Paush Putrada Ekadashi fast 2024: पौष माह की पुत्रदा एकादशी 21 जनवरी 2024 रविवार को है। पुत्र प्राप्ति की कामना से यह व्रत किया जाता है। पौष पुत्रदा एकादशी का पारण और पूजन समय जाकर ही व्रत रखें। इस बार यह एकादशी बहुत ही शुभ योग शुक्ल योग में आ रही है और रविवार का संयोग होने से यह और भी शुभ बन जाती है क्योंकि रविवार श्रीहरि विष्णु का दिन है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष में 2 बार पुत्रदा एकादशी आती है। पहली पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी और दूसरी सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, जिन लोगों की संतान नहीं है उन लोगों के लिए यह व्रत बेहद फलदायी माना गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बार की पुत्रदा एकादशी पर बहुत ही शुभ योग और वार का अधिकार है।
एकादशी तिथि प्रारम्भ- 20 जनवरी 2024 को रात्रि 07:28.
एकादशी तिथि समाप्त- 21 जनवरी 2024 को रात्रि 07:29.
उदया तिथि के अनुसार एकादशी का व्रत 21 जनवरी को रखा जाएगा।
पौष पुत्रदा एकादशी पारण मुहूर्त:- 22 जनवरी की सुबह 07 बजकर 13 मिनट से 09 बजकर 21 मिनट तक।
अवधि : 2 घंटे 7 मिनट
शुभ समय
ब्रह्म मुहूर्त- 03.51 ए एम से 04.37 ए एम
प्रातः सन्ध्या 04.14 ए एम से 05.23 ए एम
अभिजजीत मुहूर्त- 11.15 ए एम से 12.05 पी एम
विजय मुहूर्त- 01.46 पी एम से 02.36 पी एम
गोधूलि मुहूर्त- 05.56 पी एम से 06.19 पी एम
सायाह्न सन्ध्या- 05.58 पी एम से 07.06 पी एम
अमृत काल- 04.04 पी एम से 05.43 पी एम
निशिता मुहूर्त- 11.17 पी एम से 22 जनवरी 12.03 ए एम तक।
द्विपुष्कर योग- 07.22 पी एम से 22 जनवरी को 05.23 ए एम तक।
पुत्रदा एकादशी व्रत करने वाले भक्तों को एकादशी के एक दिन पहले ही अर्थात् दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए।
दशमी के दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।
सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करके शुद्ध व स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करके श्रीहरि विष्णु का ध्यान करना चाहिए।
अगर आपके पास गंगाजल है तो पानी में गंगा जल डालकर नहाना चाहिए।
इस पूजा के लिए श्रीहरि विष्णु की फोटो के सामने दीप जलाकर व्रत का संकल्प लेने के बाद कलश की स्थापना करनी चाहिए।
फिर कलश को लाल वस्त्र से बांधकर उसकी पूजा करें।
भगवान श्रीहरि विष्णु की प्रतिमा रखकर उसे स्नानादि से शुद्ध करके नया वस्त्र पहनाएं।
तत्पश्चात धूप-दीप आदि से विधिवत भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना, आरती करें तथा नैवेद्य और फलों का भोग लगाकर प्रसाद वितरण करें।
भगवान श्रीहरि को अपने सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि अर्पित करें।
पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के पश्चात फलाहार करें।
इस दिन दीपदान करने का बहुत महत्व होने के कारण दीपदान अवश्य करें।
एकादशी की रात में भगवान का भजन-कीर्तन करते हुए समय बिताएं।
दूसरे दिन यानी पारण तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन तथा दान-दक्षिणा देने के पश्चात ही स्वयं भोजन करें।
इस व्रत के पुण्य से व्रतधारी को तपस्वी, विद्वान, लक्ष्मीवान पुत्र प्राप्त होता है तथा सभी सुखों को भोगकर अंत में वैकुंठ प्राप्त होता है।
भगवान श्रीहरि विष्णु जी के मंत्रों का 108 बार जाप करें।
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