Earthquake in India: 1000 साल बाद हिमालय क्षेत्र में आता है शक्तिशाली भूकंप, आ चुका है अब वह समय

तुर्किए और सीरिया में आए विनाशकारी भूकंप के बाद, न्यूजीलैंड फिर दिल्ली एनसीआर समेत पूरा उत्तर भारत कांप उठा। मध्य एशिया के भूकंप में 40 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, जबकि लाखों लोग बेघर हो गए थे। हालांकि भारत में आए भूकंप में जान माल का नुकसान तो नहीं हुआ, लेकिन लोगों के चेहरों पर दहशत को बखूबी पढ़ा जा सकता है। पाकिस्तान में जरूर इस भूकंप से दर्जनभर लोगों की मौत हुई थी। 
 
पृथ्वी पर अब तक का सबसे शक्तिशाली भूकंप 22 मई 1960 को चिली में आया था। उस समय इस भूकंप की तीव्रता 9.5 मापी गई थी। भूकंप के दौरान 10 मिनट तक धरती हिलती रही थी। उस समय इस आपदा में करीब 6000 लोगों की मौत हुई थी।
 
भारत के असम में भी 15 अगस्त 1950 को 8.5 तीव्रता का देश का भूकंप आया था, जो कि देश का अब तक का सबसे शक्तिशाली भूकंप है। इसमें करीब 11000 हजार लोगों की मौत हुई थी। 1897 में शिलांग के पठार में 8.7 तीव्रता का भूकंप आया था। कहा जाता है कि भूकंप की तीव्रता इतनी थी कि नदियों ने अपने रास्ते बदल लिए थे। आजादी से पहले 15 जनवरी 1934 को बिहार में भी 8.1 तीव्रता का भूकंप आया था। इस भूकंप से मुंगेर और जमालपुर इलाके में काफी तबाही हुई थी। 
क्यों आते हैं भूकंप : होलकर विज्ञान महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. राम श्रीवास्तव वेबदुनिया से बातचीत में कहते हैं कि पृथ्‍वी पर भूकंप हमेशा आते ही रहते हैं। लगभग 30 से 35 भूकंप रोज आते हैं, लेकिन इनकी तीव्रता 2.5 और 3 रहने के कारण या तो ये महसूस ही नहीं होते या फिर बहुत हलके महसूस होते हैं।
 
दरअसल, जैसे हमारे घर के ऊपर छत होती है, उसी तरह जमीन के नीचे भी एक छत है, जिसे बेसाल्टिक लेयर कहते हैं। इतना ही नहीं प्रायद्वीपों की प्लेट परस्पर टूट गई हैं, इनमें दरारें आ गई हैं। जब ये प्लेट्‍स (टेक्टोनिक) एक दूसरे से टकराती हैं साथ ही जब इनके टकराने की गति तेज हो जाती है तो चट्‍टानें हिल जाती हैं। इसके कारण ही भूकंप आता है। सामान्यत: 3-4 की तीव्रता में नुकसान नहीं होता, लेकिन जब भूकंप 5-6-7 या इससे अधिक की तीव्रता का होता है तो नुकसान ज्यादा होता है। 
श्रीवास्तव कहते हैं कि हिमालय का निर्माण ही प्लेटों के टकराने से हुआ था। द्वापरकालीन द्वारका नगरी भी भूकंप के कारण ही समुद्र में समा गई थी। हिन्दूकुश पर्वत से लेकर नॉर्थ ईस्ट एरिया भूकंप संवेदनशील क्षेत्र में आता है, जहां भूकंप आते रहते हैं। भूकंप की भविष्यवाणी अत्यंत असंभव है। कहते हैं कि सूर्य की लपटें जब निकलती हैं तो वे अपर एटमास्फेयर से टकराती हैं तो भूकंप आता है। हालांकि इसकी भी पुष्टि नहीं है। 
 
भारत में भूकंप की भविष्यवाणी : तुर्की में भूकंप से तीन दिन पहले आपदा की भविष्यवाणी करने वाले नीदरलैंड के भूवैज्ञानिक हूगार बीट्स ने भी भारत में बड़े भूकंप की भविष्यवाणी की है। बीट्स ने दावा किया था कि आने वाले कुछ दिनों में अफगानिस्तान में भी कोई बड़ा भूकंप आ सकता है जिसकी जद में पाकिस्तान और भारत का एक बड़ा भू-भाग आ सकता है। 21 मार्च 2023 को आए भूकंप का केन्द्र अफगानिस्तान के हिन्दूकुश में ही था। हालांकि इससे ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। 
प्रो. श्रीवास्तव कोलोरोडो यूनिवर्सिटी के रॉजर विलहम एवं सिंगापुर यूनिवर्सिटी के पॉल टपोलियर के हवाले से कहते हैं इन दोनों ने ही हिमालय क्षेत्र में भूकंप को लेकर काफी काम किया है। इससे जुड़ी जानकारी नेचर नामक पत्रिका में भी प्रकाशित हुई है। इन वैज्ञानिकों के मुताबिक 1000 साल में हिमालय की तराई में एक 'मेगा भूकंप' आता है, जो कि अब ड्‍यू हो गया है। रिक्टर पैमाने पर यह भूकंप 8-9 तीव्रता का हो सकता है। यदि ऐसा हुआ तो गंगा के मैदान में बहुमंजिला मकान जमींदोज हो जाएंगे। इससे काफी नुकसान हो सकता है। 
प्रोफेसर कहते हैं कि चूंकि भूकंप की भविष्यवाणी नहीं हो सकती, लेकिन समय रहते हमें खतरनाक क्षेत्रों का ऑडिट करना चाहिए कि कोई मकान कितना झटका झेल सकता है। इसके लिए हमें किसी भूकंप का इंतजार नहीं करना चाहिए। 
 
किस तरह मदद करता है युनाइटेड नेशन : संयुक्त राष्ट्र में पॉलिसी अधिकारी सिद्धार्थ राजहंस वेबदुनिया से बातचीत में कहते हैं कि एच6 पार्टनरशिप के माध्यम से तुर्किए और सीरिया को राहत पहुंचाई गई थी। एच6 पार्टनरशिप के तहत यूएन एफपीए, यूनिसेफ, डब्ल्यूएचओ, वर्ल्ड बैंक, यूएन एड्‍स और यूएन विमन के जरिए यूएन ने पीड़ितों को मदद पहुंचाई। यूएन की तरफ से पहली रिलीफ यूएन जनरल सेक्रेटरी के माध्यम से 397 मिलियन डॉलर की पहुंचाई गई।
 
राजहंस कहते हैं कि आतंकवाद प्रभावित सीरिया की हालत की आप कल्पना नहीं कर सकते। जहां लोग पहले से ही बेघर थे, वहां भूकंप से और ज्यादा हालत खराब हो गई। ठंड का मौसम होने के कारण लोगों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में यूएन की टीम का प्राइमरी फोकस महिला, बच्चों पर रहा। गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को राहत पहुंचाने के लिए काम किया गया। यूएन ने मदद के लिए 300 मिशन को डिप्लॉय किया था। 
कैसे बचें आपदा से : डिजास्टर मैनेजमेंट विशेषज्ञ डॉ. अनिकेत साने कहते हैं कि 2001 में गुजरात में आए भूकंप के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ा था। कच्छ क्षेत्र की 50 से 60 प्रतिशत इमारतें तबाह हो गई थीं। उन्होंने कहा कि भूकंप की पहले से भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती, लेकिन बचने के लिए प्री-अर्थक्वेक डिजास्टर प्लान तो तैयार कर ही सकते हैं। 
 
उन्होंने कहा कि भूकंप से किसी की मृत्यु नहीं होती। इमारतों के मलबे में दबने से ज्यादा लोगों की मृत्यु होती है। हमें इसके लिए भूकंप रोधी मकानों का निर्माण करना चाहिए। भूकंप रोधी इमारतों का निर्माण करने के लिए रेक्ट्रोफीलिंग मटेरियल का उपयोग किया जाता है। सरकार ने भी इसके लिए गाइडलाइंस जारी की है।

भूकंप से बचने के लिए सूत्र वाक्य का उल्लेख करते हुए साने कहते हैं कि भूकंप के समय रुको, झुको, ढको और बचो की नीति अपनानी चाहिए। हमें भूकंप के समय टेबल के नीचे घुसकर, या चौखट के नीचे खड़े होकर खुद को बचाना चाहिए। सिर बच जाता है तो बचने की उम्मीद बढ़ जाती है। 
 
क्या कर रही है भारत सरकार : सरकार भूगर्भीय हलचलों की निगरानी क्षमताओं को और विस्तृत करने के लिए अगले 2 से 3 वर्षों में 100 और वेधशालाएं स्थापित करने की योजना बना रही है। पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेंद्र सिंह ने हाल ही में राज्यसभा में बताया था कि देश में और आसपास भूकंपीय गतिविधि की निगरानी कर रहीं 152 वेधशालाओं के एक नेटवर्क का प्रबंधन करता है।
 
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय भूकंपीय नेटवर्क (नेशनल सिस्मोलॉजिकल नेटवर्क) में देश के अधिकतर हिस्सों में 3.0 तीव्रता के भूकंप का पता लगाने की क्षमता है। इस प्रकार, संबंधित जोखिमों को कम करने के लिए वैज्ञानिक और अभियांत्रिकी समाधान अपनाकर उचित शमन ‘सिस्मिक माइक्रोजोनेशन’ अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भूकंप-रोधी इमारतों/बुनियादी ढांचे/आवासों के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण जानकारियां देने में मदद करता है ताकि भूकंप के झटकों के प्रभावों को कम किया जा सके।
 
सुरक्षित शहरी नियोजन के लिए संरचनाओं और जीवन के नुकसान को कम किया जा सके। मंत्री ने कहा कि प्राकृतिक आपदाएं प्राकृतिक प्रक्रियाओं की वजह से आती हैं और हमेशा वे मानवीय प्रभाव का परिणाम नहीं होती हैं। हालांकि, किसी भी क्षेत्र की संवेदनशीलता हमेशा गैर-अभियांत्रिकी संरचनाओं से प्रभावित होती है।

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