गुलेल, गिल्ली-डंडा, तितली पकड़ना, घरौंदे बनाना ये सब आज बीते बचपन की बात हो गई है। आज का बचपन इतना सुविधायुक्त और वैभवशाली है कि उन खेलों से कोसों दूर है जिन्हें खेलकर कपड़ों से गीली मिट्टी की खुशबू आती थी। आज का साफ-सुथरा अभिजात्य बचपन वीडियो गेम, कंप्यूटर, मोबाइल, ऑनलाइन गेम्स के बीच व्यतीत हो रहा है। कभी-कभी लगता है अभिभावक ये सब इन्हें नहीं देंगे तो जैसे ये बड़े ही नहीं होंगे।