युद्ध के तनाव के बीच लाखों लोगों के आगमन के कारण प्रशासन को भीड़ प्रबंधन, स्वास्थ्य सेवाएं और स्वच्छता सुनिश्चित करने में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके, 1965 का कुंभ मेला सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। 1965 का कुंभ मेला भारतीय धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज है। 1965 का प्रयागराज कुंभ मेला धार्मिक श्रद्धा, सांस्कृतिक विविधता और प्रशासनिक कुशलता का उत्कृष्ट उदाहरण था। इसने न केवल आध्यात्मिक चेतना को मजबूत किया, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक स्तर पर भी प्रस्तुत किया।
पहली बार पुलों का निर्माण:
फौज के इंजीनियरों ने रेलवे लाइन पर पुल बनाने में बहुत मदद की। इससे रेलों के आने जाने के समय में न तो रेलों का आवागमन बाधित हुआ और न ही कुंभ में आने जाने वाली भीड़ सड़कों पर रुकी रही। त्रिवेणी की ओर आने जाने का मार्ग सुगम किया और जगह की कमी के कारण लोगों के रहने का स्थान गंगा के पार झूंसी की ओर किया गया। वहां से इस पार आने के लिए पीपों के छह पुल बनाए गए।
पहली बार पर्याप्त बिजली व्यवस्था:
कुंभ मेले के इतिहास में यह पहला मौका था जबकि यहां पर बिजली लगी और इसकी पर्याप्त व्यवस्था की गई। 1000 हजार बिजली के खंभों के लिए 160 मील लंबी तारों का उपयोग किया गया।
मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का दौरा:
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने मेले में पर्याप्त सुरक्षा और सुविधाओं का मौका मुआयना भी किया। उन्होंने नाव पर सवार होकर घाटों का निरीक्षण भी किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी मेले के इंतजाम का निरीक्षण किया। भारत के लाखों व्यक्तियों की भांति भारत के राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद ने भी त्रिवेणी स्नान किया। इस दिन यहां पर अपार जनसमूह इकट्ठा था। लाखों लोगों ने कुंभ में डुबकी लगाई।
ALSO READ: प्रयागराज कुंभ मेला 2013 का इतिहास