पापमोचनी एकादशी व्रत कब रखा जाएगा, जानें महत्व और पूजा विधि

WD Feature Desk
HIGHLIGHTS
 
• पापमोचनी एकादशी कब है 2024 में।
• पापमोचिनी एकादशी का पारण समय क्या है।
• पापमोचिनी एकादशी की पूजन विधि के बारे में जानें।

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Papmochani Ekadashi 2024: इस वर्ष दिन शुक्रवार, 05 अप्रैल 2024 को पापमोचिनी एकादशी मनाई जा रही है। धार्मिक मान्यतानुसार यह एकादशी अपने नाम की तरह ही समस्त पापों से भी मुक्ति देने वाली तथा मोक्ष प्रदान करने वाली मानी गई है।

इस एकादशी का व्रत रखने और कुछ खास उपाय करने से मनुष्य का जीवन बदल जाता है तथा सुख-समृद्धि से घर भर जाता है। इतना ही नहीं इस व्रत से पितृ देवता प्रसन्न होकर सफलता और हर तरह के पापों से मुक्ति का आशीर्वाद देते हैं। इस व्रत से मनुष्य हर क्षेत्र में सफलता पाता है तथा जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। 
 
आइए यहां जानते हैं पापमोचनी एकादशी पूजन के मुहूर्त और पूजा विधि : 
 
कब रखा जाएगा एकादशी व्रत, जानें शुभ समय :
 
* पापमोचिनी एकादशी 2024 : गुरुवार, 04 अप्रैल 2024 को
चैत्र कृष्ण एकादशी तिथि का प्रारंभ- 04 अप्रैल, 2024 को 07:44 ए एम से, 
एकादशी तिथि का समापन- 05 अप्रैल, 2024 को 04:58 ए एम पर। 
 
पापमोचिनी एकादशी पारण समय 2024 
 
पारण (व्रत तोड़ने का) समय- 05 अप्रैल 12:43 पी एम से 03:07 पी एम तक।
पारण तिथि पर हरि वासर समाप्त होने का समय- 10:11 ए एम पर।
 
* गौण पापमोचिनी एकादशी व्रत 2024 : 05 अप्रैल, 2024 को शुक्रवार
गौण एकादशी पर पारण/ व्रत तोड़ने का समय : 06 अप्रैल को 05:32 ए एम से 07:56 ए एम तक। 
बता दें कि पारण के दिन द्वादशी का समापन सूर्योदय के पूर्व ही हो जाएगा।

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पूजा विधि : Puja Vidhi 2024
 
- पापमोचिनी एकादशी यानी चैत्र कृष्ण एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्‍नान के बाद पीले वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्‍प लें।
 
- घर के मंदिर में पूजा करने से पहले वेदी बनाकर 7 अनाज (उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा) रखें।
 
- वेदी के ऊपर कलश की स्‍थापना करें और उसमें आम या अशोक के 5 पत्ते लगाएं।
 
- अब भगवान श्री विष्‍णु की मूर्ति या तस्‍वीर स्थापित करें और पीले फूल, ऋतु फल और तुलसी दल समर्पित करें।
 
- फिर धूप-दीप से विष्‍णु की आरती उतारें।
 
- शाम के समय भगवान विष्‍णु की आरती उतारने के बाद फलाहार ग्रहण करें।
 
- पापमोचिनी एकादशी व्रत के दिन रात्रि में शयन नहीं करना चाहिए, बल्‍कि भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।
 
- अगले दिन ब्राह्मण और गरीब को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा देकर विदा करें।
 
- इसके बाद खुद भी भोजन कर व्रत का पारण करें।
 
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