दो पाटन के बीच में साबुत बचा है कोय

एक नवविवाहित युवक अपनी माँ और पत्नी के बीच बढ़ते मनमुटाव से बेचैन था। 'बेटा, बहू को समझा लेना।' 'देखिए, माँ को समझा दीजिए।' ये संवाद रह-रहकर उसके कानों में गूँजते रहते थे। वह दोनों के बीच सेंडविच बन चुका था। वह किसी एक के पक्ष में बोलकर स्थिति को बदतर नहीं करना चाहता था।

एक दिन उसे एक उपाय सूझा। उसने उस पर अमल करना शुरू कर दिया। जब भी उसकी माँ उसके सामने पत्नी की शिकायत करती तो वह कहता- माँ, आप बेकार ही बहू के पीछे पड़ी हैं। वह तो आपकी तारीफ करते हुए कहती है कि मुझे तो माँ जैसी सास मिली है। और जब रात को पत्नी की रामायण शुरू होती तो उससे कहता- पता नहीं तुम्हें क्या गलतफहमी है।

जब भी उसकी माँ उसके सामने पत्नी की शिकायत करती तो वह कहता- माँ, आप बेकार ही बहू के पीछे पड़ी हैं। वह तो आपकी तारीफ करते हुए कहती है कि मुझे तो माँ जैसी सास मिली है। और जब रात को पत्नी की रामायण शुरू होती तो उससे कहता- पता नहीं तुम्हें क्या गलतफहमी है।
माँ तो तुम्हें अपनी बेटी से भी बढ़कर मानती है और कहती है कि मैं कितनी भाग्यशाली हूँ जो ऐसी बहू मिली। इस तरह वह एक के सामने दूसरे पक्ष की तारीफ करने लगा। इससे धीरे-धीरे सास-बहू के मन में एक-दूसरे के प्रति प्यार उमड़ने लगा। अब तो वह पत्नी को कुछ कहता तो माँ डाँट देती और माँ से कुछ कहता तो पत्नी टोक देती।

दोस्तो, कहते हैं 'दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।' लेकिन उस युवक ने अपनी सूझबूझ से साबित कर दिखाया कि दो पाटन के बीच में साबुत बचा जा सकता है, यदि आपका दृष्टिकोण सकारात्मक हो और आप किसी एक पक्ष की सुनकर उसके बहकावे में न आते हों।

दरअसल बात तब बिगड़ती है जब आप किसी एक पक्ष की सुनवाई करते हैं। ऐसी सुनवाई आधी होती है और आपकी जानकारियाँ भी आधी-अधूरी। तब उनके सहारे यदि कोई फैसला करेंगे तो दो पाटों के बीच में पिसेंगे ही। यह तो आप जानते ही हैं कि चक्की में पिसाई तभी हो सकती है जब उसका एक पाट स्थिर रहे और दूसरा गतिशील।

आपके फैसले से एक पक्ष शांत यानी स्थिर पाट और दूसरा पक्ष नाराज यानी गतिशील पाट बन जाएगा और ऐसे में आपकी पिसाई तो होना ही है। इसलिए यदि आप भी ऐसी ही किसी दुविधा में हैं और पिसाई से बचना चाहते हैं तो वही करें जो उस युवक ने किया। यानी दोनों पक्षों में संतुलन या बैलेंस बनाने की कोशिश करें।

वैसे भी दोनों पक्ष आपके सामने अपनी समस्याएँ रखते भी इसलिए ही हैं क्योंकि उन्हें आप पर विश्वास होता है कि आप उनकी बात समझेंगे और बीच-बचाव का कोई रास्ता निकालेंगे। यदि ऐसे में आप दाएँ-बाएँ या अगल-बगल का रास्ता चुनने लगेंगे तो भटक जाएँगे। यहाँ तो बीच का रास्ता ही काम आता है। तभी आप बीच-बचाव करा सकते हैं।

लेकिन आमतौर पर होता इसके उलट है। आदमी यह सोचकर कि यदि दोनों पक्षों के बीच पटरी बैठ गई तो उसे पूछेगा कौन, वह दोनों के रिश्ते सुधारने की बजाय उनके बीच की खाई और बढ़ा देता है। इसके लिए वह बेमतलब की बातें इधर की उधर और उधर की इधर करता रहता है, जबकि ऐसी बातें उससे की ही इसलिए जाती हैं कि सामने वाले को विश्वास होता है कि यह बात को इधर-उधर नहीं करेगा।

यदि आप भी ऐसा ही करने में यकीन रखते हैं तो हम बता दें कि दोनों पक्षों के बीच बढ़ती खाइयों में एक दिन आपको ही गिरना पड़ सकता है। क्योंकि एक न एक दिन जब सच्चाई सामने आएगी तो आप न इधर के रहेंगे न उधर के। वे दोनों एक हो जाएँगे और आपसे तौबा कर लेंगे। इसकी बजाय यदि आप भी उस युवक की तरह इधर की उधर करने की बजाय दोनों को मिलाएँगे तो आप हमेशा इधर के भी रहेंगे और उधर के भी यानी दोनों के स्नेह के पात्र बने रहेंगे।

इसलिए आज 'सेंडविच डे' पर आप यह निर्णय लें कि आप दो पाटों के बीच नहीं पिसेंगे, सेंडविच नहीं बनेंगे। हमेशा सकारात्मक तरीके से मामला निपटाएँगे। फिर मामला चाहे आपके व्यक्तिगत जीवन का हो या व्यावसायिक जीवन का। यदि आप ऐसा करेंगे तो आपको मिलेगी एक सुकूनभरी जिंदगी।

चलो, अब माँ और बीबी ने मिलकर जो क्लब सेंडविच बनाया है, उसका मजा लिया जाए।