30 सितंबर 2017 यानी अश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरे का पर्व मनाया जाएगा। भगवान श्रीरामचन्द्र ने देवी सीता को राक्षसराज रावण से मुक्त कराने के लिए 10 दिनों तक युद्ध किया था। दसवें दिन श्रीराम ने रावण का वध करके लंका पर विजय प्राप्त की थी। विजय की खुशी के उपलक्ष्य में दशहरा का पर्व बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।
दशहरा नौ दिन चलने वाली दुर्गा पूजा की समाप्ति का प्रतीक भी है। देवी दुर्गा ने जनमानस की रक्षा के लिए महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। नवरात्र के दौरान मां दुर्गा और देवी चामुंडेश्वरी की पूजा की जाती है, जिन्होंने लोगों की रक्षा के लिए महिषासुर और असुरों की सेना को चामुंडा की पहाड़ी में युद्ध कर पराजित किया था।
इस वर्ष दशहरे का पर्व 30 सितंबर, शनिवार को मनाया जाएगा। दशमी तिथि 29 सितंबर की रात्रि 11 बजकर 50 मिनट से आरंभ होगी और रात्रि 1 बजकर 30 मिनट तक रहेगी।
दशहरे का मंगल विजय मुहूर्त- दोपहर 2 बजकर 3 मिनट से 2 बजकर 55 मिनट तक।
पूजा का समय-1 बजकर 23 मिनट से 3 बजकर 47 मिनट तक।
विजय दशमी के दिन नीलकण्ठ का दर्शन शुभ माना जाता है। विजय काल में शमी वृक्ष का विधिवत पूजन करने का विधान है एवं इसी काल में राजचिन्ह, हाथी, घोड़े, अस्त्र-शस्त्र आदि का पूजन किया जाता है, जिसे शास्त्रों में लोहाभिसारिक कर्म कहते हैं। इस दिन लोग शस्त्र पूजा या कोई नया कार्य प्रारंभ करते हैं। जैस-अक्षर लेखन आरंभ, नया व्यापार, बीज बोना, सगाई, वाहन आदि खरीदना।
दशहरा साढ़े तीन मुहूर्तो में आता है दशहरा साढ़े तीन मुहूर्तो में आता है, इस दिन बिना मुहूर्त देखें कोई भी नया कार्य प्रारंभ किया जा सकता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो कार्य आरंभ किया जाता है, उस कार्य में श्रेष्ठ विजय हासिल होती है।