संज्ञेय अपराधों की एफआईआर और अन्वेषण

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पिछले दिनों भारत की शीर्ष अदालत ने कहा था कि संज्ञेय अपराधों की एफआईआर दर्ज करना आवश्यक है। आखिर संज्ञेय अपराध हैं क्या? ...और यदि पुलिस अधिकारी इन मामलों में रिपोर्ट दर्ज करने से इनकार करे तो पीड़ित पक्ष क्या कदम उठा सकता है? इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए पर पढ़िए कानून विषय के विशेषज्ञ का एक आलेख...


संज्ञेय अपराध और संज्ञेय मामले वे अपराध हैं जिनमें पुलिस अधिकारी अपराधियों को बिना वारंट गिरफ्तार कर सकता है। संज्ञेय अपराध गंभीर और अजमानतीय होते हैं।

संज्ञेय मामलों में इत्तिला- (1) संज्ञेय अपराध के लिए जाने से संबंधित प्रत्येक ‍इत्तिला (एफआईआर) यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को मौखिक में दी गई है, तो उसे लिपिबद्ध किया जाएगा और सूचना देने वाले को पढ़कर सुनाई जाएगी और प्रत्येक ऐसी ‍इत्तिला (सूचना) पर चाहे वह लिख‍ित में दी हो या मौखिक जिसे लिख लिया हो, इत्तिला देने वाले के हस्ताक्षर कराए जाएंगे और उसका सार एक डायरी में प्रव‍िष्ट किया जाएगा।

(2) इत्तिला देने वाले को उसकी प्रतिलिपि तत्काल नि:शुल्क दी जाएगी।

(3) यदि पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखने से मना करे तो पीड़ित व्यक्ति ऐसी सूचना का सार लिखकर डाक द्वारा संबंधित पुलिस अधीक्षक को भेज सकता है। तब पुलिस अधीक्षक का समाधान हो जाने पर कि संज्ञेय अपराध का किया जाना स्पष्ट होता है तो या तो वह स्वयं मामले का अन्वेषण करेगा या अपने अधीनस्थ पुलिस अधिकारी को अन्वेषण का निर्देश देगा और उस अधिकारी को उस अपराध के संबंध में पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी की सभी शक्तियां होंगी।

सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान में दिए गए निर्णय से पुलिस अधीक्षक को शिकायत करने में होने वाले इस विलंब पर रोक लगेगी। इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ राज्यों की इस मांग को मानने से इंकार कर दिया कि सीबीआई की तर्ज पर पुलिस को भी अन्वेषण के बाद रिपोर्ट लिखने की सुविधा मिले।

सर्वोच्च न्यायालय ने इस मांग को इस आधार पर अस्वीकृत किया कि इससे पुलिस मनमानी करने लगेगी और जनता के अधिकारों का उल्लंघन होगा। इसलिए एफआईआर लिखने के बाद ही पुलिस को अन्वेषण शुरू करना चाहिए, जैसा कि दंड प्रक्रिया संहिता में निर्धारित किया गया है। किंतु सर्वोच्च न्यायालय ने इसमें पुलिस को इतनी छूट अवश्य दे दी है कि पुलिस 7 दिन में प्राथमिक जांच यह पता लगाने के लिए कर सकती है कि अपराध संज्ञेय (गंभीर) है या नहीं।

पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना ऐसे संज्ञेय मामलों का अन्वेषण कर सकता है।

संज्ञेय अपराध में अन्वेषण की प्रक्रिया : पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी एफआईआर प्राप्त होने के बाद अपराध की रिपोर्ट तत्काल उस मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा जिसे संज्ञेय अपराध का संज्ञान करने का अधिकार है। और फिर मामले के तथ्यों और परिस्‍थितियों का अन्वेषण करने के लिए और यदि आवश्यक हो तो अपराधी का पता लगाने और उसकी गिरफ्तारी के लिए घटनास्थल पर जाएगा।

मजिस्ट्रेट रिपोर्ट प्राप्त होने पर अन्वेषण का आदेश दे सकता है और यदि वह उचित समझे तो इस अपराध प्रक्रिया संहिता में उपबंधित रीति से मामले की प्रारंभिक जांच करने या उसको निपटाने की तुरंत कार्रवाई कर सकता है या अपने अधीनस्‍थ किसी मजिस्ट्रेट को कार्रवाई करने के लिए नियुक्त कर सकता है।

अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी अपने थाने की या पास के थाने की सीमाओं में इत्तिला करने वाले या उस मामले के तथ्यों और परिस्‍थितियों को जानने वालों को साक्ष्य के लिए उपस्‍थित होने के लिए लिखित आदेश देगा। किंतु 15 वर्ष से कम आयु का पुरुष या स्त्री के अपने निवास के स्थान से अन्यत्र नहीं बुलाया जाएगा।

अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी साक्षियों की मौखिक साक्ष्य ले सकता है। अन्वेषण के दौरान किया गया कथन यदि लिखित में है तो कथन करने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर नहीं कराए जाएंगे।

निम्नलिखित अपराधों को संज्ञेय अपराध माना है-

भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना या दुष्प्रेरण करना, राज्य के विरुद्ध षड्यंत्र, भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध के लिए हथियार संग्रहीत करना, राष्ट्रपति या राज्यपाल पर हमला, राजद्रोह, मित्र देशों में लूटपाट करना, लूटपाट की संपत्ति प्राप्त करना, कैदी को अभिरक्षा में से भागने देना, सेना, नौसेना और वायुसेना से संबंधित अपराध, लोकशांति के विरुद्ध अपराध, लोकसेवकों से संबंधित अपराध, निर्वाचन में प्रतिरूपण, मृत्युदंड से दंडनीय अपराधी को संश्रय देना, आजीवन कारावास या 10 वर्ष के कारावास के अपराध, सिक्कों का कूटकरण के अपराध, सरकारी स्टाम्प का कूटकरण, लोक जलस्रोत के जल को प्रदूषित करना, लोकमार्ग पर उपेक्षा से वाहन चलाना, हत्या, आत्महत्या का दुष्प्रेरण, उपेक्षापूर्ण कार्य में हत्या, हत्या का प्रयत्न, ठग होना, स्त्री की सम्मति के बिना गर्भपात कराना, खतरनाक आयुधों से चोट पहुंचाना, घातक चोट, सदोष अवरोध, वेश्यावृत्ति के लिए अवयस्क को बेचना, विधिविरुद्ध अनिवार्य श्रम, बलात्संग, अप्राकृतिक अपराध, चोरी, डकैती, आपराधिक न्यास भंग, गृह अतिचार, 3 वर्ष से अधिक कारावास से दंडनीय अपराधों को करने का प्रयत्न आदि।

दंड विधि संशोधन अधिनियम 2013 द्वारा अर्थदंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन कर निम्नलिखित अपराधों को संज्ञेय बनाया गया:-

लोकसेवक द्वारा कानूनी निर्देशों की अवज्ञा करना, स्वेच्छा से अम्ल फेंकने का प्रयत्न करना, स्त्री की लज्जा भंग के आशय में हमला या आपराधिक बल का प्रयोग, लैंगिक संबंधों की मांग, अश्लील साहित्य दिखाना, निर्वस्त्र करने के आशय में स्त्री पर हमला या बल का प्रयोग, दृश्यरतिकता, पीछा करना, व्यक्ति का दुर्व्यापार, दुर्व्यापारिक बच्चे का शोषण प्राधिकार में किसी व्यक्ति द्वारा मैथुन, सामूहिक बलात्संग आदि।
(लेखक शासकीय विधि महाविद्यालय, इंदौर के सेवानिवृत्त प्राध्यापक हैं)

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