बॉलीवुड में गिने-चुने स्टार हैं जिनके नाम पर सिनेमाघरों तक दर्शकों को खींचा जा सकता है। ये स्टार्स भी फिल्मों की बजाय विज्ञापन, प्रमोशन और जिम में ज्यादा समय बिताते हैं, लिहाजा इनको लेकर बनाई गई फिल्मों की संख्या में कमी आई है और सफलता का प्रतिशत लगातार गिर रहा है। इस वर्ष आमिर खान की कोई फिल्म रिलीज नहीं हुई, शाहरुख एक फिल्म और सलमान दो फिल्मों में नजर आएँ। सिनेमाघरों की टिकट इतनी महँगी हो गई है कि दर्शक अब काफी विचार करने के बाद ही फिल्म देखने जाते हैं। इस कारण हिट फिल्में जबरदस्त व्यवसाय करने लगी है तो दूसरी ओर फ्लॉप फिल्मों को एक सप्ताह तक सिनेमाघरों में टिके रहना मुश्किल हो जाता है। कम बजट की सिताराविहीन फिल्में भी इस वर्ष कुछ खास नहीं कर पाईं। सैटेलाइट्स राइट्स इस वर्ष निर्माता के लिए राहत की बात रही। कई फिल्में रिलीज होने के पहले ही सैटेलाइट्स राइट्स के कारण फायदे का सौदा साबित हो गई, जबकि सिनेमाघरों से उनकी आय नगण्य थी। सिनेमाघर के मालिक जरूर चिंता कर रहे हैं क्योंकि हिट से हिट फिल्म भी टीवी पर महीने-दो महीने में आ जाती है। कुछ ने तो सिनेमाघर को स्टेडियम में बदलकर क्रिकेट मैचों का सीधा प्रसारण किया कि शायद इसी बहाने दर्शक आ जाएँ।
ब्लॉकबस्टर पिछले दो-तीन वर्षों से ब्लॉकबस्टर फिल्म आमिर खान के नाम रही है, लेकिन इस वर्ष इस श्रेणी में सलमान खान का नाम है। दबंग उनके करियर की सफलतम फिल्मों में से एक है। 70 के दशक की याद दिलाने वाली इस फिल्म में कहानी के नाम पर कुछ नहीं है, लेकिन चुलबुल पांडे के रूप में सलमान खान ने ऐसा जलवा दिखाया कि लोग उनका यह अंदाज देख झूम उठे। इस फिल्म की कामयाबी के पीछे सिर्फ सलमान का करिश्मा है।
सुपर हिट रोहित शेट्टी अच्छी तरह समझ गए हैं कि दिवाली पर किस तरह की फिल्म देखना लोग पसंद करते हैं। ‘गोलमाल 3’ उल्लेखनीय फिल्म नहीं है, लेकिन ढाई घंटे हँसते हुए गुजर जाते हैं। इसी खासियत के कारण फिल्म ने ट्रेड की अपेक्षाओं से कहीं ज्यादा बिजनैस किया और रोहित शेट्टी का कद ऊँचा हो गया। राजनीति प्रकाश झा के करियर की सबसे बड़ी हिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में ढेर सारे स्टार कलाकार हैं, लेकिन स्टार ही सफलता की गारंटी नहीं होते। प्रकाश झा ने वर्तमान राजनीति को महाभारत से जोड़ा जो दर्शकों को बहुत पसंद आया।
हिट शाहरुख खान ने माई नेम इज खान के जरिये अपनी सफलता दर्ज की और एक बार फिर साबित हो गया कि शाहरुख-काजोल की जोड़ी कभी फ्लॉप नहीं होती। विदेश में इसे कई भाषाओं में डब कर रिलीज किया गया और वहाँ भी भारी सफलता फिल्म को मिली। साजिद खान द्वारा निर्देशित हाउसफुल ने बॉक्स ऑफिस पर तगड़ी शुरुआत की, जिस कारण यह हिट फिल्मों की सूची में शामिल हो गई। हाजी मस्तान से प्रेरित फिल्म वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई में वे सारे गुण थे जो आम दर्शक को पसंद आते हैं। जबरदस्त ड्रामा, ताली पीटने वाले संवाद, एक्शन और कुछ मधुर गाने। इस फिल्म की सफलता का प्रतिशत और बढ़ जाता यदि इसका नाम हिंदी में होता। कम लागत होने का लाभ आई हेट लव स्टोरीज और पीपली लाइव को मिला। पीपली लाइव ने तो लागत से दोगुनी कमाई की। आमिर खान ने दिखा दिया कि केवल निर्माता बनकर भी वे फिल्म चलाने का दम रखते हैं। इस वर्ष हॉलीवुड की ज्यादातर फिल्में असफल रहीं। इंसेप्शन (अँग्रेजी) ही दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित कर पाई।
औसत यशराज फिल्म्स कम बजट की फिल्में बनाने लगा है। इसके बावजूद इस बैनर की बदमाश कंपनी और लफंगे परिंदे ने औसत सफलता हासिल की। इसमें सैटेलाइट राइट्स का योगदान ज्यादा है। सलमान खान की लिखी फिल्म वीर ने कुछ क्षेत्रों में फायदे का सौदा साबित हुई तो कुछ में घाटे का। रजनीकांत-ऐश्वर्या राय अभिनीत रोबोट ने हिंदी भाषी क्षेत्र में औसत व्यापार किया। नसीरुद्दीन शाह और अरशद वारसी ऐसे सितारे नहीं है कि अपने दम पर फिल्म चला सके। ‘इश्किया’ में स्क्रिप्ट ही स्टार है जिसके दम पर फिल्म ने अपनी लागत से ज्यादा वसूल किया। अजय देवगन की कम बजट की फिल्म अतिथि तुम कब जाओगे भी बॉक्स ऑफिस पर ठीक-ठाक रही। ‘हैरी पॉटर और मौत के तोहफे’ से बॉलीवुड वालों को आशाएँ थीं, लेकिन यह फिल्म औसत से भी नीचे रही। अँग्रेजी वर्जन ने जरूर अच्छा व्यवसाय किया।
चर्चित फिल्में लव सेक्स और धोखा, वेल डन अब्बा, तेरे बिन लादेन, उड़ान और फँस गए रे ओबामा को समीक्षकों ने सराहा। इनमें से कुछ फिल्में सिर्फ बड़े शहरों में चली। इन फिल्मों में कंटेंट उम्दा था जिसका लाभ मिला वरना छोटे बजट की कई फिल्में बुरी तरह असफल रहीं।
नाम बड़े और दर्शन छोटे जिन फिल्मों से सभी को आशा थी, वो उनके रिलीज होते ही निराशा में बदल गई। रितिक रोशन की चर्चित फिल्म काइट्स को हिंदी फिल्म के नाम पर रिलीज किया गया, लेकिन इसमें 90 प्रतिशत संवाद अँग्रेजी और स्पैनिश में थे। दर्शकों ने ठगा महसूस किया और ‘काइट्स’ उड़ान नहीं भर सकी। रितिक की दूसरी फिल्म ‘गुजारिश’ ने बहुत ज्यादा बजट होने का खामियाजा भुगता। मर्सी किलिंग पर आधारित फिल्म को इतने खर्चीले तरीके से बनाया जाएगा तो उसका पिटना निश्चित है। अभिषेक बच्चन की ‘रावण’ और ‘खेलें हम जी जान से’ इतनी बुरी तरह पिटी कि इन फिल्मों के निर्माता और वितरक अब तक सदमे में हैं। बच्चन परिवार के लिए यह वर्ष बहुत ही बुरा रहा। अमिताभ की ‘रण’ और ‘तीन पत्ती’ भी फ्लॉप रही और ऐश्वर्या की भी सभी हिंदी फिल्में लाइन से असफल रही। संजय दत्त और बिपाशा बसु की कश्मीर मुद्दे पर आधारित फिल्म ‘लम्हा’ को भी दर्शक नहीं मिले।