गठबंधन में किसी अरब देश का नाम नहीं है किंतु लगभग सारे देश इस समय गठबंधन के साथ सहयोग करने को तैयार हैं। इन देशों का बदला हुआ रुख उन लोगों के लिए आश्चर्य की बात है, जो इन देशों का इतिहास जानते हैं, क्योंकि यह स्मरणीय भी है और उल्लेखनीय भी है कि इन्हीं देशों में से कुछ देश ऐसे थे जिन्होंने सीरिया और इराक के विरुद्ध इसिल को खड़ा किया था। एक समय ऐसा था, जब मध्यपूर्व के देश आतंक से सुरक्षित समझे जाते थे, क्योंकि आतंकियों का निशाना उस समय पश्चिमी देश होते थे। तब आतंकियों को चुपचाप पोषित करना भी उचित माना जाता था, क्योंकि तब इन देशों ने सोचा भी नहीं था कि ये संगठन एक दिन भस्मासुर की ही तरह पोषण करने वालों के विरुद्ध ही उठ खड़े होंगे। भस्मासुर तो पैदा करने वाले को ही भस्म करता है, इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए। फिर से उन राष्ट्रों के लिए सबक है, जो अन्य राष्ट्रों के विरुद्ध आतंकियों को पोषित करते हैं और सोचते हैं कि आतंकवाद उनकी समस्या नहीं है। घटनाक्रम का यह सुखद पहलू है कि इन बेकाबू होते संगठनों पर नियंत्रण करने के लिए अब एक-दूसरे से शत्रुता रखने वाले देश भी साथ आते दिखने लगे हैं। मध्यपूर्व में संबंधों के समीकरण में बदलाव आने लगे हैं और बड़ी सरगर्मी के साथ इस समस्या से लड़ने की कवायद चल रही है।