उस समय मैं विनोबा भावे के निर्देश पर रेलवे की नौकरी छोड़कर इंदौर के विसर्जन आश्रम में काम कर रहा था। जेल में हमें कई बड़े नेताओं- सर्वोदयी नेता दादाभाई नाईक, संघ प्रमुख रहे केएस सुदर्शन, मामा बालेश्वर दयाल, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कैलाश जोशी, सुंदरलाल पटवा, वीरेन्द्र कुमार सखलेचा, शरद यादव, ओमप्रकाश रावल आदि का सानिध्य भी प्राप्त हुआ।
हालांकि बाहर पुलिस का आतंक था, लेकिन जेल में हम पूरी तरह स्वतंत्र थे। इसका कारण हमारा संगठित प्रतिरोध था। जेल में भी हम आपातकाल के खिलाफ आवाज बुलंद करते थे। उपवास, नारे, गीत, प्रवचन, विचार गोष्ठियों का आयोजन दिनभर चलता रहता था। उस दौर में सबसे बड़ी बात यह थी कोई किसी को निर्देश नहीं दे रहा था, सब कुछ स्वप्रेरणा से हो रहा था। सब उस आंधी में बहे चले जा रहे थे।