जन्म और मृत्यु दो छोर हैं और उसके बीच का हिस्सा जिंदगी होता है। कुछ लोग तमाम सुख-सुविधा होने के बावजूद दु:खी रहते हैं और कुछ तमाम अभावों के बावजूद जिंदगी का मजा लेते हुए आगे बढ़ते रहते हैं। इस फलसफे पर आधारित कुछ फिल्में बनी हैं और 'द स्काई इज़ पिंक' भी इसी को आगे बढ़ाती है।
किसी भी पैरेंट्स के लिए अपने बच्चे को पल-पल मौत के मुंह में जाते देखने से बुरी बात और कुछ नहीं हो सकती है। निरेन (फरहान अख्तर) और अदिति (प्रियंका चोपड़ा) की जिंदगी में तब भूचाल आ जाता है जब उन्हें पता चलता है कि उनकी हाल ही में पैदा हुई बेटी आयशा (ज़ायरा वसीम) के शरीर में इंफेक्शन से लड़ने की ताकत नहीं है और उसकी जिंदगी लंबी नहीं है।
यह दु:ख तब और बढ़ जाता है जब इसी बीमारी से ग्रस्त वे एक बेटी को पहले ही खो चुके हैं। उनका एक बेटा भी है जो बिलकुल स्वस्थ है।
निरेन और अदिति की आर्थिक हालत इतनी मजूबत नहीं है कि वे अपनी बेटी का महंगा इलाज लंदन में करा सके। डोनेशन के सहारे वे आयशा का इलाज कराते हैं। कुछ साल उसे लंदन में रखते हैं और फिर दिल्ली ले आते हैं।
आयशा की तबियत नरम-गरम चलती रहती है। अदिति एक 'टाइगर मॉम' है जिसका दिन आयशा से शुरू होकर उसी पर खत्म होता है। हमेशा बेटी की चिंता उसे रहती है, लेकिन वह हालात के आगे घुटने नहीं टेकते हुए लगातार लड़ती रहती है। निरेन पैसा कमाने के लिए दिन-रात मेहनत करता है ताकि आयशा का इलाज ठीक से चलता रहे।
'द स्काई इज़ पिंक' आयशा चौधरी नामक मोटिवेशनल स्पीकर की कहानी से प्रेरित है जो 19 वर्ष की अल्पायु में ही दुनिया से विदा हो गई थी।
आयशा की कहानी दर्शाती है कि बीमारी से ग्रस्त होने और अपनी उम्र छोटी होने का पता चलने के बावजूद उसने संघर्ष किया, हार नहीं मानी और जितनी भी जिंदगी मिली उसे भरपूर तरीके से जिया।
यह फिल्म इस बात को भी इंगित करती है कि निरेन और अदिति ने हालातों से समझौता नहीं किया और आयशा की आखिरी सांस तक वे भी आयशा के साथ लड़ाई लड़ते रहे। आयशा के लिए खुशी भरे पल क्रिएट करते रहे।
शोनाली बोस ने फिल्म को लिखा और निर्देशित किया है। आयशा की कहानी के साथ उन्होंने निरेन और अदिति की लव स्टोरी को भी जोड़ा है। निरेन और अदिति को 'कूल कपल' दिखाने के चक्कर में कहीं-कहीं फिल्म नकली भी लगती है लेकिन कुछ सीन अच्छे भी बन पड़े है। यही बात फिल्म के लिए भी कही जा सकती है।
कहानी में इमोशन्स की भरपूर संभावना थी। अच्छी बात यह रही कि फालतू के इमोशन्स और ड्रामेबाजी से निर्देशक ने फिल्म को दूर रखा, लेकिन बावजूद इसके इस तरह की फिल्मों में ऐसे दृश्य तो होने ही चाहिए जो दर्शकों को भावुक कर दे और यह कमी फिल्म में खलती भी है। पहले हाफ में फिल्म दिशा भटक जाती है और फिल्म की लंबाई भी कम की जा सकती थी।
आयशा का हर परिस्थिति में भी मुस्कुराते रहना तथा निरेन-अदिति के संघर्ष को शोनाली ने अच्छे से पेश किया है और कहीं-कहीं संवादों से गहरी बात भी की गई है।
फरहान अख्तर और प्रियंका चोपड़ा ने अपने उम्दा अभिनय से दर्शकों को बांधे रखा है। प्रियंका चोपड़ा का जिस तरह से रोल लिखा गया है वैसे रोल हीरोइनों के हिस्से में कम आते हैं। प्रियंका का अभिनय बेहतरीन है। लड़ने का जज्बा और भावुकता के मिले-जुले एक्सप्रेशन्स उनके चेहरे पर लगातार देखने को मिलते हैं और यह रोल निभाना आसान काम नहीं था।
फरहान अख्तर ने भी प्रियंका का साथ खूब निभाया है। अपनी बेटी को बचाने के लिए वे कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहते हैं। ज़ायरा वसीम एक बार फिर अपने अभिनय से प्रभावित करती है। दंगल, सीक्रेट सुपरस्टार के बाद द स्काई इज़ पिंक में भी उनकी एक्टिंग नेचुरल है।
द स्काई इज़ पिंक उस गाड़ी की तरह है जो दिशा तो भटकती है, लेकिन आखिरकार मंजिल तक पहुंच जाती है।