आँखों की किरकिरी है जो

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बदलते वक्‍त के साथ हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है, तो ब्‍लॉग की दुनिया इससे अछूती कैसे रह सकती है। हालाँकि अनुपात तो यहाँ भी वैसा ही है, जैसा देश की संसद में है, लेकिन उपस्थिति दर्ज हो रही है, ये भी कम नहीं है।

ब्‍लॉग-चर्चा में आज हम बात करने वाले हैं, प्रसिद्ध ब्‍लॉगर नीलिमा के ब्‍लॉग ‘आँख की किरकिर’ और लिंकित मन के बारे में। लिंकित मन जहाँ ब्‍लॉग की दुनिया से जुड़ा शोधपरक ब्‍लॉग है तो वहीं वाद-संवाद में स्‍त्री मन के अनछुए कोने हैं, स्‍त्री सवालों पर संवाद भी है और विमर्श भी।

दिल्‍ली निवासी नीलिमा पेशे से अध्‍यापिका हैं और लिखने के शौक और जरूरत को वे इस तरीके से पूरा करती हैं। ब्‍लॉगिंग की शुरुआत कैसे हुई, के बारे में पूछे जाने पर नीलिमा कहती हैं, ‘ब्लॉगिंग की शुरुआत के लिए मुझे भरपूर उकसावा मसिजीवी से हमेशा ही मिलतरहा था। (जाने-माने ब्‍लॉगर मसिजीवी नीलिमा के पति हैं) वे पिछले 3 सालों से नियमित रूप से हिंदी ब्‍लॉगिंग से जुड़े हुए थे। उनके माध्यम से इस जगत के कई कोणों की जानकारी मुझे मिलती रहती थी। सपिछले साअक्टूबर मेमैंनअपना ब्लॉग शुरू कर ही दिया
  बदलते वक्‍त के साथ हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है, तो ब्‍लॉग की दुनिया इससे अछूती कैसे रह सकती है। ब्‍लॉग-चर्चा में आज हम बात करने वाले हैं, प्रसिद्ध ब्‍लॉगर नीलिमा के ब्‍लॉग आँख की किरकिरी’ और लिंकित मन के बारे में।      


सो इस तरह से शुरुआत हुई ब्‍लॉगिंग की। नीलिमा ने सराय संस्‍था के माध्‍यम से हिंदी ब्‍लॉगिंग पर शोध भी किया है और उनका विस्‍तृत शोधपरक आलेख सुधीर पचौरी के संपादन में निकलने वाली पत्रिका वाक में प्रकाशित हुआ है

वाद-संवाद में नीलिमा ने स्‍त्री विषयक मसलों और सवालों पर काफी बेबाक कलम चलाई है। स्‍त्री मन और जीवन की जटिल पर्तें वैसे भी पन्‍नों पर कम ही दर्ज हो पाती हैं, और जो थोड़ा-बहुत होता भी है, उसकी मात्रा अधिक नहीं है। उम्‍मीद की जाती है कि अगर कोई स्‍त्री लिख रही है तो उसके लेखन में आधी आबादी की उपस्थिति तो दर्ज होनी ही चाहिए। नीलिमा इस आवश्‍यकता को काफी हद तक पूरा करती हैं। एक पोस्‍ट में नीलिमा लिखती हैं, ‘स्त्री का परंपरागत संसार बडा विचित्र भी है और क्रूर भी है। यहाँ उसकी सुविधा, अहसासों और सोच के लिए बहुत कम स्पेस है। गहने, कपड़े और यहाँ तक कि वह पाँव में क्या पहनेगी, में वह अपनी सुविधा को कोई अहमियत देने की बात कभी सोच भी नहीं पाई।... परंपरागत माहौल में पली बढ़ी यह स्त्री अपने दर्शन में स्पष्ट होती है कि उसका जीवन सिर्फ पर सेवा और सबकी आँखों को भली लगने के लिए हुआ है।....’

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एक और पोस्‍ट दे आर बैड-बैड गर्ल्‍स में वे लिखती हैं, 'स्त्री विमर्श वाले बहसते विमर्शते रह गए और उधर लड़कियों ने घोषणा कर डाली कि अब उनके अच्छे बने रहने का जमाना गया! वे गा उठीं, 'वी आर बैड बैड गर्ल्स....' जमाने को सुनना पड़ा कि वे कह रही हैं कि वे गंदी लड़कियाँ हैं...'.

नीलिमा बहुत सारे विषयों पर बहुत सहजता से बात करती हैं और सिर्फ स्‍त्री विमर्श ही नहीं, शिक्षा, समाज और आसपास की बहुत सी घटनाओं पर उनकी वैचरिक अभिव्‍यक्ति समय-समय पर ब्‍लॉगिंग की दुनिया को समृद्ध करती रहती है। एक बानगी, ‘जिंदगी कितनी एब्सर्ड हो चली है इसका अंदाजा कभी-कभी ही लग पाता है। नौकरी की भागमभाग, सड़कों का ट्रैफिक, संबधों की उलझन, भविष्य की चिंता, पानी-बिजली फोन के बिल, बच्चों की पढ़ाई और भी सैकड़ों कामों-तनावों-हड़बडि़यों के बीच जीते हम।

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अपने विषयों का चुनाव करने के लिए नीलिमा को बहुत विचार नहीं करना होता। वे कहती हैं, ‘कोई भी मुद्दा, जो मुझखींचता है, मैं उस पर लिखती हूँ। पाठक हमारे निजी अनुभवों की सहज अभिव्यक्ति पढ़नपसंद करता है, सो निजता का समावेश मैं जरूर अपने लेखन में करती हूँ।

फुरसतिया, अगड़म-बगड़म, मसिजीवी, उड़न तश्तरी, घुघूतबासूती और अनामदास का पोथा नीलिमा के पसंदीदा ब्‍लॉग हैं

हिंदी ब्‍लॉगिंग के बारे में वेबदुनिया से नीलिमा की लंबी बातचीत हुई। उनका मानना है कि अब हिंदी ब्लॉगिंग के लिए बहुआयामी होकर बढ़ने का समय है। व्यावसायिकता का सवाल, हिंदी ब्लॉगिंग के खास मिजाज पर विमर्श का बढ़ना और मुख्यधारा मीडिया में हिंदी ब्लॉगिंग पर बनती हुई राय इस समय हिंदी ब्लॉगिंग को बहुत चर्चिइवेंट के रूप में रेखांकित कर रहे हैं

नीलिमा कहती हैं, ‘ब्‍लॉगिंग एक ऐसा माध्‍यम है, जहाँ ज्‍यादा आजादी, आत्मीयता और साहसिकता से अपनी बात कही जा सकती है। यहाँ आम आदमी को खुद रचनात्‍मक करने और लिखने का अवसर मिलता है। आपकी रचना पर कोई फिल्टर नहीं होता और आप यहाँ एक निष्क्रिय पाठमात्र नहीं होते हैं। यहाँ पाठक की राय कीमती होती है, यानी यहाँ हर रचना एक मुकम्मसंवाद है, जो अन्य किसमाध्यम मेसंभव नहीं है।

हिंदी ब्लॉगिंके भविष्य को लेकर नीलिमा कोई कयास नहीं लगा रहीं। वे कहती हैं कि इस बारे में कुछ कहना अभी बहुत जल्दबाजी होगी, पर हिंदी ब्लॉगरों की बढ़ती संख्या और यहाँ बढ़ते हुए विवाद और विमर्श एक आकालेते ब्लॉगर समुदाय की ओर संकेत कर रहे हैं। कुल मिलाकर हिंदी ब्लॉगिंग व्यक्तिगत अनुभवों की बेबाक अभिव्यक्ति का ही माध्यम है

वे कहती हैं कि हिंदी ब्लॉगिंग से हिंदी भाषा का अवश्‍य ही विकास होगा। ब्‍लॉगिंग में हिंदी सबसे मौलिक मुहावरे गढ़ रही है। आभिजात्यता और जड़ता यहाँ की भाषा से नदारद है। रवानगी और तीखापन, भदेसपन इसकी खासियत है। अकादमिक सीमाओं से निकलकर हिंदी भाषा ज्यादा आजाद और ज्यादा प्रयोगशील हो चली है। इसका लचीलापन ही यहाँ इसकी ताकत है

नीलिमा ब्‍लॉग पर लगातार लिख रही हैं और शोध कर रही हैं। इन रूपों में नीलिमा और इस बहाने आधी आबादी की एक सशक्‍त उपस्थिति भी दर्ज हो रही है। सहजता, प्रवाह और एकात्‍मकता नीलिमा के लेखन की खासियत है। आधी आबादी का सशक्‍त हस्‍ताक्षर यह ब्‍लॉग पूरी आबादी द्वारा पढ़ा और सराहा जा रहा है। आधी आबादी के लिए उम्‍मीद बँधी और कायम है।

ब्लॉग- आँख की किरकिरी
URL : http://vadsamvad.blogspot.com/

ब्लॉग- लिंकित मन
URL : http://linkitmann.blogspot.com/