज के काम में फिनिशिंग टच की कमी नजर आती है। 
 
अक्षय कुमार इमोशनल दृश्यों में अपनी एक्टिंग स्क्ल्सि से प्रभावित करते हैं, लेकिन वैसे सुपरस्टार नहीं लगे जैसा कि उन्हें फिल्म में बताया गया है। इमरान हाशमी का अभिनय ठीक कहा जा सकता है लेकिन उनकी नकली मूंछ और नकली विग आंखों को खटकते हैं। नुसरत भरुचा और डायना पेंटी नाम की हीरोइन हैं, लेकिन सीन बहुत कम मिले हैं। अभिमन्यु सिंह की ओवर-द-टॉप कॉमेडी बचकानी है। मृणाल ठाकुर और अदा शर्मा ने भी अपना चेहरा थोड़ी देर के लिए दिखाया है। 
 
सेल्फी का गीत-संगीत, सिनेमाटोग्राफी, प्रोडक्शन डिजाइनिंग और तकनीकी स्तर औसत दर्जे का है। कुल मिलाकर सेल्फी में ऐसा कुछ है ही नहीं कि इसके साथ सेल्फी लिया जाए। 
 

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