पाकिस्तानी उलझन को उलझाए रखने में समझदारी है

पठानकोट के हमले की जवाबदारी से पाकिस्तान फिर मुकर गया। किन्तु इसमें अनअपेक्षित कुछ नहीं था। भारत सरकार का कूटनीतिक विभाग हो या फिर एक भारतीय आम नागरिक, किसी ने भी यह स्वप्न नहीं देखा होगा कि पाकिस्तान का जांच दल भारत में उतरेगा, भारतीय दल उनके सामने पाकिस्तान के विरुद्ध साक्ष्य रखेगा और फिर पाकिस्तानी दल डंके की चोंट पर पठानकोट हमले में पाकिस्तान के नागरिकों या आईएसआई के शामिल होने की बात स्वीकार कर लेगा। जब सभी को परिणाम मालूम था तो फिर भारत सरकार को पाकिस्तानी जां‍च एजेंसी को दावत देने की क्या दरकार थी? 
 
भारत का प्रत्येक नागरिक यह जानता है कि पाकिस्तान से डील करने का कोई सीधा फार्मूला नहीं है। विपक्ष का आरोप है कि भारत की विदेश नीति में पाकिस्तान से निपटने की कोई स्थाई नीति है ही नहीं। सत्य है। एक ऐसे राष्ट्र के साथ क्या नीति बन सकती है जो स्वयं आत्मघात पर उतारू हो। पाकिस्तान की हालत उस नौजवान की तरह है जो छत पर चढ़कर कूदना चाहता है और प्रशासन तथा पड़ोसी विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर तो कभी ध्यान हटाकर उसे नीचे उतारना चाहते हैं। कुल मिलाकर पाकिस्तान के साथ भी यही कहानी है। भारत की नीति भी यही है कि पाकिस्तान को किसी न किसी तरह उलझाकर रखो तथा आत्मघाती छलाँग के सारे मार्ग बंद करते जाओ। 
 
यदि आपने ध्यान से मोदी जी की विदेश यात्राओं पर समाचार पढ़ें होंगे तो जाना होगा कि उन्होंने विश्व के लगभग हर राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष के साथ आतंकवाद का मुद्दा उठाकर परोक्ष रूप से पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा किया है। किन्तु साथ ही पाकिस्तान का साथ भी नहीं छोड़ा है। पाकिस्तान का मीडिया आज भारत को सरे आम एक दुश्मन राष्ट्र घोषित करता है किन्तु भारत की भाषा संयमित रही है।
 
कुछ दिनों पूर्व पाकिस्तान ने भारत के एक व्यापारी कुलभूषण जादव को मीडिया में प्रस्तुत किया और भारत के विरुद्ध अनर्गल आरोप लगवाए। पाकिस्तान के अनुसार वह भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ का जासूस था जो बलूचिस्तान में अशांति फैलाने आया था। भारतीय अधिकारियों ने पाकिस्तान की इस मनगढ़ंत कहानी में कई त्रुटियां निकाल दीं और नैतिक एवं कानूनी तौर पर पाकिस्तान में स्थित भारतीय दूतावास के अधिकारियों को भारतीय नागरिक से मिलने देने की मांग की। साजिश का पर्दाफाश होने के डर से पाकिस्तान सरकार ने भारत की इस मांग को ठुकरा दिया। भारतीय अधिकारियों के अनुसार वह नौसेना का एक  सेवानिवृत अधिकारी है, जो अब एक व्यापारी है।
 
एक विवरण के अनुसार पाकिस्तान की एजेंसी ने उसे कहीं से अगुआ किया है तथा उसे यातना देकर भारत के विरुद्ध अनर्गल आरोप लगाने के लिए के लिए शिक्षित किया है। भारत ने साबित किया कि वह अपने नागरिकों के लिए कितना संवेदनशील है और उसे पाकिस्तान की तरह अपने नागरिकों का त्याग करना नहीं आता। निष्कर्ष यही है कि पाकिस्तान द्वारा यह साजिश विश्व के सामने पठानकोट की घटना पर शर्मिंदगी छुपाने के लिए की गई है। 
 
इस तरह पाकिस्तान एक ऐसे अंधेरे दलदल में फंसा है जहां से उसे निकलने का मार्ग नहीं सूझ रहा है। जितना निकलने की कोशिश करता है उतना ही अंदर धंसता जाता है। पाकिस्तान की नागरिक सरकार के पास भारत के साथ विदेशी मामलों में कोई निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। सैन्य शासन ने भारत के विरुद्ध इस तरह हव्वा खड़ा किया हुआ है कि पाकिस्तान के नागरिकों को लगता है कि  पाकिस्तान की सेना ही उनकी तारणहार है। सेना और नागरिक प्रशासन दोनों ही  आतंकवादी संगठनों को लेकर घोर उलझन में है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि इन संगठनों को प्रश्रय दे या उनसे लड़े। 
 
राष्ट्र कई बार अपने आप को ऐसी स्थिति में पाता है जहां से दो मार्ग जाते हैं और उनमे से एक का चुनाव करना होता है। पाकिस्तान तो एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहां चारों ओर अंधकार है। एक ओर आतंकवाद का मार्ग है तो दूसरी ओर बलूचिस्तान को लेकर गृहयुद्ध का। तीसरी ओर सेना की महत्वाकांक्षाएं हैं तो चौथी तरफ अक्षम नागरिक सरकार। ऐसी  स्थिति में भारत सरकार की कोई भी नीति कारगर नहीं हो सकती। सच तो यह है कि भारत सरकार को इसी तरह पाकिस्तान को विभिन्न उपक्रमों में व्यस्त रखना होगा और भारतीय सेना को सतर्क रहना होगा।
 
हमारा विश्वास है कि मोदीजी के नेतृत्व में चतुर एवं सतर्क भारतीय सरकार शायद कर भी यही रही है। सामने देश तो एक हैं किन्तु पक्ष कई, तो फिर किसी स्थाई  नीति का बनना नामुमकिन है। जब सब कुछ अपरिभाषित, अस्पष्ट और धुंधला हो तो किसी निर्णायक बिंदु पर पहुंचना लगभग असंभव होता है और तब परिस्थिति को उलझाए रखने में ही समझदारी है।  
 

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