दशहरे के दिन श्रीराम की आराधना करें

नाथ एक बार मागऊँ राम कृपा करि देहु।
जन्म-जन्म प्रभु पद कमल कबहुँ चढ़ै जनि नेह।
अर्थात हे प्रभु राम। मैं आपसे केवल एक ही वर माँगता हूँ, इसे देने की कृपा करें। प्रभु (आप) के चरण कमलों में मेरा प्रेम जन्म जन्मांतर में कभी न घटे।

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प्रभु श्रीराम स्वयं कहते हैं कि जो निंदा और प्रशंसा दोनों को समान समझते हैं और मेरे चरण कमलों में प्रेम रखते हैं, वे सज्जन मुझ राम को प्राणों के समान प्यारे हैं। वे गुणों के धाम और सुख के भंडार हैं।

निंदा अस्तुति उभर सम ममता मम पद कुंज।
ते सज्जन मम प्रानप्रिय गुन मंदिर सुख पुंज।
प्रभु के चरणों में अपना ध्यान लगाओ, प्रभु के शरणागत चले जाओ। प्रभु की दया और रक्षा के भरोसे सच्चा संसार में सदा निर्भय और निर्लिप्त बना रहता है। प्रभु अपनी शरण में आए जीवों की सम्भाल अवश्य करते हैं। स्वयं राम का यह प्रण है कि वे अपनी शरण में आए हुए जीवों का भय दूर कर देते हैं। वे स्पष्ट कहते हैं :

मम पन सरनागत भयहारी।
अर्थात शरणागत के भय को दूर करना मेरा प्रण है। वे फिर कहते हैं -

जाँ सभीत आवा सरनाई।। रखिहउँ ताहि प्रान की नाई।
अर्थात यदि वह भयभीत होकर मेरी शरण में आया है तो मैं उसे प्राणों की तरह सम्भाल कर रखूँगा। दशहरे के दिन यह संकल्प करें कि छल-कपट छोड़कर मन, कर्म और वचन से श्रीराम की आराधना करें क्योंकि करोड़ों उपाय करके भी आप स्वप्न में भी वह सुख नहीं पा सकते जो स्वयं राम के नाम से पा सकते हैं (स्वयं राम कहते हैं)।

वचन कर्म मन मोरि गति भजनु करहि नि:काम।
तिन्ह के हृदय कमल महुँ करउ, सदा विश्राम।।
अर्थात जिन्हें मन, वचन और कर्म से केवल मेरी ही गति (आश्रय या सहारा) जो निष्काम भाव से (सांसारिक कामनाओं से परित्याग) मेरा (प्रभु राम का) भजन करते हैं, उनके हृदय में मैं सदा शांतिपूर्वक निवास करता हूँ।

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प्रभु श्रीराम को अपना सब कुछ समर्पित कर उन्हें माता, पिता, गुरु, भाई एवं देवता जो मानता है, प्रभु उनके वश में रहते हैं, प्रभु स्वयं कहते हैं।

गुरु पितु मातु बंधु पति देवा।
सब मोहि कहँ जानै दृढ़ सेवा।।

काम आदि मद दंभ न जोके। तात निरंतर बस मैं ताकें।
अर्थात प्रभु कहते हैं जो मुझको ही गुरु, माता, पिता, भाई एवं देवता सब कुछ जानता है और मेरी सेवा में दृढ़ रहता है तथा जिनके अंदर काम, अभिमान और पाखंड नहीं है, हे भाई! मैं (राम) सदा उनके वश में रहता हूँ।

प्रभु श्रीराम की सेवा भाव एवं भक्ति से मनुष्य वो सब पा लेता है, जिसकी चाह में संत एवं ज्ञानी ऋषि खोए रहते हैं, निरंतर प्रभु के स्मरण में लगे रहते हैं। विशेषकर कलिकाल में प्रभु के नाम के अलावा कोई दूसरा मार्ग नहीं है। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं-

यह कलिकाल मलायतन मन करि देखु विचार।
श्री रघुनाथ नाम तजि नाहिन आन आधार।।
अर्थात अरे मन! विचार करके देख। यह कलिकाल पापों का घर है। इसमें प्रभु के नाम को छोड़कर अन्य कोई भी आधार नहीं है। इसलिए मनुष्य ने पूर्ण शांति से प्रभु श्रीराम की भक्ति करके अपने मन के रावण को मारकर राम रूपी मन को जागृत करना चाहिए।

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