दाढ़ी में आतंक नहीं छिपा है ताजिकिस्तान

अनवर जमाल अशरफ

बुधवार, 27 जनवरी 2016 (12:50 IST)
अफगानिस्तान की सीमा से लगे मध्य एशियाई देश ताजिकिस्तान में दाढ़ी रखने वाले मर्दों और हिजाब पहनने वाली औरतों के खिलाफ जो सख्ती बरती गई है, वह धार्मिक स्वतंत्रता को चुनौती देती है। सरकारी पक्ष है कि यह मजहबी कट्टरता कम करने के लिए उठाया गया कदम है, लेकिन यह फैसला विरोध का दरवाजा खोलता है और जिसके नतीजे में कट्टरता घटने की बजाय बढ़ सकती है।
करीब 80 लाख की आबादी वाले ताजिकिस्तान में पिछले साल करीब 13,000 मर्दों की दाढ़ी जबरदस्ती साफ कर दी गई। इससे भी ज्यादा औरतों के सिर से हिजाब उतरवा दिया गया। धार्मिक सामान बेचने वाली हजारों दुकानों को बंद करा दिया गया। सरकार का मानना है कि हाल के बरसों में यहां धार्मिक कट्टरता बढ़ रही है और उस पर नकेल कसने के लिए ऐसे कदम जरूरी हैं।
 
दूसरे धर्मों पर भी चाबुक : ताजिकिस्तान का संविधान इसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बताता है, जहां हर धर्म को मानने की आजादी है। सरसरी तौर पर ताजा फैसले को उदारवाद का नमूना बताया जा रहा है लेकिन देश के अंदर की स्थिति बिलकुल अलग है।
 
राष्ट्रपति एमामोली रहमोन (इमाम अली रहमान) ने 20 साल से भी ज्यादा के अपने शासनकाल में इस्लाम के अलावा दूसरे धर्मों पर भी चाबुक चलाया है। हाल तक पश्चिमी मीडिया उन्हें 'तानाशाह' बताता आया है, जिन पर धांधली करके चुनाव जीतने के आरोप हैं।
 
धार्मिक आजादी के अधिकार पर काम करने वाली नॉर्वे के गैरसरकारी संगठन फोरम 18 ने ताजिकिस्तान के धार्मिक स्वतंत्रता पर इसी महीने विस्तार से रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह ईसाई धर्म के कुछ लोगों को सिर्फ इसलिए जुर्माना देना पड़ा क्योंकि उनके पते पर बेलारूस से किसी ने ईसाई धर्म से जुड़ी पत्रिका भेजी थी।
 
एक दूसरी घटना में किसी घर के अंदर बाइबिल की शिक्षा दे रहे लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया और देश के एकमात्र यहूदी धर्मस्थल यानी सिनागॉग को पांच साल पहले बुलडोजर से रौंद दिया गया। उन्नीसवीं सदी का यह सिनागॉग राजधानी दुशाम्बे में था, जो ताजिकिस्तान में रहने वाले 1000 से ज्यादा यहूदियों के लिए प्रार्थना और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र था।
 
पहली बार नहीं : ताजिकिस्तान में 2009 से लोगों की धार्मिक आजादी पर धीरे-धीरे राष्ट्र का नियंत्रण होता जा रहा है। उस वक्त भी 50 साल के कम उम्र के स्कूली शिक्षकों के लिए दाढ़ी रखने पर पाबंदी लगा दी गई थी और 50 से ऊपर वालों को सिर्फ तीन सेंटीमीटर दाढ़ी रखने की इजाजत थी।
 
नाबालिगों यानी 18 साल से कम उम्र के बच्चों को मस्जिद जाकर नमाज पढ़ने की अनुमति नहीं है और जुमे की नमाज के वक्त का खुतबा सरकारी दफ्तर से पास कराना पड़ता है। देश में हज पर जाने वालों के लिए उम्र सीमा निर्धारित कर दी गई है– सिर्फ 35 से 80 साल के लोग ही हज कर सकते हैं।
 
भौगोलिक स्थिति : मध्य एशिया का यह देश एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में है। इसकी हजारों किलोमीटर लंबी सीमा अफगानिस्तान से जुड़ती है। पाकिस्तान भी इसके बेहद करीब है और विश्व के नक्शे पर यह वह इलाका है, जहां हाल के सालों में आतंकवाद की जड़े गहरी हुई हैं।
 
अफगानिस्तान की एक चौथाई से ज्यादा आबादी ताजिक मूल की है और जाहिर है उनका जुड़ाव ताजिकिस्तान से जरूर होगा। अगर हाल के सालों में वहां कट्टरता बढ़ी है, तो उसकी वजह यह भौगोलिक तथ्य है, दाढ़ी नहीं।
 
दूसरी तरफ ताजिकिस्तान दशकों तक सोवियत संघ का हिस्सा रहा है, जहां धर्म से ज्यादा कम्युनिस्ट और नास्तिक मूल्यों का बोलबाला था। सोवियत विघटन के साथ इसे धार्मिक आजादी भी मिली। लेकिन कट्टरता के नाम पर इस आजादी को छीनने का नतीजा यह हो सकता है कि विरोध में ज्यादा लोग कट्टरता की तरफ झुक जाएं।
 
खेल में भी दाढ़ी : दुनिया भर में जहां धार्मिक आजादी की बात हो रही है, वहां ताजिकिस्तान में एक पेशेवर फुटबॉल खिलाड़ी को धमकी मिलती है कि अगर वह अपनी दाढ़ी नहीं काटता है, तो टीम में उसकी जगह नहीं बनेगी।
 
यहां जहन में हाशिम अमला और इमरान ताहिर जैसे दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट खिलाड़ियों की तस्वीर उभरती है, जिन्हें न सिर्फ दाढ़ी रखने और अपने धर्म का पालन करने की अनुमति है, बल्कि उन्हें शराब कंपनी के प्रायोजक की जर्सी नहीं पहनने की भी छूट है।
 
अरब से बाहर जिन देशों में इस्लाम फैला, उनमें पूर्व सोवियत संघ और यूगोस्लाविया का नाम उल्लेखनीय है। इन देशों में इस्लाम का बेहद उदार चेहरा नजर आता है। लोग ईसाइयों और दूसरे धर्म के लोगों के साथ न सिर्फ मिल कर रहते हैं, बल्कि साझा परंपराएं भी निभाते हैं।
 
बोस्निया और कोसोवो जैसे बाल्कन के मुस्लिम देशों में भी दाढ़ी या हिजाब पर कोई प्रतिबंध नहीं। यूरोप के सबसे शक्तिशाली मुस्लिम देश तुर्की में भी धर्मनिरपेक्ष सत्ता के साथ-साथ परंपरावादी इस्लाम के निशान दिखते हैं। यहां तक कि यूरोप और अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों में भी मुसलमानों के दाढ़ी पर कोई पाबंदी नहीं।
 
दाढ़ी मतलब कट्टरता नहीं : इस्लामी तौर-तरीकों में धार्मिक वजहों से दाढ़ी रखने का पक्का सबूत कहीं नहीं मिलता लेकिन यह सदियों पुरानी रिवायत है और आस्था के नाम पर दाढ़ी रखना कोई ताज्जुब की बात नहीं। दाढ़ी रखने की वजह से किसी को आतंकवादी या कट्टर साबित करना हास्यास्पद है।
 
उदारवादी विश्व ने हर मजहब के लोगों को आजादी दी है और अमेरिका तक ने पगड़ी और दाढ़ी वाले सिखों का सम्मान के साथ स्वागत किया है, उन्हें अपनी फौजों में भर्ती किया है। ऑर्थोडॉक्स यहूदी भी दाढ़ी रखते हैं। यह एक बेहद निजी फैसला है, जिसका सम्मान जरूरी है और जिस पर राज्य का नियंत्रण कतई नहीं होना चाहिए।

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