भारत के पड़ोस में एक और संभावित तालिबान

नवीन जैन
गुरुवार, 21 अक्टूबर 2021 (16:42 IST)
हदें पार कर देना कहेंगे इसे। यूं 1971 में भारत की गोद में जन्म लेने वाले बांग्लादेश में हिन्दू तीज-त्योहारों पर हिन्दुओं के मंदिर, पूजास्थलों, घरों और उन पर हिंसक हमले आम बातें रही हैं। लेकिन उक्त देश से निकली खबरों में यह दुर्दांत जानकारी तक दी जा रही है कि इस बार तो वहां छोटी-छोटी बच्चियों से जबर्दस्ती तक की गई। इस वर्ष जैसे ही दुर्गा पूजा का उत्सव मनना प्रारंभ हुआ उक्त सभी घटनाएं ही नहीं हुईं, बल्कि कुछ हिन्दुओं की हत्या भी कर दी गई। आगजनी की खबरें तो अब भी आ रही हैं।
 
इन सबके पीछे कदाचित पहली बार यह हौलनाक अफवाह फैला दी गई कि हिन्दुओं ने मुसलमानों के पवित्र धर्मग्रंथ कुरान-ए-शरीफ़ की बेअदबी की। कितनी भी गिरी हुई सोच वाला व्यक्ति क्यों न हो, कभी और किसी भी कीमत पर यह मानने को तैयार होगा कि हिन्दुओं की मानसिकता और सोच इतनी लीचड़ होने के साथ इतनी घटिया है कि वे किसी भी संप्रदाय के पवित्र धर्म ग्रंथ का अपमान करने की धृष्टता करें। और वह भी उस देश में, जहां उनकी (हिन्दुओं) की जनसंख्या 13.5 से हटकर सिर्फ़ 8.5 प्रतिशत रह गई हो। दरअसल, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना अपने पिता और बांग्लादेश के राष्ट्रपिता बगबंधु स्व. शेख़ मुजीबुर्रहमान की तरह आत्मघाती अंजाम की ओर सफ़र कर रही हैं।
 
प्रासंगिक होगा याद दिलाना कि 1971 में दरअसल भारत-पाकिस्तान के बीच जंग हुई थी। इसी युद्ध के बाद बांग्लादेश के उदय का अनूठा उदाहरण सामने आया था। इसका एकमात्र श्रेय यदि किसी को जाता है तो वह है भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री लौह महिला स्व. इंदिरा गांधी और भारतीय सेनाओं के तीनों अंगों को। अगरचे भारत की नीयत में खोट होता, तो वह पूर्वी पाकिस्तान ऊर्फ़ वर्तमान बांग्लादेश पर तभी तिरंगा लहरा देता। कारण कि भारत की पलटनें बांग्लादेश की राजधानी ढाका तक पहुंच गई थीं। तब तक कराची बंदरगाह का भी लगभग पतन भारत की नौसेना ने कर दिया था। कश्मीर के साथ राजस्थान के विभिन्न मोर्चों पर भी भारत की सामरिक स्थिति लगातार मजबूत हो रही थी। इस युद्ध के पहले पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह स्व. जनरल याहया खान ने लाखों पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को मौत के घाट उतरवा दिया था।
 
पता नहीं क्यों, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री इस तथ्य की अनदेखी कर रही हैं कि उसी दौरान पाकिस्तान की फ़ौजों और पुलिस ने अनगिनत हिन्दू महिलाओं से बलात्कार किए थे जिसके चलते कई महिलाएं तो गर्भवती हो गई थीं। भारत ने इन्हीं के साथ उन पाकिस्तानी सैनिकों का उपचार भी करवाया था, जो उक्त व्यभिचार के कारण विभिन्न गुप्त रोगों का शिकार हो गए थे। इसी दौरान एक 'भूतो न भविष्यति:' घटना यह हुई थी कि लगभग 93 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत की फौज के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।
 
शेख़ हसीना फ़िलहाल तो उक्त ताज़ा घटनाओं को लेकर भारत की टिप्पणियों के बारे में सतर्कता की सलाह दे रही हैं, लेकिन पता नहीं वे इस तथ्य से भी अनभिज्ञ क्यों हैं कि उनके पिता शेख़ मुजीबुर्रहमान को उनकी हत्या के पहले ही भारत की ओर से सावधान कर दिया गया था। तब भारतीय जासूसी संस्था रॉ (रिसर्च एंड एनेलिसिस विंग) के तत्कालीन निदेशक स्व. रामनाथ काव ने मुजीबुर्रहमान को वक़्त रहते उनकी आशंकित हत्या की साजिश की जानकारी एक बहुरूपिया बनकर दे भी दी थी, लेकिन पर्याप्त सावधानी न बरतने के कारण न सिर्फ़ शेख़ मुजीबुर्रहमान, बल्कि उनके परिजनों की भी हत्या कर दी गई।
 
'लज्जा' उपन्यास लिखकर गहरे विवादों में आईं एमबीबीएस डॉक्टर तस्लीमा नसरीन यदि कह रही हैं कि बांग्लादेश अब ज़ेहादीस्तान बनता जा रहा है, तो इस टिप्पणी को महज कागज़ी भरपाई मानकर नहीं चला जा सकता। वजह है तस्लीमा 'लज्जा' उपन्यास के कारण अपने ही वतन बांग्लादेश से अभी तक निर्वासन भोग रही हैं। तस्लीमा ने यह भी कहा है कि शेख़ हसीना बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को मुमकिन है अपने राजनीतिक फायदों के लिए सुरक्षा मुहैया नहीं करा रही हैं। कुछ विदेशी मीडिया की खबरें कहती हैं कि शेख हसीना वास्तव में तालिबानों ताकतों के उभरने के संभावित खतरों से डर रही हैं। वैसे बांग्लादेश के हालात की तुलना तालिबान से करने के जायज़ कारण भी बनते हैं।
 
सनद रहे कि जैसे ही तालिबान ने अफगानिस्तान पर अटैक करने शुरू किए, उन्होंने वहां सदियों से बसे हिन्दुओं और सिखों को साथ में ही निशाना बनाया। भारतीय वायुसेना को ईरान के रास्ते जाकर अपने लोगों को निकालना पड़ा लेकिन कुछ खबरों के अनुसार कई हिन्दू और सिख अभी भी वहीं फ़ंसे हुए हैं। आशंका व्यक्त की जा रही है कि महजबी शक्तियां बांग्लादेश में सक्रिय हो चुकी हैं और तख्तापलट करके बांग्लादेश को भी दूसरा तालिबान बनाना चाहती हैं। इस प्रक्रिया में इस बार तेजी इसलिए भी आई हो सकती है कि 15 अगस्त को ही तालिबान के गठन की घोषण की गई थी।
 
यह मात्र संयोग नहीं है कि इसी घोषणा के बाद कश्मीर में अप्रवासी कश्मीरियों की आतंकियों ने हत्याएं कीं, कुछ भारतीय सैनिकों तक की शहादत हुई और कश्मीर घाटी में 1990 जैसी हत्याओं, बलात्कार और पलायन के जैसे हालात बनने लगे हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि बांग्लादेश के एक अतिवादी तबका हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाने की मुहिम छेड़ चुका है। वैसे भी यह तबका ऐसा है, जो कुछ सिरफिरे वामपंथी नेताओं की तरह कहता है कि एक न एक दिन पूरी दुनिया में लाल झंडा फहराएगा।
 
अतिवादी मुस्लिम पॉकेट के बारे में भी तो यह धारणा है कि ये लोग पूरे जहां के इस्लामीकरण का ख्वाब देख रहा है। अच्छी बात यह कि बांग्लादेश का लगभग पूरा मीडिया बड़ी कड़क भाषा और तेवर में शेख हसीना के खिलाफ एकजुट हो गया है। शेख़ हसीना से सीधे सवाल किए जा रहे हैं कि इस देश के अल्पसंख्यकों को सुरक्षा, सम्मान और शांति के साथ जीने का अधिकार है या नहीं?
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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