राजनीतिक दलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है 'नोटा'

Webdunia
शनिवार, 10 नवंबर 2018 (14:05 IST)
रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में पिछले रिकॉर्डों को देखते हुए राजनीतिक दलों के लिए नोटा (इनमें से कोई नहीं) को मिलने वाले मत बड़ी चुनौती बन गए हैं। इससे उनकी चुनावी संभावनाओं पर सीधा असर पड़ रहा है।
 
छत्तीसगढ़ संभवतः इकलौता राज्य है, जहां पिछले तीन चुनावों से सत्तारूढ़ दल एवं मुख्य विपक्षी दल के बीच का दो प्रतिशत के आसपास रहा है। राज्य में 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में दोने दलों के बीच मतों का अंतर आधा प्रतिशत के लगभग ही रह गया था। वहीं नोटा के साथ तीन प्रतिशत से अधिक मतदाता गए थे। साफ है कि अगर यह मत दोनों मुख्य दलों के प्रत्याशियों को मिलते तो चुनाव परिणाम प्रभावित हो सकते थे।
 
राज्य की 90 सीटों में से 34 सीटों पर पिछले चुनाव में नोटा तीसरे स्थान पर तथा 33 सीटों पर चौथे नंबर पर था। इनमें से 17 सीटों पर नोटा को पांच हजार से अधिक मत हासिल हुए थे। नौ सीटो पर हार-जीत का अंतर नोटा से मिले मतों से काफी कम था। राज्य में चार लाख से अधिक मत नोटा को मिले थे, जो कि कुल पड़े मतों का तीन प्रतिशत से अधिक था।
 
छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध के अनुसार नोटा को ज्यादा समर्थन ग्रामीण एवं आदिवासी इलाकों में मतदाताओं की बढ़ती राजनीतिक समझ एवं जागरूकता का परिणाम है। उन्होंने कहा कि यह सोचना बिल्कुल गलत है कि ग्रामीण एवं आदिवासी इलाकों में लोग गलती से ईवीएम में नोटा बटन दबा रहे हैं। इससे यह भी साफ है कि अब पार्टी गौण हो रही है और प्रत्याशी अहम हो रहे हैं। राजनीतिक दलों को मतदाता एक तरह से योग्य एवं सही प्रत्याशी उतारने के लिए आगाह कर रहे हैं, जिसे उन्हें आज नही कल समझना ही होगा।   
 
फिलहाल राज्य की 15 सीटों पर उम्मीदवारों के भविष्य को नोटा ने प्रभावित किया था। नोटा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल धुर नक्सल प्रभावित बस्तर एवं सरगुजा संभाग की कई सीटो पर मतदाताओं ने तो किया ही था, शहरी क्षेत्र भी इससे अछूते नहीं थे। जहां तक बस्तर का प्रश्न है तो वहां पर तो नक्सली लोगों से मतदान का बहिष्कार करने की अपील करते हैं, लेकिन वहां की सीटों पर नोटा का ज्यादा इस्तेमाल संभव है कि नक्सलियों की वजह से हो। हालांकि कुछ लोग इससे सहमत नहीं हैं। 
 
राज्य के मंत्रियों पुन्नूलाल मोहिले, भैयाराम रजवाड़े, रामसेवक पैकरा, महेश गागड़ा के हार-जीत का अंतर नोटा को मिले मतों से भी कम था। मुंगेली सीट पर भाजपा के पुन्नूलाल मोहिले को 2745 मतों से जीत हासिल हुई जबकि इस सीट पर नोटा के लिए 5025 मत पड़े। इसी प्रकार बैकुंठपुर सीट पर भैयाराम रजवाड़े को 1063 मतों से जीत हासिल हुई जबकि नोटा को 3265 मत हासिल हुए।
 
राज्य की कई सीटें हैं, जहां हार-जीत के अंतर से दोगुना से लेकर पांच गुना अधिक मत नोटा को हासिल हुए। राजनांदगांव जिले की मोहला मानपुर सीट से कांग्रेस की तेजकुंवर गोवर्धन ने महज 956 मतों से जीत हासिल की थी, जबकि नोटा को 5742 मत मिले थे। इस सीट पर भी नक्सलियों का काफी प्रभाव माना जाता है। राजिम सीट पर भाजपा के संतोष उपाध्याय ने 2441 मतों से जीत हासिल की थी जबकि नोटा 5673 मत मिले थे।
 
राज्य की दंतेवाड़ा सीट पर कांग्रेस की देवती कर्मा ने 5987 मतों से जीत दर्ज की थी जबकि नोटा को 9677 मत मिले थे। रायपुर ग्रामीण सीट पर कांग्रेस के सत्यनारायण शर्मा ने 1861 मतों से जीत दर्ज की थी जबकि नोटा को 3521 मत मिले थे। दुर्ग ग्रामीण सीट से भाजपा की रमशीला साहू ने 2979 मतो से जीत हासिल की थी जबकि नोटा को 3544 मत मिले थे।
  
राज्य की पत्थलगांव सीट पर भाजपा के शिवशंकर पैकरा ने 3909 मतों से जीत दर्ज की थी जबकि इस सीट पर नोटा को 5533 मत मिले थे। कांकेर सीट पर कांग्रेस के शंकर धुव्रा ने 4625 मतों से जीत दर्ज की थी जबकि नोटा को 5673 मत हासिल हुए थे। बिलासपुर जिले की तखतपुर सीट से राजूसिंह क्षत्री ने 608 मतों से जीत दर्ज की जबकि नोटा को 1557 मत हासिल हुए। इसी प्रकार राजधानी से सटी धरसींवा सीट पर मंत्री दर्जा प्राप्त भाजपा के देवजी पटेल ने 2390 मतों से जीत दर्ज की थी जबकि नोटा को यहां 3740 मत पड़े थे।
    
कोंडागांव सीट पर कांग्रेस के मोहन मरकाम ने 5135 मतों से जीत हासिल की थी जबकि नोटा को 6773 मिले थे। राजनांदगांव जिले की खैरागढ़ सीट से कांग्रेस के गिरधर जंघेल ने 2190 मतों से जीत दर्ज की थी जबकि यहां नोटा को 4643 मत मिले थे। डोंगरगांव सीट पर कांग्रेस के दलेश्वर साहू को 1698 मतों से जीत मिली थी जबकि नोटा को दोगुने से अधिक 4062 मत हासिल हुए थे। (वार्ता)

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