-प्रथमेश व्यास
गौतम बुद्ध को भारत के महान आध्यात्मिक गुरुओं की सूची में गिना जाता है, जिनके द्वारा दिए गए शांति, भाईचारे और आध्यात्म के उपदेश हमे आज भी प्रेरित करते हैं। महात्मा बुद्ध वो महापुरुष थे, जिन्होंने भारत के साथ-साथ पुरे विश्व को प्रेम और सद्भाव का पाठ पढ़ाया। एक महाप्रतापी और धन-धान्य से समृद्ध राजा के घर जन्म लेने के बावजूद उन्होंने पारिवारिक मोह-माया का त्याग किया और संन्यास का मार्ग अपनाया। संन्यास और तपस्चर्य के मार्ग पर चलते हुए उन्हें जिस अमूल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई, उसका पाठ उन्होंने पूरी दुनिया को पढ़ाया। महात्मा बुद्ध आगे चलकर बौद्ध धर्म के प्रवर्तक बने, जिसके आज विश्व भर में 47 करोड़ अनुयायी है।
महात्मा बुद्ध द्वारा सैकड़ों वर्ष पहले दिए गए उपदेश आज भी प्रासंगिक है। तो आइए आज पढ़ते हैं महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़ी एक बड़ी ही प्रेरक और दिलचस्प कहानी, जिसमें उन्होंने बताया है कि आदमी की तुलना कैसे करें ?
एक बार एक आदमी महात्मा बुद्ध के पास पहुंचा। उसने पूछा-'प्रभु मुझे ये जीवन क्यों मिला? इतनी बड़ी दुनिया में मेरी क्या कीमत है? बुद्ध मुस्कुरा दिए और उस आदमी को एक चमकीला पत्थर देते हुए बोले कि जाओ पहले इसका मूल्य पता करके आओ, लेकिन इसे बेचना मत केवल मूल्य पता करना। वो आदमी सबसे पहले उस पत्थर को लेकर एक आमवाले के पास गया और उसे पत्थर दिखाते हुए बोला-'इसकी कीमत क्या होगी?' आमवाला पत्थर को देखते ही समझ गया कि ये कोई बेशकीमती पत्थर लगता है। फिर भी वह बनावटी आवाज में बोला कि मैं इसके बदले में 10 आम दे सकता हूं। आदमी वहां से चला गया और एक सब्ज़ीवाले का पास पंहुचा, जिसने कहा कि मैं इसके बदले 1 बोरी आलू दे सकता हूं। अब उस आदमी को ये मालूम पड़ चुका था की ये पत्थर वाकई में कीमती है और फिर वो उसे लेकर एक हीरे के व्यापारी के पास पंहुचा। व्यापारी पत्थर को देखकर अचंभित रह गया, उसने कहा कि मैं तुम्हें इसके बदले 10 लाख रुपए दे सकता हूं। आदमी महात्मा बुद्ध के पास जाने के लिए मुड़ा ही था की व्यापारी ने आवाज़ लगाईं की मैं तुम्हें इसके बदले में 50 लाख रूपए देने को भी तैयार हूं । लेकिन, आदमी नहीं रुका। व्यापारी ने गिड़गिड़ाते हुए फिर आवाज लगाई कि तुम मुझे बस वो हीरा दे दो, बदले में तुम जितना धन चाहो, मैं देने के लिए तैयार हूं। आदमी नहीं माना और महात्मा बुद्ध के पास लौट गया और उन्हें पत्थर वापस करते हुए पूरा वृत्तांत कह सुनाया।
बुद्ध मुस्कुराकर बोले-'आमवाले ने इसका मोल 10 आम लगाया, सब्जीवाले ने 1 बोरी आलू और हीरे के व्यापारी ने कहा कि ये अनमोल है। इस पत्थर के गुण जिसने जितने समझे, उसने उतने मोल लगाए। ऐसा ही ये जीवन है। हर आदमी एक हीरे के समान है। दुनिया उसके गुणों को जितना पहचान पाती है, उतनी ही महत्ता देती है। लेकिन, आदमी और हीरे में फर्क ये है कि हीरे को कोई दूसरा तराशता है और आदमी को अपने आप को खुद ही तराशना पड़ता है। तुम भी अपने भीतर के गुणों को तराशों, तुम्हें पहचानने वाला भी कोई न कोई मिल ही जाएगा।'