Corona यानी Covid-19 को लेकर दुनियाभर दहशत का माहौल है, वहीं लोगों के मन में काफी सवाल भी हैं। आखिर कोरोना मरीजों का इलाज किस तरह होता है और उन्हें कब और किस स्थिति में अस्पताल पहुंचना चाहिए ताकि उनकी जान बच सके। यही बता रहे हैं इंदौर के कोविड-19 अस्पताल चोइथराम के ICU एवं क्रिटिकल केयर के विभागाध्यक्ष और चीफ कंसल्टेंट इन्टेंसिविस्ट डॉ. आनंद सांघी।
डॉ. सांघी ने वेबदुनिया से खास बातचीत में बताया कि सबसे पहले तो हर व्यक्ति को कोरोना का डर अपने मन से निकाल देना चाहिए और जैसे ही सामान्य लक्षण नजर आएं तत्काल अस्पताल पहुंचना चाहिए ताकि मरीज की जान बचाई जा सके। उन्होंने बताया कि मरीज जीवन पर संकट तभी होता है कि जब वह समय से अस्पताल नहीं पहुंचता।
लंबे समय तक पीपीई किट पहनना मुश्किल : डॉ. सांघी ने बताया कि चोइथराम अस्पताल में कोरोना वार्ड में 50 डॉक्टरों की समर्पित टीम काम कर रही है। डॉक्टरों की टीम 6-6 घंटे की शिफ्ट में काम करती है। इनमें 2 जूनियर और एक सीनियर डॉक्टर होता है। एक सप्ताह काम करने के बाद डॉक्टरों की टीम को 14 दिन के लिए क्वारंटाइन किया जाता है। उन्होंने बताया कि गर्मी के मौसम में पीपीई किट पहनकर काम करना काफी मुश्किल होता है। इसके चलते मेडिकल टीम के कई लोग बेहोश भी हुए हैं।
कोरोना मरीजों की 4 कैटेगरी : उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी की गंभीरता को देखते हुए हमने मरीजों को 4 कैटेगरी- माइल्ड, मॉडरेट, सीवियर और वैरी सीवियर में बांटा गया है। अस्पताल के गेट से ही मरीज के उपचार की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। वहीं तय कर लिया जाता है कि मरीज का इलाज सामान्य वार्ड में होगा या फिर आईसीयू में।
डॉ. सांघी ने बताया कि A यानी माइल्ड कैटेगरी में उन मरीजों को शामिल किया जाता है, जिनकी सांस बराबर चल रही हो साथ ही ऑक्सीजन का लेबल भी ठीक हो। इन्हें सर्दी, खांसी और बुखार की समस्या होती है मगर इनकी रिपोर्ट पॉजिटिव होती है। इनका इलाज वार्ड में ही किया जाता है। इनके लिए आईसीयू की जरूरत नहीं होती।
B कैटेगरी यानी मॉडरेट पेशेंट के बारे में चर्चा करते हुए डॉ. सांघी ने बताया कि इस कैटेगरी के मरीजों का ऑक्सीजन लेबल 95 से कम मगर 90 से ऊपर होता है। इन्हें हाई फीवर के साथ सर्दी, खांसी, बदन दर्द, सिरदर्द की भी शिकायत होती है। इनका इलाज भी वार्ड में ही किया जाता है।
उन्होंने बताया कि सीवियर यानी C कैटेगरी के मरीजों का इलाज आईसीयू में ही किया जाता है। इस कैटेगरी के मरीजों की सांस का रेस्पीरेटरी रेट 24 से 26 होता है, जो कि सामान्य 14-16 के मुकाबले काफी ज्यादा होता है। इनमें ऑक्सीजन की मात्रा 90 प्रतिशत (विदाउट ऑक्सीजन) से कम होती है। ए और बी कैटेगरी वाले लक्षण तो इनमें होते ही हैं।
डॉ. सांघी ने कहा कि वैरी सीवियर यानी डी कैटेगरी में सांस का रेस्पीरेटरी रेट 30 से 35 होता है। मरीज का ब्लड प्रेशर भी कम होता है। ब्लड में ऑक्सीजन की मात्रा भी काफी कम होती है, बुखार बहुत होता है साथ ही एक से अधिक अंग इस तरह के मरीज के खराब हो चुके होते हैं। ऐसे मरीजों को शुरुआत से ही आईसीयू में रखा जाता है।
कोरोना से डरें नहीं : उन्होंने बताया कि चूंकि यह बीमारी एक से दूसरे व्यक्ति में फैलती है। अत: इसको लेकर जागरूकता बहुत जरूरी है। इससे डरने की जरूरत नहीं है। सूझबूझ से और मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग के जरिए ही इससे जीता जा सकता है। डॉ. सांघी ने कहा कि हमें मास्क को शरीर का अंग बनाना होगा।
अच्छा है रिकवरी रेट : डॉ. सांघी ने बताया कि चोथराम अस्पताल का रिकवरी रेट करीब 80 फीसदी है। यहां 150 से 160 मरीजों का उपचार हुआ है, इनमें से 55 से 60 मरीज तो सीधे आईसीयू में भर्ती हुए थे। इनमें से 10 लोगों की मौत हुई है। उन्होंने बताया कि शुरुआती दौर में गंभीर मरीज ही अस्पताल पहुंचे। हालांकि मई माह में मौत का आंकड़ा कम हुआ है। तुलनात्मक रूप से लोगों में जागरूकता भी आई है।