नवरात्रि आराधना : ज्योतिष की दृष्टि से

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देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।

माँ भगवती त्रिपुर सुंदरी राजराजेश्वरी माँ जगदम्बा को साष्टांग प्रणाम करते हुए उनके चरणों का आशीर्वाद लेरक यह बात कहना चाहूँगा। कि

हे मनुष्य, आप भी परमेश्वरी की शरण ग्रहण कीजिए। वे आराधना से प्रसन्न होकर मनुष्यों को भोग, स्वर्ग और अपुनरावर्ती मोक्ष प्रदान करती हैं। भगवती की आराधना से ऐश्वर्यकामी राजा सुरथ ने अखंड साम्राज्य प्राप्त किया तथा वैराग्यवान समाधि वैश्य ने दुर्लभ ज्ञान द्वारा मोक्ष की प्राप्ति की।

माँ भगवती की आराधना मनुष्य प्रतिदिन कर सकता है। परंतु वर्ष में अश्विन शुक्ल पक्ष प्रथमा से अश्विन कृष्ण पक्ष नवमी तक और चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा से चैत्र नवमी (रामनवमी) तक विशेष नौरात्रि पर्व में आराधना करने से राज्य, ऐश्वर्य, मोक्ष की प्राप्ति होती है।

भगवती की भक्ति कर जिज्ञासु प्रेमी अर्थार्थी अपने मनोरथ पूर्ण कर चुके हैं। भगवती इन 9 दिवसों में नौ (मूर्तियों) रूपों में विराजमान होती हैं।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पञ्चमं स्कंदमातेति षष्ठं कात्यायिनी च।
सप्तमं कालरा‍त्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नव दुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।।

1. शैलपुत्री : गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वतीदेवी। यद्यपि ये सबकी अधीश्वरी हैं तथापि हिमालय की तपस्या और प्रार्थना से प्रसन्न हो कृपापूर्वक उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुईं।

2. ब्रह्मचारिणी : ‍ब्रह्म चा‍रयितुं शीलं यस्या: सा ब्रह्मचारिणी। अर्थात सच्चिदानंदमय ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति कराना जिनका स्वभाव हो वे ब्रह्मचारिणी हैं।

3. चंद्रघंटा : चंद्र: घंटायां यस्या: सा-- आह्लादकारी चंद्रमा जिनकी घंटा में स्थि‍त हो, उन देवी का नाम चंद्रघंटा है।

4. कूष्मांडा : कुत्सित: ऊष्मा कूष्मा त्रिविधतापयुत: संसार: स अण्डेमांसपेश्यामुदररुपायां यस्या: सा कूष्मांडा। अर्थात त्रिविध तापयुक्त संसार जिनके उदर में स्थित है, वे भगवती कूष्मांडा हैं।

5. स्कंदमाता : भगवती की शक्ति से उत्पन्न हुए सनत् कुमार का नाम स्कंद था और उनकी माता होने से वे स्कंदमाता कहलाती हैं।

6. कात्यायिनी : देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए देवी महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं अत: कात्यायिनी कहलाईं।

7. कालरात्रि : सब दुष्टों को मारने वाली काल की भी रात्रि होने से उनका नाम कालरात्रि है।

8. महागौरी : इस भगवती ने तपस्या द्वारा महान गौरवर्ण प्राप्त किया था। अत: महागौरी कहलाईं।

9. सिद्धिदा‍त्री : सिद्धि देने वाली और मोक्ष प्रदान करने वाली भगवती का नाम सिद्धिदात्री हुआ।

इस प्रकार इन नौ रूपों को श्रद्धा, शांति और पूर्ण विश्वास के साथ मनाने से और इनकी आराधना करने से भगवती अवश्य प्रसन्न होती है। भगवती से माँ के रूप में अपनी रक्षा की प्रार्थना करो। देखो, आपकी रक्षा करके आपको संपन्न बना देगी।

नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनी।।

महान, रौद्ररूप, अत्यंत घोर पराक्रम, महान बल और महान उत्साह वाली देवी! तुम महान भय का नाश करने वाली हो, तुम्हें नमस्कार है। तुम्हारी ओर देखना भी कठिन है। शत्रुओं का भय बढ़ाने वाली जगदम्बिके! मेरी रक्षा करो।

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्यें शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता।।
दक्षिणेऽतु वाराही नैऋत्यां खड्‍ग धारिणी।
प्रतीच्यां वारूणी रक्षेद्‍ वायव्यां मृगवाहिनी।।
उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
उर्ध्व ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद वैष्णवी तथा।।
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जया मे चागृत: पातु विजया पातु पृष्ठत:।।

पूर्व दिशा में ऐन्द्री मेरी रक्षा करे। अग्निकोण में अग्निशक्ति, दक्षिण दिशा में वाराही तथा नैऋत्य कोण में खड्‍गधारिणी मेरी रक्षा करें।
पश्चिम दिशा में वारूणी और वायव्य कोण में मृग पर सवारी करने वाली देवी मेरी रक्षा करें। उत्तर दिशा में कौमारी और ईशान कोण में शूलधारिणी देवी रक्षा करें। ब्रह्माणि! तुम ऊपर की ओर से मेरी रक्षा कीजिए और वैष्णवी देवी नीचे की ओर से मेरी रक्षा करें। इसी प्रकार शव को अपना वाहन बनाने वाली चामुण्डा देवी दशों दिशाओं में रक्षा करें। जया आगे से और विजया पीछे करे।

भगवती की आराधना करने से इन नौ दिवस में सप्तसती का पाठ करने से अपमृत्यु (अकालमृत्यु अर्थात अग्नि, जल-बिजली एवं सर्प आदि से होने वाली मृत्यु) नहीं होती, (अर्थात अकाल मृत्यु नहीं मरता) एवं पूर्ण दीर्घायु को प्राप्त हो वर्षों जीवित रहता है।

चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्वरि।
रूपं देहि जयं देह‍ि यशो देहि द्धिषो जह‍ि।।
कृष्णेन संस्तुते देवि शश्रद्धक्त्या सदाम्बिके।
रूपं देह‍ि जयं देहि यशोदेहि द्धिषो जहि।।

भगवती को नमस्कार कर माँगों आपको क्या नहीं दें। हे चतुर्मुख ब्रह्माजी द्वारा प्रशंसित चारभुजा धारिणी परमे‍श्वरि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। देवी अम्बिके! भगवान विष्णु नित्य निरंतर भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते रहते हैं। तुम रूप दो, जय दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

इस प्रकार आरधना स्वयं कृष्ण निरंतर करते हैं, ऐसी मोक्षदायिनी भगवती की आराधना किसी भी रूप में करने से किसी के भी द्वारा की जाए, वह कल्याण का भागी होता है। भगवती की आराधना के लिए जितना लिखा जाए उतना कम है। मैं भक्तों के प्रसाद के रूप में यही कहूँगा। इस नौ दिवस में अवश्य माँ की आराधना करें।

विशेष : नौ रात्रि में मनुष्य यदि ब्रह्म मुहूर्त में राम रक्षा स्तोत्र का पाठ सात, ग्यारह या इक्कीस बार करे तो अनन्य सुख-संपत्ति एवं मोक्ष को प्राप्त करेगा।

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