देवशयनी एकादशी के सबसे शुभ मुहूर्त, क्या है महत्व, 5 उपाय, 3 मंत्र के साथ व्रत कथा और सरल पूजा विधि

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Devshayani ekadashi 2022: 10 जुलाई 2022 को आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव सो जाएंगे इसीलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते हैं। श्रीहरि विष्णु 4 माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसके बाद कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान योग निद्रा से उठते हैं। आओ जानते हैं इस दिन के शुभ मुहूर्त, महत्व, 5 उपाय, 3 मंत्र, व्रत कथा और सरल पूजा विधि।
 
देवशयनी एकादशी 2022 शुभ मुहूर्त:-
 
एकादशी तिथि : देवशयनी एकादशी तिथि 09 जुलाई 2022 को शाम 04 बजकर 39 मिनट पर प्रारंभ होगी, जो कि 10 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 13 मिनट पर समाप्त होगी।
 
सबसे शुभ मुहूर्त : 
1. अभिजीत मुहूर्त : सुबह 11:36 से 12:31 तक।
2. विजय मुहूर्त : दोपहर : 02:20 से 03:14 तक।
3. गोधूलि मुहूर्त : शाम 06:38 से 07:02 तक।
4. सर्वार्थ सिद्धि योग : सुबह 05:15 से 09:55 तक।
 
क्या है महत्व: आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी और हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं। पाहलनहार श्रीहरि भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। इसी समय से चातुर्मास की शुरुआत भी हो जाती है। देवशयनी एकादशी के बाद चार महीने तक सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेजस तत्व कम हो जाता है। शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर किए गए कार्यों के परिणाम भी शुभ नहीं होते। इस दौरान साधुओं का भ्रमण भी बंद हो जाता है। वह एक जगह पर रुक कर प्रभु की साधना करते हैं। चातुर्मास के दौरान सभी धाम ब्रज में आ जाते हैं। इसलिए इस दौरान ब्रज की यात्रा बहुत शुभकारी होती है। अगर कोई व्यक्ति ब्रज की यात्रा करना चाहे तो इस दौरान कर सकता है। देवशयनी एकादशी व्रत करने और इस दिन भगवान श्रीहरि की विधिवत पूजन से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। सारी परेशानियां खत्म हो जाती हैं। मन शुद्ध होता है, सभी विकार दूर हो जाते हैं। दुर्घटनाओं के योग टल जाते हैं। देवशयनी एकादशी के बाद शरीर और मन तक नवीन हो जाता है। इस पावन दिन व्रत रखने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। एकादशी का व्रत रखने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
 
एकादशी के खास 5 उपाय : 
1. दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर उससे भगवान विष्णु का अभिषेक करें।
 
2. भगवान विष्णु को शयन कराने के पूर्व खीर, पीले फल और पीले रंगी मिठाई का भोग लगाएं।
 
3. यदि धनलाभ की इच्छा है तो श्रीहरि विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा करें।
 
4. इस दिन शाम को तुलसी माता के सामने गाय के घी का दीपक जलाएं और उन्हें प्रणाम करें। ध्यान रखें कि माता तुलसी को जल अर्पित नहीं करना है।
 
5. पीपल में श्रीविष्णु का वास होता है इसलिए पीपल में जल अर्पित करें।
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एकादशी के 3 शुभ मंत्र :
1. हरिशयन मंत्र :  सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्दे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।
 
2. देवशयनी एकादशी संकल्प मंत्र :
सत्यस्थ: सत्यसंकल्प: सत्यवित् सत्यदस्तथा।
धर्मो धर्मी च कर्मी च सर्वकर्मविवर्जित:।।
कर्मकर्ता च कर्मैव क्रिया कार्यं तथैव च।
श्रीपतिर्नृपति: श्रीमान् सर्वस्यपतिरूर्जित:।।
 
3. देवशयनी एकादशी विष्णु क्षमा मंत्र :
भक्तस्तुतो भक्तपर: कीर्तिद: कीर्तिवर्धन:।
कीर्तिर्दीप्ति: क्षमाकान्तिर्भक्तश्चैव दया परा।।
 
व्रत कथा संक्षेप : एक राजा के राज्य में बरसात नहीं हो रही थी। सारे लोग बहुत परेशान थे और अपनी परेशानी लेकर राजा के पास पहुंचे। हर तरफ अकाल था। ऐसी दशा में राजा ने भगवान विष्णु की पूजा की। देवशयनी एकादशी का व्रत रखा। इसके फलस्वरूप भगवान विष्णु और राजा इंद्र ने बरसात की और राजा के साथ-साथ सभी लोगों के कष्ट दूर हो गए।
Ekadashi Vishnu Worship
पूजा विधि-
 
- इस दिन सूर्योदय से पहले जागकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। 
 
- एक चौकी पर नया कपड़ा बिछाकर भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें।
 
- इस दिन श्री विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उनका पंचोपचार या षोडषोपचार विधिवत पूजन करें। 
 
- भगवान विष्णु को पीला रंग अधिक प्रिय है, अत: पूजन के समय उन्हें पीले रंग के पुष्प चढ़ाएं। 
 
- विष्णु जी की पूजा करते समय धूप-दीप जलाएं। 
 
- श्री विष्‍णु की कथा का वाचन करें। 
 
- पूजन के बाद विष्णु जी और लक्ष्मी जी की आरती करें। 
 
- पूजन के उपरांत पीले रंग की मिठाई अथवा पीले फलों का भोग लगाएं।
 
- श्री विष्णु का निवास पीपल और केले के वृक्ष में भी माना गया है अत: इन पेड़ों की पूजा अवश्‍य करें और जल भी चढ़ाएं। 
 
- भगवान् श्रीहरि विष्णु के नामों का अधिक से अधिक जाप करें। 
 
- श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करें। 
 

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