ब्लॉग-चर्चा में आज हम कॉफी की चुस्कियों के साथ कुछ समय कॉफी हाउस में बिताने वाले हैं। कॉफी हाउस का भूगोल और वहाँ भीतर के रचना-संसार के बारे में कुछ बातें।
पेशे से पत्रकार और दिल्ली निवासी भूपेन सिंह के चर्चित ब्लॉग का नाम है - कॉफी हाउस। जब हमने उनसे पूछा कि नाम कॉफी हाउस ही क्यों, तो उनका कहना था कि आधुनिक शहरी संस्कृति में कॉफी हाउस राजनीति और कला-साहित्य में प्रतिरोध और बदलाव के केंद्र रहे हैं। कुछ ऐसे ही मकसद के साथ शुरू हुआ यह ब्लॉग भी ऐसी अड्डेबाजी का एक केंद्र है, जहाँ कला-साहित्य-संस्कृति के साथ-साथ प्रतिरोध का स्वर भी बुलंद है।
यह धारा से अलग हटकर जीने और सोचने वालों के विचारों का प्रतिनिधित्व करता है। यहाँ फिल्मों, साहित्य, कविता और आसपास की दुनिया में बहुत तेजी के साथ आ रहे विभिन्न बदलावों की बात होती है।
गद्य के साथ-साथ कविता पर भी भूपेन की अच्छी पकड़ है। ‘पत्नियों की कविता’ शीर्षक एक कविता में वह लिखते हैं -
ब्लॉग-चर्चा में आज हम कॉफी की चुस्कियों के साथ कुछ समय कॉफी हाउस में बिताने वाले हैं। कॉफी हाउस का भूगोल और वहाँ भीतर के रचना-संसार के बारे में कुछ बातें। पेशे से पत्रकार और दिल्ली निवासी भूपेन सिंह के चर्चित ब्लॉग का नाम है - कॉफी हाउस।
इतना प्यारा और ख़ूबसूरत था घर कि बिना चाहत के ही मिल जाते थे पतियों के चुंबन और मोह लेते थे भगवान की दया से मिले हुवाँ-हुवाँ करते शिशु
यदि हम उड़ना चाहतीं तो शायद आसमान हमें निगल जाता
हमारे देवता की क़ामयाबी में थी हमारी भी क़ामयाबी ऐसे मौक़ों पर होने वाली पार्टियों में हम भी होती थीं शरीक बस, मामूली सा अभिनय करना होता अच्छी बीवी नज़र आने का..........
हमारा एकांत चला आता आज़ादी बनकर बर्तनों के ढेर साफ़ करती हम गुनगुनाती कोई उदास सा गीत झाड़ती-पोंछती मन की परतों में दबी पीड़ा को........
ऐसी ही एक और कविता है -
वैसी ही अँधेरी रात है वो ही मैं हूँ मन के एक कोने में बार-बार करवट बदल रहा है तुम्हारा ख़्याल मैं पहली बार सोच रहा हूँ रोशनी से झिलमिताली हुई आकाश-गंगा के बारे में
तुमने ठहरे हुए पानी पर यूँ ही मार दिया है कंकड़ मैं जल-तरंगों सा फैलता जा रहा हूँ हर दिशा में कि देखूँ कहाँ-कहाँ है ज़िंदगी
तुमसे प्यार करके मैंने सीखा है ज़िंदगी से प्यार करना.
ND
ऐसे ही छोटी-छोटी तमाम मन को छू लेने वाली कविताएँ और प्रतिरोध और सरोकार वाले लेख इस ब्लॉग पर देखे जा सकते हैं। हमारे समय के सवाल और उनके जवाब पाने की एक कोशिश भी नजर आती है।
हिंदी ब्लॉगिंग की वर्तमान स्थिति और उसके भविष्य के बारे में वेबदुनिया ने उनसे लंबी बातचीत की। भूपेन सिंह कहते हैं कि ब्लॉगिंग ने लोगों को बहुत बड़े पैमाने पर एक लोकतांत्रिक स्पेस प्रदान किया है, जहाँ किसी संपादक की कैंची उनके लिखे हुए की चीर-फाड़ नहीं करती। हिंदी भाषा और कम्प्यूटर का जानकार कोई भी व्यक्ति अब अपनी बात कह सकता है। जिन लोगों के पास इस तरह की कोई जमीन नहीं थी, जहाँ वे खुलकर अपनी बात कह पाते, लेकिन इंटरनेट और ब्लॉगिंग ने इसे भी संभव बनाया है। भूपेन ब्लॉगिंग को एक बहुत बड़े क्रांतिकरी आविष्कार के रूप में देखते हैं।
वे कहते हैं कि ब्लॉगिंग से हिंदी भाषा का भी प्रसार होगा। ज्यादा-से-ज्यादा लोग इसके साथ जुड़ेंगे। आसपास की दुनिया में घट रही हर घटना ब्लॉगिंग में दर्ज हो रही है, उस पर बहसें हो रही हैं, लोग लिख रहे हैं और दुनिया के किसी भी कोने में बैठा हुआ कोई भी व्यक्ति ब्लॉग के माध्यम से इन हलचलों और बहसों से दो-चार हो सकता है। इसके पहले यह संभव नहीं था।
भूपेन मानते हैं कि भारतीय समाज की विभिन्न जटिलताओं और पर्तों का प्रतिबिम्ब ब्लॉग मे भी देखने को मिलता है। सांप्रदायिकता और जातिवाद के विरोधियों के साथ-साथ उनके पक्षधर भी बहुत बड़े पैमाने पर ब्लॉग में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। उनका विरोध भी हो रहा है, लेकिन यह उतना सशक्त नहीं है, जितना कि होना चाहिए। लेकिन इन सबके बावजूद भारतीय समाज की सामाजिक-आर्थिक यथार्थ के मद्देनजर इतने प्रसार के बावजूद यह माध्यम अभी भी आम आदमी की पहुँच से बाहर है।
विभिन्न पर्तों वाले इस जटिल सच के बावजूद ब्लॉग ने हिंदी भाषा, लेखन, प्रतिरोध के विचारों और बहसों को नई जमीन तो प्रदान की ही है। और इन परिवर्तनों को लेकर भूपेन काफी आशान्वित नजर आते हैं।
खुद लिखने के साथ-साथ अन्य व्यक्तियों के महत्वपूर्ण लेखों और कविताओं को भी कॉफी हाउस में जगह मिलती है। कॉफी हाउस की अड्डेबाजी भी कोई भी शामिल हो सकता है। इस ब्लॉग के मास्टहेड पर ही लिखा हुआ है कि ‘कॉफी हाउस, जहाँ हर कोई आ-जा सके।’ तो आइए, आप भी इस अड्डेबाजी में शामिल होइए, और अपनी बात कहिए।