बीजिंग। एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि कोविड-19 के ऐसे मरीजों की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कमजोर हो सकती है जिनमें रोग के लक्षण नजर नहीं आते। इस अध्ययन ने 'प्रतिरक्षा पासपोर्ट' के इस्तेमाल के जोखिम को बढ़ा दिया है।
'प्रतिरक्षा पासपोर्ट' यह प्रमाणित करने के लिए दिया जाता है कि कोई व्यक्ति कोविड-19 से ठीक हो चुका है और यात्रा तथा काम करने के लिए फिट है। 'नेचर मेडिसिन' जर्नल में प्रकाशित यह शोध नए कोरोना वायरस, सार्स-सीओवी-2 से संक्रमित ऐसे 37 मरीजों के नैदानिक और प्रतिरक्षात्मक अभिव्यक्तियों का विश्लेषण पेश करता है जिनमें लक्षण नजर नहीं आते।
इसमें पाया गया कि इन मरीजों में वायरस का प्रकोप कम होने में 19 दिन का वक्त लगा जबकि इसकी तुलना में 37 ऐसे मरीजों के एक अन्य समूह, जिनमें लक्षण नजर आ रहे थे, में यह अवधि 14 दिन की थी।
चीन की चॉन्गक्विंग मेडिकल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के मुताबिक सार्स-सीओवी-2 से संक्रमित अधिकतर मरीज सांस संबंधी हलकी परेशानियों के साथ ही बुखार, खांसी और सांस ज्यादा नहीं खींच पाने जैसे लक्षणों से प्रभावित होते हैं और ये लक्षण संक्रमण के संपर्क में आने के 2 से 14 दिन के बाद नजर आते हैं।
उन्होंने हालांकि कहा कि इनमें से कुछ में संक्रमण के बावजूद बेहद मामूली लक्षण नजर आते हैं या फिर वे नजर ही नहीं आते। अध्ययन में अनुसंधानकर्ताओं ने 10 अप्रैल 2020 से पहले चीन के वानझाउ जिले से सार्स-सीओवी-2 से संक्रमित ऐसे 37 लोगों का अध्ययन किया जिनमें लक्षण नजर नहीं आ रहे थे।
वैज्ञानिकों ने कहा कि इन बिना लक्षण वाले मरीजों में 22 महिलाएं व 15 पुरुष थे जिनकी उम्र 8 से 75 साल के बीच थी। उन्होंने अध्ययन में लिखा कि जिन मरीजों में लक्षण दिख रहे थे, उनकी तुलना में लक्षण नजर नहीं आने वाले मरीजों के समूह में वायरस का प्रभाव कम होने की अवधि ज्यादा थी, जो 19 दिन की थी।
अध्ययन के मुताबिक वायरस विशिष्ट प्रतिरक्षा प्रणाली अणु जिन्हें आईजी-जी एंटीबॉडी कहा जाता है, वे लक्षण प्रकट करने वाले मरीजों के मुकाबले उन मरीजों में महत्वपूर्ण रूप से कम थे जिनमें लक्षण नजर नहीं आ रहे थे, वह भी संक्रमण की उस अवस्था में, जब श्वसन नली में विषाणु की पहचान की जा सकती थी।
शोधकर्ताओं ने कहा कि मरीजों को अस्पताल से छुट्टी मिलने के 8 हफ्ते बाद जिन मरीजों में लक्षण नहीं नजर आ रहे थे, उनमें विषाणु का मुकाबला करने वाली एंटीबॉडी 80 प्रतिशत तक घट गईं जबकि जिन मरीजों में लक्षण नजर आ रहे थे, उनमें यह करीब 62 फीसदी था।
इन आधारों पर वैज्ञानिकों का मानना है कि जिन मरीजों में लक्षण नजर नहीं आते, उनमें सार्स-सीओवी-2 संक्रमण को लेकर कमजोर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया होती है। (भाषा)