क्या संपूर्ण भारत में मनाई जाती है दीपावली?

अनिरुद्ध जोशी
भारत एक बहुत बड़ा देश है जिसके बांग्लादेश और पाकिस्तान नाम के हिस्से सहित और भी कई हिस्से उससे अलग हो गए हैं। अब जो हिस्सा बचा है उसे हिन्दुस्तान कहते हैं। दीपावली का त्योहार हिन्दुस्तान के सभी राज्यों में मनाया जाता है। जिन राज्यों में दीपावली बहुत ही धूमधाम से मानाई जाती है वह तो यह समझते होंगे कि संपूर्ण हिन्दुस्तान में कार्तिक अमावस्या के दिन दिवाली बनाते हैं परंतु ऐसा नहीं है। सभी क्षेत्रों में दीपावली का त्योहार अलग स्वरूप में मनाया जाता है और वहां पर दीपावली मनाए जाने के कारण और तौर तरीके भी अलग-अलग हैं। परंतु सभी में कुछ बातें काम है।
 
 
1. उत्तर भारत : उत्तर भारत के अंतर्गत जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और उत्तरप्रदेश आते हैं। उत्तर भारत में दीपावली का त्योहार भगवान राम की विजयी गाथा और श्रीकृष्ण द्वारा शुरू की गई नई परंपरा और उत्सव से जुड़ा है। पहला दिन नरक चतुर्दशी श्रीकृष्ण से जुड़ा है। दूसरा दिन देवता कुबेर और भगवान धन्वंतरि से जुड़ा है। तीसरा दिन माता लक्ष्मी और अयोध्या में राम की वापसी से जुड़ा है। चौथा दिन गोवर्धन पूजा अर्थात श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है तो पांचवां दिन भाई दूज का है। उत्तर भारत के लिए यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के महत्व से जुड़ा है। वैसे उत्तर भारत में दिवाली उत्सव की शुरुआत दशहरे के साथ ही शुरू हो जाती है।
 
2. दक्षिण भारत : भारत के दक्षिणी भाग को दक्षिण भारत कहते हैं। दक्षिण भारत में आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी, लक्षद्वीप और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के क्षेत्र आते हैं। यहां दीपावली का पर्व तो मनाया ही जाता है लेकिन सबसे ज्यादा महत्व दिवाली के 1 दिन पूर्व मनाए जाने वाले नरक चतुर्दशी का विशेष महत्व है। जैसे उत्तर भारत में दीपावली 5 दिन का उत्सव होता है, ऐसा दक्षिण भारत में नहीं होता। यहां मात्र 2 दिन का उत्सव होता है। इस दिन दीपक जलाने, रंगोली बनाने और नरक चतुर्दशी पर पारंपरिक स्नान करने का ही ज्यादा महत्व होता है। दक्षिण में दिवाली से जुड़ी सबसे अनोखी परंपरा है जिसे 'थलाई दिवाली' कहा जाता है। 
 
इसी तरह दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है। इसे पड़वा भी कहते हैं। उत्तर भारत में इसका प्रचलन है लेकिन दक्षिण भारत में राजा बली और मार्गपाली पूजा का प्रचलन है। केरल और इससे जुड़े क्षेत्र में दीपावली का त्योहार राजा बली की कथा से जुड़ा हुआ है, जबकि आंध्र में श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने राक्षस नरकासुर को मार डाला था इसलिए सत्यभामा की विशेष मिट्टी की मूर्तियों की प्रार्थना होती है।
 
कर्नाटक में दिवाली के 2 दिन मुख्य रूप से मनाए जाते हैं- पहला अश्विजा कृष्ण और दूसरा बाली पदयमी जिसे नरक चतुर्दशी कहा जाता है। उसे यहां अश्विजा कृष्ण चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन लोग तेल स्नान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने नरकासुर को मारने के बाद अपने शरीर से रक्त के धब्बों को मिटाने के लिए तेल से स्नान किया था। तीसरे दिन दिवाली के दिन को बाली पदयमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन महिलाएं घरों में रंगोलियां बनाती हैं और गाय के गोबर से घरों को लीपती भी हैं। इस दिन राजा बालि से जुड़ी कहानियां मनाई जाती हैं। 
 
3. पूर्वी भारत : इसी तरह पूर्वी भारत में पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार एवं झारखंड राज्य शामिल हैं। यहां भी उत्तर भारत जैसी ही दिवाली मनाई जाती है बस फर्क है व्यंजनों और पारंपरिक वस्त्रों का। पश्चिम बंगाल में दिवाली पर देवी काली की पूजा का ज्यादा महत्व है। दिवाली की मध्यरात्रि में लोग महाकाली की पूजा-अर्चना करते हैं। ओडिशा में पहले दिन धनतेरस, दूसरे दिन महानिशा और काली पूजा, तीसरे दिन लक्ष्मी पूजा, चौथे दिन गोवर्धन और अन्नकूट पूजा और 5वें दिन भाईदूज मनाया जाता है। यहां आद्य काली पूजा का खासा महत्व है। बिहार और झारखंड में दिवाली के मौके पर होली जैसा माहौल हो जाता है। यहां बहुत धूमधाम से दीपावली का पर्व मनाया जाता है। यहां पारंपरिक गीत, नृत्य और पूजा का प्रचलन है। अधिकतर क्षेत्रों में काली पूजा का महत्व है। लोग खूब एक-दूसरे से गले मिलते हैं, मिठाइयां बांटते हैं, पटाखे छोड़ते हैं। धनतेरस के दिन यहां बाजार सज जाते हैं। 
 
इसी तरह दीपावली के दिन असम, मणिपुर, नगालैंड, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल, सिक्किम और मिजोरम उत्तर-पूर्वी राज्यों में काली पूजा का खासा महत्व है। दीपावली की मध्य रात्रि तंत्र साधना के लिए सबसे उपर्युक्त मानी जाती है इसलिए तंत्र को मानने वाले इस दिन कई तरह की साधनाएं करते हैं। हालांकि इस दिन दीप जलाना, पारंपरिक व्यंजन बनाना, मिठाइयां खाना और पटाखे छोड़ने का प्रचलन भी है।
 
4. पश्चिम भारत : उत्तर भारत की तरह पश्चिमी भारत में दिवाली को 5 दिन तक मनाया जाता है। पश्चिम भारत में गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, दादरा एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव के हिस्से आते हैं। अखंड भारत के दौरान सिन्ध और बलूचिस्तान के हिस्से भी आते थे। पश्चिम भारत व्यापारी वर्ग का गढ़ रहा है तो यहां दिवाली में देवी लक्ष्मी के स्वागत का खासा महत्व है। सभी घरों में देवी के लिए चरणों के निशान भी बनाए जाते हैं और घरों को चमकीले प्रकाशों से प्रज्वलित किया जाता है। गुजरात में दिवाली नए साल के रूप में भी मनाई जाती है। इस दिन कोई नया उद्योग, संपत्ति की खरीद, कार्यालय खोलना, दुकान खोलना और विशेष अवसर जैसे विवाह संपन्न होना शुभ माना जाता है। 
 
महाराष्ट्र में दीपावली का त्योहार 4 दिनों तक चलता है। पहले दिन वसुर बरस मनाया जाता है जिसके दौरान आरती गाते हुए गाय और बछड़े का पूजन किया जाता है। दूसरा दिन धनतेरस पर्व मनाया जाता है। इस दिन व्यापारिक लोग अपने बही-खाते का पूजन करते हैं। इसके बाद नरक चतुर्दशी पर सूर्योदय से पहले उबटन कर स्नान करने की परंपरा है। स्नान के बाद पूरा परिवार मंदिर जाता है। चौथे दिन दीपावली मनाई जाती है, जब माता लक्ष्मी के पूजन के पहले करंजी, चकली, लड्डू, सेव आदि पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।
 
सुंदर से समुद्री तट पर बसे गोवा में गोवावासियों की दीपावली देखने लायक होती है। पारंपरिक नृत्य और गान से शुरू होने वाली दिवाली पर पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद महत्वपूर्ण होता है। यहां भी दीपावली का त्योहार 5 दिनों तक चलता है। इस दिन दीये जलाने और पटाखे छोड़ने का प्रचलन है। यहां रंगोली बनाने का खासा महत्व है। यहां का दीपावली का त्योहार भी श्रीराम और श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है। हालांकि दीपावली के दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है। भारत के अन्य राज्यों से लोग गोवा में घूमने जाते हैं। खासकर दशहरा और दिवाली के आसपास यहां दीपावली मनाना बहुत ही शानदार होता है। गोआ में दशहरा भी शानदार तरीके से मनाया जाता है।
 
5. मध्यभारत : मध्यभारत में भारत के मुख्‍यत: 2 राज्य आते हैं- मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़। दोनों राज्यों में दीपावली का पर्व 5 दिनों का होता है। यहां के आदिवासी क्षेत्रों में दीपदान किए जाने का रिवाज है। इस अवसर पर आदिवासी स्त्री व पुरुष नृत्य करते हैं। यहां धनतेरस के दिन से यमराज के नाम का भी एक दीया लगाया जाता है। यह दीप घर के मुख्य द्वार पर लगाया जाता है ताकि घर में मृत्यु का प्रवेश न हो।
 
गौर करने की बात यह है कि यह त्योहार लगभग सभी राज्यों में 5 दिनों तक चलता है। इस दौरान घर की सफाई-पुताई करना, नए वस्त्र और बर्तन खरीदना, पारंपरिक व्यंजन बनाना, रंगोली बनाना, मिठाइयां बांटना, पटाखे छोड़ना और लक्ष्मी पूजा करना सभी राज्यों में प्रचलित है। बस फर्क है तो पारंपरिक व्यंजनों के स्वाद का, वस्त्रों का और पूजा का। 

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