भारत के कुशल कर्मियों को नौकरी देगा जर्मनी

राम यादव
Germany needs skilled workers from India: जर्मनी एक लंबे समय से अपने यहां विभिन्न पेशों के कुशल कर्मियों (स्किल्ड वर्कर्स) की भारी कमी का सामना कर रहा है। जर्मनी के कल-कारखानों, परिवहन एवं स्वास्थ्य सेवाओं तथा व्यापारिक प्रतिष्ठानों में कुशल कर्मचारियों की इस भारी कमी को दूर करने के लिए जर्मन सरकार ने सबसे पहले यूरोपीय संघ के अपने पड़ोसी देशों, लैटिन अमेरिकी देशों और अफ्रीका का रुख किया, पर वांछित सफलता नहीं मिली।
 
अतः जर्मनी अब कुछ समय से भारतीय कुशल कर्मियों को आकर्षित करने में लगा है। जर्मनी के श्रम मंत्री हूबेर्टुस हाइल, करीब एक साल पहले स्वयं भारत गए थे। भारतीय कुशल कर्मियों को लुभाने के लिए अब उन्होंने एक नई रणनीति बनाए जाने का ऐलान किया है। वे, अपने काम-धंधे में कुशल विशेषकर युवा भारतीयों के लिए बड़े पैमाने पर जर्मनी आना व नौकरी-धंधा पाना और अधिक आसान बनाना चाहते हैं।
 
नई रणनिति बन रही है : बर्लिन की फ्री यूनिवर्सिटी में भारतीय छात्रों के साथ 11 जुलाई को हुई एक बातचीत के बाद श्रम मंत्री हाइल ने घोषणा की कि भारतीय कुशल कर्मियों की भर्ती को सरल बानाने के लिए एक नई रणनिति तैयार की जाएगी।उसे आगामी शरद ऋतु में होने वाले भारत और जर्मनी के बीच के मंत्री-स्तरीय सरकारी परामर्श के समय पेश किया जाएगा। 
 
हाइल ने कहा कि यह कुशल कर्मी रणनीति (जर्मनी के) विदेश मंत्रालय और श्रम मंत्रालय, जर्मन अर्थव्यवस्था, देश के राज्यों तथा अन्य विभागों के साथ मिलकर विकसित की जा रही है। इस रणनीति का उद्देश्य 'भारत को स्पष्ट संकेत देना है कि जर्मनी में प्रतिभाशाली दिमागों और मदद करने वाले भारतीय हाथों का स्वागत है।'
 
जर्मनी के श्रम मंत्री ने कहा, 'हम एक देश, (भारत जैसे) एक बड़े देश को साफ़ बताना चाहते हैं कि यह नीति कैसे काम करेगी। हम बताएंगे कि वीज़ा जारी करने की गति हम कैसे बढ़ाएंगे, विभिन्न कार्यक्षेत्रों में भर्ती के सवाल से हम कैसे निपटेंगे, अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में क्या कार्य हैं, देश के विभिन्न राज्य क्या क़दम उठा रहे हैं।' नई रणनीति में इन सभी बातों को समन्वित किया जाएगा। 
 
हर महीने 15 लाख लोग काम की तलाश में : जर्मनी के श्रम मंत्री ने बर्लिन की फ्री यूनिवर्सिटी के भारतीय छात्रों से कहा, 'भारत एक महत्वपूर्ण देश है, क्योंकि उसकी अब न केवल पूरी दुनिया में सबसे बड़ी आबादी है, बल्कि इसलिए भी कि हर महीने 15 लाख लोग भारत के श्रम बाजार में प्रवेश करते हैं।' उनके ऐसा कहने का तात्पर्य यही था कि भारत इतने सारे लागों के लिए नौकरी-धंधे आसानी से जुटा नहीं सकता। अतः भारतीय कुशल कर्मियों के लिए जर्मन श्रम बाज़ार खेलने से भारत सरकार पर का भार भी कुछ हल्का होगा।
 
भारतीय छात्रों के साथ बातचीत के दौरान, हाइल ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जर्मनी की जनसांख्यिकीय संरचना के कारण देश के श्रम बाजार को कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। देश के श्रम बाज़ार और पेशे संबंधी शोध संस्थान के एक अध्ययन का हवाला देते हुए श्रम मंत्री हाइल ने कहा कि श्रम बाज़ार की मांग को पूरा करने के लिए जर्मनी को 2035 तक 70 लाख कुशल श्रमिकों की आवश्यकता पड़ेगी।
 
अच्छे वेतन और जीवनयापन के अवसर : श्रम मंत्री के साथ बातचीत में भारतीय छात्रों का कहना था कि उनके विचार से जर्मन स्वास्थ्य सेवा प्रणाली, अच्छे वेतन के अवसर और जीवनयापन की बेहतर गुणवत्ता को जर्मनी में रहने और काम करने के लाभ के रूप में देखा जा सकता है। हालांकि, डॉक्टरेट कर रहे कई छात्रों ने जर्मनी में विज्ञान के क्षेत्र में काम पाने की संभावनाओं के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की। वे विज्ञान के क्षेत्र में अच्छी नौकरियां पा सकना अनिश्चित मानते हैं। जर्मनी में नौकरशाही और डिजिटलीकरण की स्थिति भी वे संतोषजनक नहीं मानते।
 
जर्मनी अब तक इस बात पर बहुत ज़ोर देता रहा है कि नौकरी-धंधे के लिए जो कोई जर्मनी आना चाहता है, उसे जर्मन भाषा भी आनी चाहिए। जर्मनी के स्कूलों में जर्मन भाषा के साथ-साथ सब को इंग्लिश और एक तीसरी भाषा के तौर पर फ्रेंच, स्पेनिश, पुर्तगीज़ या चीनी जैसी कोई अन्य भाषा भी सीखनी पड़ती है, पर देश के सारे काम-काज केवल जर्मन भाषा में ही होते हैं। इसलिए जर्मन सीखना अनिवार्य हो जाता है। 
 
जर्मन भाषा की अनिवार्यता के कारण विदेश जाने के लिए लालायित भारतीय युवा, जर्मनी के बदले इंग्लैंड, अमेरिका और कैनडा जैसे उन देशों में नौकरी-धंधा ढूंढते हैं, जहां भारत की तरह अंग्रेज़ी का ही बोलबाला है। इस कारण भारतीय कुशल कर्मियों को पाने के लिए जर्मनी अब पहले से ही जर्मन भाषा जानने की ज़िद करने के बदले अंग्रेज़ी को भी स्वीकार करेगा, पर चाहेगा कि जर्मनी में रहने के दैरान वे स्वयं अपनी सुविधा लिए ही सही, जर्मन भाषा भी सींखें।  

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