Rani Laxmibai : आज रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस हैं। उनका निधन 18 जून 1857 को हुआ था। आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे में 5 बातें...
1.भारत के इतिहास में महारानी लक्ष्मीबाई एक जाना-माना नाम है। लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में एक मराठी ब्राह्मण परिवार में 19 नवंबर, 1828 को वाराणसी/ काशी के असीघाट में हुआ था। उनके पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे और माता का नाम भागीरथी बाई था।
2. लक्ष्मीबाई को बचपन में उन्हें मणिकर्णिका और प्यार से मनु नाम से संबोधित किया जाता था। राजा गंगाधर राव से उनका विवाह हुआ और विवाह पश्चात् रानी को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, लेकिन 4 माह पश्चात उस बालक का निधन हो गया। और कुछ समय बाद ही महाराजा का भी निधन हो गया।
3. लार्ड डलहौजी ने उनके दत्तकपुत्र दामोदर राव की गोद अस्वीकृत कर दी और झांसी को अंग्रेजी राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी। एजेंट की सूचना पाते ही रानी के उनके मुख से 'मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी' का वाक्य प्रस्फुटित हुआ और यहीं से भारत की प्रथम स्वाधीनता क्रांति का बीज प्रस्फुटित हुआ। लेकिन झांसी पर अंग्रेजों का अधिकार हुआ। किंतु वे घबराई नहीं, उन्होंने विवेक नहीं खोया।
4. जब उत्तरी भारत के नवाब, राजे-महाराजे सभी अंग्रेजों की राज्य लिप्सा की नीति से असंतुष्ट हो गए और विद्रोह की आग जल उठी तब रानी लक्ष्मीबाई ने इसको स्वर्ण अवसर मानकर क्रांति की ज्वाला को सुलगाया और अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने की योजना बनाकर 23 मार्च 1858 को झांसी के ऐतिहासिक युद्ध में अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ा दिए। और वीरतापूर्वक झांसी की सुरक्षा की और छोटी-सी सेना के साथ अंग्रेजों का बड़ी बहादुरी से मुकाबला किया। इस तरह युद्ध के दौरान अकेले ही अपनी पीठ के पीछे अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को कसकर बांधकर झांसी की सुरक्षा की और घोड़े पर सवार होकर अंग्रेजों से युद्ध करती रहीं और अपनी कुशलता का परिचय देती रहीं। फिर इस तरह तरह 18 जून 1858 को ग्वालियर के अंतिम युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए घायल हो गईं और उन्होंने अंततः वीरगति प्राप्त कीं।
5. वे रानी मराठा रियासत की रानी और झांसी राज्य की रानी तथा द्वितीय महान वीरांगना थीं। देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसीलिए उनका नाम भारत की सशक्त महिलाओं में लिया जाता है। वे एक ऐसी शूरवीर महिला जिन्होंने अपनी सशक्तता से अंग्रेजों से भी लोहा मनवा लिया था।
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