प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोनावायरस (Coronavirus) काल में राष्ट्र के नाम अपने छठे संबोधन में इस बात पर गंभीर चिंता जताई कि अनलॉक-1 (Unlock-1) के बाद से लोग कोरोना को लेकर लापरवाही करने लगे हैं। न सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखा जा रहा है, न ही लोग मास्क को लेकर पहले जैसी (Lockdown) गंभीरता दिखा रहे हैं।
प्रधानमंत्रीजी ने एक बात और कही कि जो लोग नियमों को नहीं मान रहे हैं उन्हें टोकना होगा, रोकना होगा और समझाना होगा। गांव का प्रधान हो या देश का प्रधानमंत्री, कोई भी नियमों से ऊपर नहीं है। लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि क्या एक आम आदमी गांव के प्रधान को तो छोड़िए एक वार्ड पंच या किसी पार्टी के एक छोटे से भी कार्यकर्ता को टोक सकता है। यदि वह ऐसा करता भी है तो इस बात की क्या गारंटी है कि उसके साथ बदसलूकी नहीं होगी?
यहां हम नेल्लोर (आंध्रप्रदेश) की एक घटना का उल्लेख करना चाहेंगे जहां पर्यटन विभाग की एक महिला कर्मचारी को उसके साथी कर्मचारी ने बुरी तरह पीटा। उस महिला का अपराध सिर्फ इतना ही था कि उसने अपने सहयोगी से मास्क पहनने का आग्रह किया था। अब कल्पना कीजिए कि सरकारी दफ्तरों में ऐसा हाल है तो आम जिंदगी में टोकाटोकी करने की कौन हिम्मत करेगा। जहां छोटी-छोटी बातों पर लोग दुर्व्यवहार करने से नहीं चूकते, हिंसा पर उतारू हो जाते हैं।
तमिलनाडु के तूतीकोरीन की घटना का भी यहां उल्लेख करना जरूरी है, जहां पी. जयराज और उनके बेटे बेनिक्स को लॉकडाउन नियमों का 'उल्लंघन' कर तय समय से अधिक वक्त तक अपनी मोबाइल की दुकान खोलने के लिए गिरफ्तार किया गया था। जयराज के संबंधियों का आरोप है कि सतांकुलम थाने के पुलिसकर्मियों ने उन्हें बुरी तरह पीटा जिसके चलते पिता-पुत्र की मौत हो गई।
दोनों ही घटनाएं एक-दूसरे से उलट हैं। हो सकता है दुकानदार की गलती रही होगी, लेकिन यदि पुलिस थोड़ा धैर्य दिखाती तो दो जिंदगियां बच जातीं। कहने का तात्पर्य है कि हमें लोगों के मन में बैठे 'वायरस' को भी खत्म करना होगा। यदि हम ऐसा कर पाए तो कोरोनावायरस की महामारी को खत्म करने से भी हमें कोई रोक नहीं सकता।