अमेरिका और यूरोप में ठनी, वेंस के भाषण से लगा EU को झटका

यूरोप और अमेरिका अपने आपको बड़े गर्व से लोकतंत्र का सर्वोच्च शिखर मानते रहे हैं। स्वयं को लोकतंत्र नाम के एक ही सिक्के के दो पहलू बताया करते थे, किंतु अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनते ही दोनों के बीच ठन गई है। दोनों एक-दूसरे के लोकतंत्र को आधा-अधूरा बताते हुए तीखे देषारोपण करने लगे हैं। शुक्रवार, 14 फरवरी को जर्मनी के म्युनिख शहर में दोनों लोकतंत्रों के असली चेहरे पर से पर्दा उठता देखना एक अप्रत्याशित अनुभव था।  इस बार के 60वें सम्मेलन में अमेरिका के नए उपराष्ट्रपति जेडी वैन्स ने एक ऐसा तीखा भाषण दिया जिसे सुनकर यूरोपीय संघ वाले देशों के नेताओं और प्रतिनिधियों के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं। 
 
1963 से हर वर्ष के फरवरी महीने में म्युनिख में एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सम्मेलन होता है जिसमें देश-विदेश के प्रमुख राजनेता, सरकारी प्रतिनिधि, सैन्य अधिकारी और संस्थाएं भाग लेती हैं। 3 दिनों तक चले इस बार के 60वें सम्मेलन में अमेरिका के नए उपराष्ट्रपति जेडी वैन्स ने एक ऐसा तीखा भाषण दिया जिसे सुनकर यूरोपीय संघ वाले देशों के नेताओं और प्रतिनिधियों के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं। यूरोपियों ने सपने में भी नहीं सोचा रहा होगा कि उनके बहुप्रशंसित 'नाटो' सैन्य संगठन का सर्वेसर्वा अमेरिका उन्हें ऐसी खरी-खोटी सुनाएगा कि सबकी बोलती बंद हो जाएगी।
 
ख़तरा रूस या चीन से नहीं, यूरोपीय सरकारों से है : अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वैन्स ने कहा कि इस समय सबसे अधिक ख़तरा रूस या चीन की तरफ से नहीं, यूरोपीय सरकारों की तरफ से है। इसकी पुष्टि के तौर पर उन्होंने रोमानिया में राष्ट्रपति चुनाव के 8 दिसंबर, 2024 को होने वाले दूसरे दौर को रद्द कर दिए जाने, जर्मनी में कतिपय ऑनलाइन टिप्पणियों की जांच की जाने और ब्रिटेन में एक गर्भपात विरोधी कार्यकर्ता के इलाज का हवाला देते हुए कहा, अपनी ही जनता की आवाज़ से डरने वालों के लिए कोई सुरक्षा नहीं हो सकती।
 
वैन्स का कहना था कि मुझे तो इस ख़तरे की चिंता सता रही है कि यूरोप कुछ ऐसे आधारभूत मूल्यों से पीछे हट सकता है, जो अब तक अमेरिका के साथ उसके साझे मूल्य हुआ करते थे। हमें लोकतांत्रिक मूल्यों की (केवल) बातें करने से कुछ अधिक करने की ज़रूरत है, हमें उन मूल्यों को जीना होगा।' उन्होंने लगभग धमकी दे डाली कि 'यूरोप वाले यदि अमेरिका के साथ के साझे मूल्यों की तरफ नहीं लौटते तो उनके लिए अमेरिकी सुरक्षा छिन जाएगी!
 
'शहर में एक नया शेरिफ है' : वैन्स ने कहा कि अमेरिका से कोई अपेक्षा करने से पहले यूरोपीय सोच लिया करें कि वहां शहर में एक नया शेरिफ है। उनका इशारा 'अमेरिका पहले' का नारा देने वाले राष्ट्रपति ट्रंप की तरफ था। राष्ट्रपति ट्रंप ने संभवत: यही संदेश देने के लिए जेडी वैन्स को म्युनिख भेजा। सम्मेलन का यह मुख्य विषय कि आज के समय की अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा नीति भला कैसी हो, वैन्स के भाषण में नदारद रही। इसके बदले उन्होंने कहा, यूरोप को अपनी सुरक्षा के लिए आगामी वर्षों में अधिक काम करना होगा। उनके कहने का तात्पर्य यह था कि अमेरिका या नाटो की तरफ देखने के बदले यूरोपीय देश अपनी सुरक्षा के लिए स्वयं कमर कसें।
 
रूस ने जब से यूक्रेन पर आक्रमण किया है, यूरोपीय संघ में हाहाकार मचा हुआ है। बार-बार यही कहा जाता है कि यूक्रेन केवल अपने लिए नहीं, हमारे लिए भी लड़ रहा है। रूस को यदि वहां से भगाया या वहीं रोका नहीं गया तो उसके सैनिक एक दिन हमारे सामने खड़े होंगे। उसके विमान हमारे ऊपर बमबारी कर रहे होंगे। इसे टालना है तो यूक्रेन की हर तरह से खुले हाथ सहायता करनी होगी। सबसे अच्छा तो यही होगा कि उसे नाटो का सदस्य बना लिया जाए। तब अमेरिका सहित नाटो के सभी देशों के लिए यूक्रेन की खुलकर सहायता करना और उसे बचाने के लिए रूस से लड़ना अनिवार्य हो जाएगा। दूसरी ओर म्युनिख में आए नए अमेरिकी रक्षामंत्री हेगसेथ ने यूक्रेन को नाटो में लेने से साफ़ मना कर दिया। राष्ट्रपति ट्रंप ने उनसे यही कहा रहा होगा।
 
लोक-लुभावन पार्टियों का बचाव : शायद इसी कारण उपराष्ट्रपति जेडी वैन्स ने अपने भाषण में रूस-यूक्रेन युद्ध के बारे में लगभग मौन साध लिया। रूस-यूक्रेन युद्ध के पचड़े में पड़ने के बदले यूरोप की कट्टरपंथी और चरमपंथी पार्टियों के साथ यूरोपीय सरकारों के बर्ताव की आलोचना करते हुए कई मिनटों तक प्रलाप किया। यूरोप की तथाकथित लोक-लुभावन दक्षिण और वामपंथी पार्टियों को म्युनिख सम्मेलन में प्रवेश नहीं देने को वैंस ने एक 'स्कैंडल' (अपयश) बताया। उनका कहना था कि इन पार्टियों को रोकने के लिए कोई 'फ़ायर वॉल' (अग्निरोधी दीवार) नहीं हो सकती यानी लोकतंत्र में लोक-लुभावन बातें करने वाली और सरकारों को अप्रिय लगने वाली पार्टियों को भी अन्य पार्टियों की तरह ही अपनी बात कहने और अपना पक्ष रखने का अधिकार एवं अवसर मिलना चाहिए।
कई बार ऐसा लगा, मानो अमेरिकी उपराष्ट्रपति म्युनिख के सुरक्षा सम्मेलन में भाग लेने नहीं, यूरोपीय सरकारों और नेताओं की क्लास लगाने आए थे। अत: यह कैसे हो सकता था कि यूरोप में शरण पाने वाले विदेशी शरणर्थियों को भी वे यूरोपीय सुरक्षा का एक बड़ा विषय न बनाते। उन्होंने कहा कि यूरोप में सुरक्षा की सबसे केंद्रीय समस्या है बाहरी प्रवासियों की भारी भीड़। दसियों लाख लोगों की अनियंत्रित भीड़ समस्या तो बनेगी ही। बार-बार आतंकवादी हमले इसका प्रमाण हैं। अपनी नीति बदलने से पहले आख़िर कब तक हम यह सब झेलते रहेंगे?
 
यूरोप को है मस्क से चिढ़ : अमेरिका के सबसे धनवान अरब-खरबपति एलन मस्क को राष्ट्रपति ट्रंप की सरकार में जो विशिष्ट स्थान मिला हुआ है, वह यूरोपीय सरकारों और नेताओं को कतई रास नहीं आ रहा है। उपराष्ट्रपति वैन्स ने इसे भी आड़े हाथों लिया। कहा कि यूरोप (स्वीडन की जलवायु आंदोलनकारी) ग्रेटा तुनबेर्ग को यदि 10 वर्षों तक झेल सकता है तो आप लोग एलोन मस्क को भी कुछ महीने झेल सकते हैं।
 
उपराष्ट्रपति वैन्स ने सुरक्षा सम्मेलन शुरू होने से कुछ पहले ही विशेषकर जर्मनी को नापसंद अपनी पसंद का एक पटाखा फोड़ दिया था। जर्मनी में 23 फरवरी संसदीय चुनावों का दिन है। एक मीडिया इंटरव्यू में वैन्स ने जर्मनी के राजनेताओं से आग्रह किया कि उन्हें घोर दक्षिणपंथी AfD (जर्मनी के लिए विकल्प) जैसी पार्टियों के साथ भी सहयोग करना चाहिए। उनका इशारा इस तथ्य की तरफ था कि जनमत सर्वेक्षणों में यह पार्टी 20 प्रतिशत से अधिक लोकप्रियता के साथ तीसरे नंबर पर है। उसके सहयोग के बिना नई सरकार का गठन टेढ़ी खीर बन सकता है।
 
यूक्रेन की मदद अधर में : यूरोपीय नेताओं पर वैन्स ने आरोप लगाया कि वे आज के समय में कम्युनिस्टों वाले भूतपूर्व सोवियत संघ के दिनों की तरह बर्ताव करते हैं और शब्दों के अपने अलग ही अर्थ लगाते हैं। अपने भाषण में और अन्य मौकों पर भी वैन्स यह बताने से बचते रहे कि अमेरिका आगे भी यूक्रेन की मदद करेगा या नहीं? पिछली जो बाइडन सरकार यूक्रेन की खुलकर मदद किया करती थी।
 
मदद वाली ठीक यही बात यूरोपीय नेताओं की नींद हराम किए हुए है। म्युनिख सम्मेलन से कुछ ही दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से टेलीफ़ोन पर बात की थी। विषय था, रूस-यूक्रेन युद्ध का अंत कैसे होगा? दोनों पक्षों के बीच सहमति बनी कि यथासंभव शीघ्र ही दोनों देशों के राष्ट्रपति सऊदी अरब में एक शिखर वार्ता के लिए मिलेंगे। यूरोपीय नेता भीतर ही भीतर कुढ़ रहे हैं कि उनसे न तो कुछ पूछा गया और न ही इस वार्ता में उन्हें शामिल किया जाएगा। रूस और अमेरिका, यूरोप और यूक्रेन से पूछे बिना ही आपस में बंदरबांट कर लेंगे और अपना निर्णय यूक्रेन सहित यूरोप पर भी थोप देंगे।
 
यूक्रेन में युद्ध के अंत की शर्त : अमेरिका ने पहले ही स्पष्ट संकेत दे दिया है कि यूक्रेन में युद्ध का अंत तभी हो पाएगा, जब रूसी क़ब्ज़े वाले उसके पूर्वी हिस्से दोनबास को रूस के पास ही रहने दिया जाएगा। रूसी कब्ज़े वाले पूर्वी हिस्से में रूसी भाषियों का ही सदा से बहुमत रहा है। इस हिस्से के बारे में 5 सितंबर, 2014 को बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में जर्मनी और फ्रांस की मध्यस्थता से रूस और यूक्रेन के बीच एक समझौता हुआ था। उसमें तय हुआ था कि यूक्रेन, रूसी भाषियों के बहुमत वाले दोनबास इलाके में अपने संविधान में एक संशोधन द्वारा दोन्येत्स्क और लुहान्स्क नाम के दो प्रदेशों की स्थापना करेगा। 
 
लेकिन यूक्रेन की तत्कालीन सरकारें संविधान में संशोधन को टालती रहीं। इस टालमोटल को देखकर रूस ने जनवरी, 2015 से वहां अपने सैनिक भेजते हुए हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। इसके बाद की घटनाओं से मामला और अधिक उलझता गया। यूक्रेन में सरकार का तख्तापलट हुआ। जर्मनी, अमेरिका आदि देशों ने वहां अपने हित साधने शुरू कर दिए। वहां के नेताओं को यूरोपीय संघ और नाटो की सदस्यता देने के सपने दिखाए जाने लगे। तब 24, फ़रवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण करते हुए इन सुनहरे सपनों को दु:स्वप्न दिया।
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

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