संत का दायित्व: जिज्ञासा का समाधान और क्रांति का बीज
स्त्री के आचरण पर, स्त्री की पसंद पर और स्त्री के चरित्र पर सवाल उठाना कथावाचकों या संतों का काम नहीं, लेकिन अपने निजी क्षेत्र में किसी भक्त के प्रश्न का जवाब देना संत का दायित्व है। इसी धरती पर एक विचारक हुए रजनीश (ओशो)। इस देश ने उनकी बातों को भी बिना समझे उन्हें 'सेक्स गुरू का तमगा दे डाला। लेकिन वे रजनीश थे जो मूढ़ों की जमात का इलाज अनूठी शैली में करने का कौशल रखते थे। वे उस समय की बड़ी क्रांति थे जिसे दुनिया ने तब भले ही न समझा हो, लेकिन आज उनके विचारों को क्रांति बीज समझा जाता है। सोच कर देखिए, क्या प्रेमानंद महाराज आज के समय में क्या क्रांति का बीज नहीं बो रहे? जाति, धर्म और देश की सीमाओं के पार आज उनके विचार हर भेद को मिटा रहे हैं। उनकी प्रेरणा से असंख्य लोग और खासकर युवा पीढ़ी भक्ति का पथ अनुसरण कर रही है। बिना आडंबर और लालच के बाबा अपने ज्ञान से सभी का मार्गदर्शन करते हैं। आज उनकी किसी बात के मर्म को बिना समझे उनके खिलाफ मोर्चा खोल देना ये सीधा संकेत है कि अंधों की भीड़ में किसी आंख वाले की खैर नहीं।