को खां, लोकसभा चुनाव अभी होने हें पर हार-जीत की बातें अभी से होने लगीं हें। राहुल बाबा ने जब से ये बोला हे के चुनाव हारे तो जिम्मेदारी मेरी, उसके बाद पूरी कांगरेस पार्टी में सुकून का माहोल हे। अब अपन को करना क्या हे। हार के बाद जिस ठीकरे को ढूंढना पड़ता वो पेले ई फूटे अंडे से सिर बाहर निकाल रिया हे। उधर बीजेपी में बब्बा यानी लालकृष्ण आडवाणी ने लोकसभा चुनाव लड़ने की ख्वाहिश जाहिर कर लंगड़ी मार दी हे। इससे मोदी मेराथन में दोड़ने वालों के पेरों को भी करंट मार गया हे। डर हे के ये लंगड़ी कहीं अपने ई पाले में अंगार न सुलगा दे।
को खां, कुलमिलाके मुल्क का सियासी माहोल दिलचस्प होता जा रिया हे। कोई कुछ ज्यादा ई मुगालते में हे तो कोई मुगालतों को छांटने में लगा हुआ हे। चुनावी सर्वे कइयों के दिलों को ओर बिठाने वाले हें। सर्वे के रिए हें के देश में मोदी की लहर हे ओर लहरों की मर्जी चुनाव तक कित्ती बल खाएगी, ये कोई नई जानता। फिर भी सियासी लामबंदियां नए सिरे से हो रई हें। दंगो का मुद्दा उभार के नफरत के नीमहोश मुद्दों में फिरजान डालने की कोशिश चल रई हे। अंदाज ये के हमने जो दंगा कराया वो सही ओर तुमने जो कराया वो गलत। यानी तकलीफ दंगों से इस ज्यादा इस बात की हे के वो जा कोन के खाते में रिया हे।
मियां, इधर नया मुद्दा 'में ओर हम' का भी जोर मार रिया हे। पर ये कोन समझाए के चुनाव हार गए तो 'हम का में' हो जाता हे तो जीते तो 'में भी हम' में बदल जाता हे। इसके लिए कोई इश्तिहार छपवाने की जरुरत नई पड़ती। ना कोई इंटरव्यू देना पड़ता हे। पार्टी कारकर्ता इत्ते तो पेदाइशी समझदार रेते ई हें। ठीक उसी माफिक के जेसे वोटों की गिनती में पिछड़ते ई हारने वाली पार्टी के लोग एक-एक करके खिसकने लगते हें ओर पूरा पंडाल खुद-ब-खुद 'हम से में' में तब्दील हो जाता हे। इस मामले में बीजेपी ने कांगरेस पर मुद्दा चुराने का आरोप लगाया तो गलत क्या करा। पिछले दो लोकसभा चुनाव में उधर भी ये ई होता रिया हे।
लेकिन बुनियादी सवाल लड़ाई छिड़ने से पेले चली जा रई चालों ओर मन की तैयारियों का हे। हार की जिम्मेदारी ओढ़ने वाला दंगल शुरु होने के पेले ई सपड़ जाए तो कहीं कोई दिक्कत नई रेती। क्योंके इसी को ढूंढना सबसेदुश्वार रेता हे। कोई जिम्मेदारी लेने तैयार नई होता ओर आखिर में सामूहिक जिम्मेदारी पे आके पूरा मामला ई फुस्स हो जाता हे। मगर इस बार एसा नई होगा। निशाना खुद तीर के आगे छाती खोल के खड़ा हे। उधर भगवा अखाड़े में बब्बा ने ताल ठोंक के जता दिया हे के जीत अगर हुई तो खलीफा वो ई केलाएंगे। पीएम के लिए मोदी को धोबीपाट न दे सके, पर लंगड़ी तो मार ई सकते हें। इस लंगड़ी में ताकत भले कम हो, सफाई दोगुनी हे। बहरहाल अगला चुनावी दंगल पे बाबा के बयान ओर बब्बा की लंगड़ी का असर तो होना हे, जीतेगा कोन ये अलग मुद्दा हे। बतोलेबाज